बस्तर जिले ग्राम रामपाल में रामायण काल का शिवलिंग आस्था का केंद्र बना
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जगदलपुर, 24 फ़रवरी (हि.स.)। बस्तर जिला मुख्यालय जगदलपुर से महज 10 किमी दूरी पर स्थित बकावंड ब्लॉक के ग्राम रामपाल में रामायण काल का शिवलिंग स्थापित है। मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने अपने वनवास के दौरान यहां पर लिंगेश्वर शिवलिंग की स्थापना की थी। भगवान श्रीरामचंद्र द्वारा स्थापित प्राचीन शिवलिंग के कारण ही इस गांव का नाम भी रामपाल है। दिल्ली के श्रीराम सांस्कृतिक शोध संस्थान के विशेषज्ञों का मानना है कि रामपाल का लिंगेश्वर शिवलिंग रामायण काल का है।
उल्लेखनीय है कि यह शोध संस्थान 50 वर्षाें से श्रीराम के वनवास पर शोध कर रहा है। शोधकर्ता डॉ. राम अवतार ने अपनी किताब में लिखा है कि वनवास के दौरान भगवान श्रीराम लंबे समय तक बस्तर में रहे। श्रीराम धमतरी से कांकेर पहुंचे। कांकेर में रामपुर जुनवानी, केशकाल घाटी शिव मंदिर, राकस हाड़ा नारायणपुर, चित्रकोट शिव मंदिर, तीरथगढ़ सीता कुंड, कोटि महेश्वर कोटमसर कांगेर, ओड़िशा के मल्कानगिरी, रामाराम के चिटमिट्टीन मंदिर सुकमा व इंजरम कोंटा में श्रीराम , वनवास के दिनों में यहां से होकर गुजरे हैं।
बस्तर जिले के बकावंड ब्लॉक के ग्राम रामपाल में श्रीराम के हाथों स्थापित शिवलिंग को लिंगेश्वर शिवलिंग के नाम से जाना जाता है और पूरे इलाके में यह धार्मिक आस्था का बड़ा केंद्र है। बस्तर में श्रीराम द्वारा स्थापित इस लिंगेश्वर शिवलिंग का जमीन में कितनी गहराई तक धंसा हुआ है, अबतक इसकी थाह नहीं मिल पाई है। वहीं शिवलिंग की लम्बाई लगातार बढ़ती जा रही है। मंदिर परिसर की खोदाई में सन 1860 की घंटी भी मिली है। मंदिर के जीर्णोदार के लिए परिसर की खोदाई की गई। इस दौरान पुरानी ईंट, पत्थर और एक घंटी मिली है। इस घंटी में 1860 और लंदन लिखा हुआ है। शोधकर्ताओं से मिली जानकारी के अनुसार तत्कालीन ब्रिटिश राज्यपाल ने यह घंटी मंदिर में चढ़ाई थी। वहीं पुरातत्व विभाग ने ईट और पत्थर का सैंपल लिया है, जिससे यह पता लगाया जाएगा कि यह कितने साल पुराने हैं।
बकावंड जनपद पंचायत के ग्राम पंचायत करनपुर के आश्रित ग्राम रामपाल में पास 38 धाकड़ ठाकुर परिवार निवासरत हैं। पूरा गांव श्रीराम और भगवान शिव की पूजा करता है। यहां स्थित लिंगेश्वर शिव मंदिर कई कविदंतियों, मान्यताओं और दंतकथाओं से जुड़ा हुआ है। यहां के पुजारी अर्जुन सिंह ठाकुर ने बताया कि उनके पूर्वज करीब डेढ़ सौ साल से इस लिंगेश्वर शिव की पूजा करते आ रहे हैं। कैलाश सिंह ठाकुर ने बताया कि हमारे पूर्वजाें से मिली जानकारी के अनुसार खुदाई के दौरान यह शिवलिंग प्राप्त हुआ है। जमीन के अंदर खुदाई कराने से शिवलिंग की थाह नहीं मिली। खुदाई के दौरान जमीन के अंदर ऊपरी सतह की अपेक्षा शिवलिंग की मोटाई अधिक पाई गई, लेकिन इस शिवलिंग का कोई अंत नहीं मिला है। मनेर सिंह ठाकुर ने बताया कि बचपन में शिवलिंग की ऊपरी सतह में कुछ गड्ढे थे, जो अब भर गए है। वहीं धीरे-धीरे शिवलिंग की लंबाई भी बढ़ रही है।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे