बीएचयू के शोधकर्ताओं ने कवक कि एक नई वंश 'जीनस' की खोज की


– “फंगल सिस्टमैटिक्स एंड एवोलूशन” पत्रिका में प्रकाशित हुआ शोध
– टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (गिलोय) में मिला नया फाइटोपैथोजेनिक कवक
वाराणसी, 27 जुलाई (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के वनस्पति विज्ञान विभाग के शोधकर्ताओं ने कवक विज्ञान (मायकोलॉजी) के क्षेत्र में एक बड़ी उपलब्धि हासिल की है। विभाग की शोध टीम ने एक नये कवक वंश (जीनस) की खोज की है, जिसे यूवेब्राउनोमाइसीज नाम दिया गया है। इस नई खोज को 25 जुलाई, 2025 को प्रतिष्ठित अंतरराष्ट्रीय Q1 जर्नल “फंगल सिस्टमैटिक्स एंड एवोलूशन” में प्रकाशित किया गया है, जो वेस्टरडिज्क फंगल बायोडायवर्सिटी इंस्टीट्यूट, नीदरलैंड्स से प्रकाशित होता है।
—गिलोय में मिला नया कवक, लीफ स्पॉट रोग से जुड़ा
यह कवक टिनोस्पोरा कॉर्डिफोलिया (गिलोय) में पाया गया है, जो भारत और दक्षिण एशिया की एक बहुचर्चित औषधीय लता है। शोध में इसे एक उभरते हुए लीफ स्पॉट रोग के साथ जोड़ा गया है। गिलोय को आयुर्वेद में अमृता कहा जाता है, और यह प्रतिरक्षा प्रणाली को मजबूत करने के लिए प्रसिद्ध है। यह पारंपरिक भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा में व्यापक रूप से उपयोग किया जाता है। इसके पत्तों, जड़ों और छाल के अर्क का प्रयोग मधुमेह, गठिया, यकृत रोग, वायरल बुखार/ मलेरिया, एलर्जी और त्वचा रोगों, स्ट्रेस और चिंता कम करने में और हाल ही में कोविड-19 संक्रमण की रोकथाम या सुधार जैसे कई रोगों के इलाज में किया जाता है। यह पौधा अपनी इम्यूनोमोडुलेटरी (प्रतिरक्षा प्रणाली को प्रभावित करने वाली) क्षमता के लिए विशेष रूप से जाना जाता है।
—नामकरण विश्वविख्यात वैज्ञानिक के सम्मान में
इस नये वंश का नाम जर्मनी के प्रसिद्ध कवक विशेषज्ञ प्रो. (डॉ.) यूवे ब्रान के सम्मान में रखा गया है, जिन्होंने फंगल डाइवर्सिटी के क्षेत्र में वैश्विक स्तर पर अनुकरणीय योगदान दिया है।
—कवक पहचान की वैज्ञानिक प्रक्रिया
शोधकर्ताओं ने इस कवक की पहचान मॉर्फो-कल्चरल विशेषताओं, इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी, और मल्टीजीन आणविक फ़ायलोजेनेटिक विश्लेषण की मदद से की। फ़ायलोजेनेटिक विश्लेषण ने यह स्पष्ट किया कि यूवेब्राउनोमाइसीज अन्य ज्ञात वंशों से स्पष्ट रूप से अलग एक स्वतंत्र क्लेड (शाखा) बनाता है, जिससे इसका एक नया जीनस होना सिद्ध होता है।
—शोध दल में शामिल वैज्ञानिक
इस शोध कार्य का नेतृत्व बीएचयू के वनस्पति विज्ञान विभाग के वरिष्ठ सहायक प्रोफेसर डॉ. राघवेंद्र सिंह ने किया। उनके साथ शोध में पूजा कुमारी, सौम्यदीप राजवर, और संजय यादव शामिल रहे। इस टीम को गोरखपुर विश्वविद्यालय की सहायक प्रोफेसर डॉ. स्मृति मल और गार्गी सिंह तथा केरल वन अनुसंधान संस्थान के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ. शंभू कुमार का भी सहयोग मिला।
—कवक के सैंपल और कल्चर को संरक्षित किया गया
शोध में प्रयुक्त वाउचर नमूना पुणे के अजरेकर माइकोलॉजिकल हर्बेरियम में जमा किया गया है, जबकि जीवित कल्चर को नेशनल फंगल कल्चर कलेक्शन आफ इंडिया (एनएफसीसीआई), पुणे में सुरक्षित रखा गया है।
—दवा अनुसंधान के लिए संभावना भरा क्षेत्र
डॉ. राघवेंद्र सिंह ने बताया कि यह खोज केवल एक नई प्रजाति या वंश की जानकारी भर नहीं है, बल्कि यह भविष्य की दवाओं की खोज के लिए भी मार्ग प्रशस्त कर सकती है। उन्होंने कहा कि भारत जैव विविधता के वैश्विक हॉटस्पॉट्स में शामिल है और यहां अब भी असंख्य अज्ञात कवक प्रजातियाँ पाई जाती हैं, जिनका चिकित्सकीय और औद्योगिक दृष्टिकोण से अत्यधिक महत्व हो सकता है।
—भारत में कवक विविधता की खोज ज़रूरी
डॉ. सिंह ने कहा, “भारत जैसे देश में जहां पारिस्थितिक तंत्र अत्यंत विविध हैं – उष्णकटिबंधीय वर्षावनों से लेकर ऊंचे हिमालय तक – वहां पर कवक जैसे अदृश्य लेकिन अत्यंत महत्वपूर्ण जीवों की खोज और उनका संरक्षण अत्यावश्यक है। ये कवक न केवल पौधों के रोगों को समझने में मदद कर सकते हैं, बल्कि नई औषधियों की खोज में भी क्रांतिकारी भूमिका निभा सकते हैं।”
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी