मिट्टी के संकट से जूझने के बाद भी प्रकाश पर्व पर कुम्हार उम्मीदों की लौ जलाये चाक तेजी से घुमा रहे



— चाइनीज झालरों के बहिष्कार से बढ़ी आशाएं, मेहनत रंग लाने की उम्मीद में जुटे कारीगर
वाराणसी, 16 अक्टूबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी जनपद में दीपों के महापर्व दीपावली और धनतेरस की आहट के साथ इसकी तैयारियां पूरे चरम पर हैं। बाढ़ और बारिश से उपजे मिट्टी के संकट ने भले ही कुम्हारों के सामने चुनौतियों का पहाड़ खड़ा कर दिया हो, लेकिन उनके हौसले अब भी बुलंद हैं। उम्मीदों की लौ जलाते हुए वे अपने पारंपरिक चाक को तेजी से घुमा रहे हैं। मिट्टी के दीयों, भड़ेहर, घंटियों, ग्वालिनों और देवी-देवताओं की मूर्तियों को आकार देने में वे दिन-रात जुटे हैं। कैंट थाना क्षेत्र के फुलवरिया स्थित कुम्हार बस्ती में इन दिनों एक अलग ही नज़ारा देखने को मिल रहा है। पुरुष, महिलाएं और बच्चे—सभी मिलकर मिट्टी को आकार देने में लगे हैं। घरों से लेकर गलियों तक मूर्तियों और दीयों का काम चल रहा है। लक्ष्मी-गणेश और कुबेर की सुंदर मूर्तियां तैयार हो रही हैं, जिनमें कुम्हारों की मेहनत और समर्पण साफ झलकता है।
शारदा देवी, जो वर्षों से यह कार्य कर रही हैं, बताती हैं कि उन्हें बनारस में मिट्टी मिलना मुश्किल होता है। “हम लोग बाहर से मिट्टी मंगवाते हैं, जिससे लागत भी बढ़ जाती है। हमारे तीन बेटे हैं, जो मूर्ति बनाने में हाथ बंटाते हैं। हम छह महीने पहले से ही मूर्तियों की तैयारी शुरू कर देते हैं और दीपावली के एक महीने पहले रंग-रोगन करते हैं,” उन्होंने कहा, ज्योति देवी, जो पिछले आठ वर्षों से मूर्तियों का निर्माण कर रही हैं, बताती हैं कि मिट्टी खरीदने में ही करीब 4000 रुपये खर्च हो जाते हैं। “काफी मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन आमदनी उसके अनुसार नहीं होती। त्यौहारों के बाद हम लोग दूसरा काम करते हैं, ताकि गुजारा हो सके,” वे कहती हैं। कुम्हारों की पीड़ा है कि सरकार की ओर से उन्हें कोई खास सहयोग नहीं मिल रहा। यदि सरकारी स्तर पर सहायता मिले, तो वे अपने उत्पादों की उचित कीमत पा सकते हैं और उनका जीवन-स्तर बेहतर हो सकता है। इस बार उन्हें सोशल मीडिया पर चाइनीज झालरों और सजावटी वस्तुओं के बहिष्कार की मुहिम से उम्मीदें जगी हैं। बाजार में स्वदेशी उत्पादों की मांग बढ़ने लगी है, जिससे उन्हें भरोसा है कि इस दीपावली उनकी मेहनत रंग लाएगी।
जैसे-जैसे दीपावली नजदीक आ रही है, बाजारों में भी रौनक बढ़ने लगी है। लोग मिट्टी के दीयों और स्वदेशी सजावटी वस्तुओं की ओर लौटते दिखाई दे रहे हैं। ऐसे में कुम्हारों को उम्मीद है कि इस बार रौशनी का यह पर्व सच में उनके जीवन में भी उजाला लेकर आएगा। कुम्हार उम्मीदों की लौ जलाये चाक तेजी से घुमा रहे है।
हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी