Newzfatafatlogo

बिहार विस चुनाव : कहीं हिंदू एकता, तो कहीं एमवाई की परछाई

 | 
बिहार विस चुनाव : कहीं हिंदू एकता, तो कहीं एमवाई की परछाई


-ओवैसी ने सियासी समीकरण में हलचल मचाई

पटना, 31 अक्टूबर (हि.स.)। बिहार की सियासत में जातीय जोड़-घटाव की बड़ी भूमिका रही है। इस बार थोड़े से समीकरण बदले हुए नजर आ रहे हैं। एक त​रफ जहां राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (राजग) हिन्दू एकता के साथ ही 'सबका साथ-सबका विकास' के फार्मूले पर काम रही है, तो वहीं महागठबंधन ने एमवाई (मुस्लिम-यादव) के पुराने फार्मूले पर विश्वास जतायी है। हालांकि, मुस्लिमों पर भरोसा जताने वाली राष्ट्रीय जनता दल (राजद) ने मुस्लिमों की आबादी के अनुपात में टिकट नहीं दिया है। हर दल अपने पुराने भरोसे को नए नारे में लपेटकर मतदाताओं तक पहुंचाने की जुगत में है। राजनीतिक गलियारों में सवाल गूंज रहा है कि क्या इस बार भी जनता जाति के नाम पर बंटेगी या फिर विकास, रोजगार और नेतृत्व पर भरोसा करेगी?

समीकरण की सियासत: सबका संतुलन, सबका गणित

बिहार विधानसभा चुनाव में सभी दल अपने-अपने सामाजिक समीकरण साधने में जुटे हैं। सियासी मोर्चे पर राजग, महागठबंधन, कांग्रेस और वामदल, सबने अपनी-अपनी सामाजिक गोटियां बिछा दी हैं। राजग ने सामाजिक संतुलन साधने की कोशिश की है। जदयू ने पिछड़ों और दलितों पर भरोसा जताया, तो भाजपा ने सवर्णों पर। राजग में हर तीसरा उम्मीदवार सवर्ण है। कुल 85 सवर्ण उम्मीदवारों में 37 राजपूत, 32 भूमिहार, 14 ब्राह्मण और 2 कायस्थ शामिल हैं। भाजपा ने अकेले 101 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें से 49 सवर्ण हैं। जदयू ने 22, लोजपा-आर ने 10 और हम व रालोमो ने 2-2 अगड़ी जातियों के उम्मीदवार मैदान में उतारे हैं। भाजपा की रणनीति साफ है- हिंदू वोटों में एकता का फार्मूला।

राजग का समीकरण-सबका संतुलन बनाए रखने की कोशिशराजग में भाजपा ने सवर्णों को तवज्जो दी है, तो जदयू ने पिछड़े और दलित वर्गों पर भरोसा जताया है। भाजपा का मानना है कि इस सामाजिक संतुलन से हिंदू वोटों में एकता बनी रहेगी। राजग ने इस बार 5 मुस्लिम उम्मीदवारों को टिकट दिया है, जबकि महागठबंधन ने 30 मुसलमानों को मैदान में उतारा है। राजग में हर तीसरा प्रत्याशी सवर्ण है। कुल 85 सवर्ण उम्मीदवारों में 37 राजपूत, 32 भूमिहार, 14 ब्राह्मण और 2 कायस्थ शामिल हैं। भाजपा ने अकेले 101 उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें 49 सवर्ण हैं। जदयू ने 22, लोजपा-आर ने 10, हम और रालोमो ने 2-2 अगड़ी जाति के उम्मीदवारों को मैदान में उतारा है।

तेजस्वी का ए टू जेड नारा, लेकिन भरोसा पुराने वोट बैंक पर

उधर, राजद नेता तेजस्वी यादव ने इस चुनाव में ए टू जेड और बाप-BAAP (बहुजन, अगड़ा, आधी आबादी, पुअर) जैसे नारों से सभी वर्गों को साथ लेने की बात कही है, लेकिन सीट बंटवारे में उनका भरोसा परंपरागत एमवाई समीकरण पर ही अधिक दिखा। राजद ने 143 उम्मीदवारों की सूची में 52 यादव और 18 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। इस तरह लगभग आधी सीटों पर यादव-मुस्लिम उम्मीदवार हैं। मुस्लिम आबादी के अनुपात में टिकट कम मिलने से राजद का ए टू जेड का नारा खोखला साबित होता दिख रहा है। तेजस्वी चाहते हैं कि पिछड़ों के साथ-साथ अगड़ों और महिलाओं को भी साथ लेकर चलें, मगर समीकरण बताते हैं कि यादव समाज पर ही सबसे ज्यादा भरोसा टिका है।

ओवैसी की एंट्री से मुस्लिम मतदाताओं में मची हलचल

भाजपा जहां सवर्णों पर भरोसा जताते हुए 'संपूर्ण हिंदू समाज' की राजनीति कर रही है, वहीं राजद ने एक बार फिर यादव-मुस्लिम (एमवाई) फार्मूले पर जोर दिया है। इस बीच असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम), मुस्लिम वोटों के बिखराव का नया कारण बन गई है। एआईएमआईएम ने मुस्लिम मतदाताओं को लेकर महागठबंधन की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। ओवैसी हर मंच से कह रहे हैं कि महागठबंधन ने मुसलमानों को सिर्फ दरी बिछाने का काम दिया है, हक नहीं।

पाटलिपुत्र विश्वविद्यालय के असिस्टेंट प्रोफेसर डॉ. विकास कुमार कहते हैं कि महागठबंधन यह मानकर चल रहा है कि मुसलमानों के पास उसके अलावा कोई विकल्प नहीं है, लेकिन यही आत्मसंतुष्टि नुकसान कर सकती है।

राजद की सूची में 16 अगड़ी जातियों के प्रत्याशी

राजद की सूची में 16 अगड़ी जातियों के उम्मीदवार शामिल हैं। इनमें 7 राजपूत, 6 भूमिहार और 3 ब्राह्मण हैं। पार्टी ने 13 कुशवाहा उम्मीदवार और 24 महिलाओं को टिकट दिया है, जो किसी भी पार्टी से सबसे अधिक है। माना जा रहा है कि राजद कुशवाहा मतदाताओं को साधकर लोकसभा चुनाव 2024 जैसी एकजुटता बनाए रखना चाहती है।

कांग्रेस के टिकट में सवर्णों का पलड़ा भारी

कांग्रेस ने अपने 61 उम्मीदवारों में सबसे अधिक सवर्णों को तवज्जो दी है। 8 भूमिहार, 5 राजपूत, 7 ब्राह्मण और 1 कायस्थ शामिल हैं। इसके अलावा कांग्रेस ने 10 मुसलमान, 5 यादव, 4 कुर्मी-कुशवाहा, 6 ईबीसी, 3 वैश्य और 12 दलित उम्मीदवारों को टिकट दिया है। यह रणनीति कांग्रेस की पारंपरिक शहरी व शिक्षित वोट बैंक को पुनर्जीवित करने की कोशिश मानी जा रही है।

वामदल भी बदल रहे रणनीति

वाम दलों ने 33 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं, जिनमें सर्वाधिक 9-9 दलित और यादव, 7 कुर्मी-कुशवाहा, 3 सवर्ण और 2 वैश्य शामिल हैं। वामपंथी दल सामाजिक न्याय और वर्गीय एकता के बीच संतुलन बनाने की कोशिश कर रहे हैं।

भूमिहार-राजपूत की जोड़ी फिर निर्णायक

राजग में राजपूत उम्मीदवारों की संख्या 37 है, जबकि भूमिहारों को 32 टिकट मिले हैं। हालांकि, ब्राह्मणों की आबादी भूमिहारों से अधिक है (3.65 प्रतिशत), फिर भी उन्हें सिर्फ 14 सीटों पर टिकट मिला है। राजनीतिक विश्लेषक एवं वरिष्ठ पत्रकार लवकुमार मिश्र का मानना है कि भाजपा सवर्णों के भीतर भी राजपूत-भूमिहार-ब्राह्मण संतुलन साधने की रणनीति पर काम कर रही है।

लवकुमार मिश्र का मानना है कि जातीय समीकरण अभी भी बिहार की राजनीति की धुरी हैं, लेकिन युवा मतदाता अब रोजगार, शिक्षा, आधारभूत संरचना (इंफ्रास्ट्रक्चर) और नेतृत्व के मुद्दे पर भी सजग हो चुका है। अब देखना यह है कि 2025 के इस विधानसभा चुनाव में जातीय गणित जीतेगा या विकास का एजेंडा? ----------------

हिन्दुस्थान समाचार / राजेश