चतरा के प्रसिद्ध तीर्थस्थल लेंबोइया पहाड़ी मंदिर में उमड़ता है श्रद्धालुओं का सैलाब




चतरा, 21 सितंबर (हि.स.)। शारदीय नवरात्र को लेकर देश भर के मंदिरों में माँ दुर्गा के पूजन की तैयारी पूरी हो गयी है। झारखंड के चतरा जिला में भी कई प्राचीन मंदिर हैं। जहां सदियों से शारदीय नवरात्र में पूजा अर्चना की जा रही है। जिले के लेंबोइया पहाड़ी में माता भगवती मंदिर की महिमा भी अमंत एवं अपार हैं। इस मंदिर को लेकर कई प्राचीन परंपरा और मान्यताएं है।
लेंबोइया पहाड़ी चतरा (झारखंड) में स्थित एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है, जहां मां भगवती चामुंडा के रूप में विराजमान हैं और यह माता सती के वाम नेत्र की पलकों का सिद्धपीठ माना जाता है। यह मन्नतों के लिए प्रसिद्ध है और नवरात्र के दौरान दूर-दूर से भक्तगण यहां दर्शन करने आते हैं।
मंदिर प्रबंधन समिति के कार्यकारी अध्यक्ष युगेश्वर प्रसाद ने बताया कि यहां माता सती की वाम नेत्र की पलकें गिरी हैं। आज भी मन्नतें पूरी होने पर श्रद्धालु सोने और चांदी के नेत्र चढ़ाते हैं। यहां सोने और चांदी के नेत्र चढ़ाने की परंपरा सदियों से चली आ रही है। यह एक सिद्धपीठ स्थल है। यहां सदियों से नवरात्र के मौके पर मां भगवती की विधिवत पूजा-अर्चना की जाती है। यहां भगवती मां दक्षिणेश्वरी देवी चामुण्डा स्वरूप में विराजमान हैं। यह मंदिर मन्नतों के लिए प्रसिद्ध है।
मंदिर के सचिव बासुदेव तिवारी ने बताया कि कालांतर में यह क्षेत्र तंत्र क्रिया के लिए प्रसिद्ध रहा है। आज भी लोग मन्नतें पुरी होने पर यहां मां को सोने और चांदी के बने नेत्र चढ़ाते हैं। पहाड़ी की चोटी में मां भगवती की प्रचंड मुद्रा में भव्य और दुर्लभ काले पत्थरों से प्रतिमा बनी है। मां की प्रतिमा रण क्षेत्र में युद्ध करते हुए प्रचंड मुद्रा में है। मां की प्रतिमा में तीन मस्तक और सात नेत्र हैं। पैर के नीचे चंड और मुंड हैं। मां की पूजा वैष्णव विधि से की जाती है। सुबह से शाम तक यहां मां की आराधना की जाती है। वैसे तो सालों भर यहां श्रद्धालु पहुंचते हैं, लेकिन शारदीय नवरात्र में यहां श्रद्धालुओं की भारी भीड़ उमड़ती है। आसपास के ग्रामीण मां दक्षिणेश्वरी को कुलदेवी के रूप में पूजा करते हैं।
कोषाध्यक्ष उदयनाथ सिंह, केदार राम दांगी और बालेश्वर दांगी ने बताया कि मंदिर में स्थापित मां की प्रतिमा आठवीं से दसवीं शताब्दी की बताई जाती है। इस मंदिर की खोज चरवाहों ने की थी। प्राचीन मंदिर के स्थान पर प्रबंधन समिति एवं ग्रामीणों की ओर से भव्य मंदिर का निर्माण किया गया है। यह मंदिर दूर से ही श्रद्धालुओं को आकर्षित करती है। मंदिर में कई बार मां की प्रतिमा को चोरी करने का प्रयास किया गया, लेकिन मां की महिला इतनी कि प्रतिमा को आज तक कोई ले नहीं जा पाया।
मंदिर से जुड़े लोगों ने बताया कि लेंबोइया पहाड़ी में सदियों से शारदीय नवरात्र का आयोजन हो रहा है। रामगढ़ राजपरिवार के जरिये यहां पूजा कराई जाती थी। पदमा के राजा कामख्या नारायण सिंह के नाम पर प्रथम भोग और बली चढ़ाने की प्रथा थी। ब्रह्म ऋषि समाज माता की पूजा कुलदेवी के रूप में करते हैं। उन्होंने बताया कि आसपास के लोग हर शुभ कार्य की शुरुआत इसी मंदिर से करते हैं। यह मंदिर कई प्राचीन परंपराओं और रहस्यों से भरा है। यहां का प्राकृतिक वातावरण लोगों को आकर्षित करता है। मुख्य मंदिर में मां भगवती की पांच फीट ऊंची प्रतिमा के अलावे कई देवी और देवताओं की प्राचीन प्रतिमाएं भी स्थापित हैं। यह मंदिर सदियों से है। अंतिम सर्वे खतियान में भी मंदिर अंकित है।
यह मंदिर प्रखंड मुख्यालय से एक किमी दूर पूरब दिशा में पत्थलगड-हजारीबाग मुख्य के किनारे है। मंदिर प्रमंडल मुख्यालय हजारीबाग, जिला मुख्यालय चतरा एवं अनुमंडल मुख्यालय सिमरिया से पक्की सड़क से जुड़ा हुआ है। निकटतम रेलवे स्टेशन कटकमसांडी और हजारीबाग टाउन है।
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हिन्दुस्थान समाचार / जितेन्द्र तिवारी