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विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम

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विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम


विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम
विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम
विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम
विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम
विभाजन की विभीषिका : बलोचों ने मजहब के नाम पर कराया था भारत आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम
- आज भी परमहंस लाल की आंखों में ताजा है बर्बर जुल्म की दास्तां
-हिंदू शरणार्थियाें पर दरिंदगी की जीवंत गाथा सुन भर आती हैं आंखें

रामानुज शर्मा

नई दिल्ली, 12 अगस्त (हि.स.)। पाकिस्तान से आजादी की लड़ाई में हिन्दुस्तान से मदद की गुहार लगाने वाले बलोचिस्तान के बलोचों ने 1947 में देश के बंटवारे के समय मजहब के नाम पर भारत की ओर आ रहे हिन्दुओं का कत्लेआम कराया था और उनकी बलोच आर्मी ने गुजरांवाला से भारत के अमृतसर जाने वाली ट्रेन से सैकड़ों महिला-पुरुष और युवाओं की हत्या करके करीब चार सौ हिन्दू युवतियों को अगवा कराया था।

करीब 77 साल पुराने इस खौफनाक हादसे के चश्मदीद गवाह 82 वर्षीय परमहंस लाल मेहता (पी.एल. मेहता) अपनी आपबीती सुनाते हुए आज भी सिहर उठते हैं। उनके और उनके जैसे सैकड़ों विस्थापित लोगों के लिए हर साल 15 अगस्त भारत की आज़ादी की खुशी के साथ विभाजन की विभीषिका की पीड़ा भी ताजा कर देती है। भारत के विभाजन का यह दर्द परमहंस जैसे देशवासियाें के लिए आज भी लाइलाज नासूर जैसा है। देथ के बंटवारे के फैसले और लोगों के भीषण रक्तपात ने देशशासियाें काे झकझाेर कर रख दिया था। इसमें हजाराें लाेग बेघर हाे गए थे ताे कई हजार लाेगाें काे अपनी जान गंवानी पड़ी थी। इस विभीषिका को भोगने वाले परमहंस लाल मेहता से 'हिन्दुस्थान समाचार' ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है परमहंस लाल मेहता से बातचीत के संपादित अंश...

देश के बंटवारे की विभीषिका को भोगने वाले परमहंस लाल मेहता उन लोगों में शुमार हैं, जिन्हाेंने उस पीड़ा काे अपने परिवार के साथ ही नहीं बल्कि हजाराें हिन्दू शरणार्थियाेंं के साथ भाेगा और झेला था। उन्हाेंने अपनी आंखाें के सामने सिर्फ हजारों हिन्दुओं का ही नहीं बल्कि अपने परिवार के लाेगाें का भी कत्लेआम होते देखा था। वे खून के प्यासे और पैसों को लूटने वालों की भीड़ से पाकिस्तान से बचकर अमृसर पहुंचे थे। अपने परिवार के 11 लोगों को खोने वाले परमहंस लाल अपने पिता रामरक्खा और तीन वर्ष की चचेरी बहन संंताेष के साथ गांव साऊवाल तहसील पिंड दादन खान, जिला झेलम से 23 सितंबर 1947 को सवार होकर अगले दिन कामाेकी-गुजरांवाला रेलवे स्टेशन पर उतरे थे। कई दिनों तक गुजरांवाला अस्पताल में फंसे रहने के बाद वे लोग अमृतसर अपने भाई के यहां सकुशल पहुंच थे।

परमहंस लाल की आंखों में आज भी बलोचों और पाकिस्तान के उस बर्बर जुल्म की दास्तां ताजा है। परमहंस से उस दरिंदगी और क्रूरता की जीवंत गाथा सुनकर बरबस ही आंखाें से आंसू बहने लगते हैं। वे बताते हैं कि कामाेकी रेलवे स्टेशन पर करीब चार से पांच हजार पाकिस्तानियाें की भीड़ ने ट्रेन में सवार करीब तीन हजार हिन्दू शरणार्थियाें में दादा-परदादाओं और माता-पिता की आंखों के सामने बहन-बेटियों काे निकाल कर ले गए थे। यह देखकर सभी की आंखें पथरा चुकी थीं और दिल बैठ गया था, लेकिन वे सभी बेवश होकर छटपटाते रह गए थे। क्योंकि उनके पास विरोध करने को कुछ नहीं बचा था। उनके हथियार और ऐसे सभी सामानों को बलोच आर्मी के सामने गुजरावाला पुलिस ने यह कहकर ले लिया था कि आप इनको अपने साथ यानी भारत लेकर नहीं जा सकते हैं।

वे बताते हैं कि तब उनकी आयु साढे़ 10 वर्ष की थी। पाकिस्तानियों की भीड़ ने बलोच आर्मी के सामने ही उनकी ट्रेन में हमला बोला था, लेकिन बलोच आर्मी यह सब कुछ तमाशबीन बनकर देखती रही। उसने किसी को भी रोकने का साहस नहीं किया। बलोच आर्मी के कहने पर ही उनकी ट्रेन को कामोकी रेलवे स्टेशन पर रोका गया था, जिससे कि हिन्दू शरणार्थियों का खात्मा किया जा सके। इसी रणनीति के तहत हिन्दू शरणार्थियों से उनके हथियार आदि सामान ले लिए गए थे। बलाेच आर्मी ने उन लाेगाें से कहा था कि आगे भीड़ इकट्ठा है। उनकाे हटाने जाना है। आप सब पुलिस काे अपने हथिथार आदि सामान दे दें, लेकिन ऐसा कुछ नहीं हुआ और कुछ देर बाद ही वहां पर पाकिस्तानियाें की भारी भीड़ आ धमकी, जाे तलवाराें और हथियारों से लैस थी।

बलाेच आर्मी ने ही पाकिस्तानियों की भीड़ को बुलवाकर उन लोगों पर हमला करवाया था। इस भीड़ ने सबसे पहले करीब चार सौ हिन्दू बेटियों को ट्रेन से निकाला और उनका एक समूह उन्हें अपने साथ ले गया। युवाओं को मार दिया गया था। इसके बाद जिस युवा ने विराेध या ट्रेन से भागने की काेशिश की, उसकी गोलीमार कर हत्या कर दी गई। उन्होंने सभी से जेवरात, सोना-चांदी और पैसा आदि सब कीमती सामान लूट लिया। फिर उन्होंने सभी को बेरहमी से तलवारों से काट डाला। किसी तरह उनके चाचा ने उन्हें लाशों के बीच छिपा दिया था और वे चुपचाप कत्लेआम के दौरान लेटे रहे। इसके बाद उनके चाचा काे तलवार से काट डाला गया और उनकी माैत हाे गई थी। इसी बीच जब वहां हिन्दू आर्मी पहुंची तो बाकी लोगों की जान बच सकी। ऐसे लोगों की संख्या भी करीब चार सौ थी।

बकौल पी.एल. मेहता, ट्रेन में हमले के दाैरान दाे मुस्लिम आपस में बातें कर रहे थे कि तुम्हारे पास काेई लड़का नहीं है, तुम इसे अपना लड़का बना लाे ताे उसके चाचा रिक्खी राम ने कहा कि इसे मत माराे। भले ही इसे अपने साथ ले जाओ। तभी परमहंस एक कलाई घड़ी अपनी जेब से निकाल कर उनको देने लगे ताे हमलावरों की नजर एक हिन्दू महिला के जेवरात पर पड़ गयी और वे लाेग इसमें उलझ गए। इसी दाैरान उनके चाचा ने उन्हें लाशाें के बीच में छिपाकर अपनी पगड़ी से ढंक दिया था, जिससे उनकी जान बच गयी थी। तलवार से हमले में उनके चाचा रक्खी राम की मौत हो गयी थी जबकि उनकी गर्दन पर मामूली चोट आयी थी, लेकिन वे शांतपूर्वक ही लेटे रहे। उन्होंने बताया कि उनकी शर्ट खून से तर-बतर हो गई थी। उनके पिता जी के सिर पर बल्लम लगी थी और हाथ टूटने के साथ शरीर पर कई गहरे जख्म थे। इस हमले में उनकी दादी, दो चाचा और दो चाची, उनके तीन बेटे, ताया जी, पिता जी के चचेरे भाई और उनकी पत्नी सहित 11 लोगों को मार दिया गया था।

ट्रेन में हिन्दू शरणार्थियाें को गन्ने की तरह काटने के बाद बचे हुए लोगों को कामोकी रेलवे स्टेशन पर निकालकर मारने की योजना थी। यह तो हमारे जैसे कुछ लोगों की किस्मत थी कि हाइवे के समीप स्थित इस कामाेकी रेलवे स्टेशन की ओर से हिन्दू आर्मी गुजर रही थी और वह वहां पर आ गयी थी ,जिससे वे लोग बच गए थे। हिन्दू आर्मी के अधिकारी ट्रेन का मंजर देखकर सकते में पड़ गए थे। उनमें से एक अधिकारी ने तो बलाेच सेना के प्रमुख पर पिस्ताैल भी तान दी थी और पूछा था कि ऐसा क्याें हुआ? इस पर उसने कहा था कि उन्होंने हिन्दू शरणार्थियाें काे भीड़ से बचाने की बहुत काेशिश की लेकिन हमलावर रुके नहीं।

वे बताते हैं कि इसके बाद उन लाेगाें काे दूसरी ट्रेन से गुजरांवाला के सिविल अस्पताल ले जाया गया था। वहां पर भी उन लोगों के साथ सौतेला व्यवहार किया गया। मुस्लिम चिकित्सकों ने उनका ठीक तरह से इलाज नहीं किया और उन्हें मरने के लिए छोड़ दिया था। उनकी भी मंशा अच्छी नहीं थी। हिंदू स्टाफ के उन लोगों ने उनका इलाज और सेवा की। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवकों ने उनके लिए भोजन-पानी और इलाज आदि का इंतजाम किया था। उन्होंने बताया कि खून से तर-बतर शर्ट पहने हुए गुजरांवाला अस्पताल पहुंचे थे, वहां के एक हिन्दू स्टाफ ने उन्हें एक शर्ट लाकर दी थी। जिसे उन्होंने पहन रखा था। यहां अस्पताल में कुछ गंभीर घायलों की मौत हो गई थी।

परमहंस लाल बताते हैं कि देश के हालात इस कदर खराब थे कि उन लोगों को हर पल अपनी जिंदगी दाव पर लगी हुई दिख रही थी। उन्होंने बताया कि उनकी ट्रेन सवारी बोगी नहीं थी बल्कि माल ढोने वाले खुले बैगन थे। इसके कारण पाकिस्तानियों ने बहुत इत्मीनान से हिन्दू शरणार्थियों को लूटा और काटा था। यह सब बलोचों की साजिश का ही हिस्सा था। उन्होंने बताया कि जब वे लोग अपने गांव से चले थे तो उनके पास पांच किलो सोना और 50 हजार रुपये थे लेकिन पाकिस्तानियों ने उनसे सबकुछ छीन लिया था। उनके पिताजी के पास केवल ढ़ाई साै रुपये ही बचे थे। इस तरह उन्होंने ट्रेन में सवार लगभग तीन हजार हिन्दू शरणार्थियों के साथ ऐसी ही क्रूरता और बर्बरता देखी थी।

उल्लेखनीय है कि अमेरिका ने एक दिन पहले ही पाकिस्तान के बलूचिस्तान प्रांत में सक्रिय बलोच लिबरेशन आर्मी (बीएलए) को विदेशी आतंकी संगठन घोषित किया है। बीएलए को लंबे समय से अफगानिस्तान और ईरान से सटे, खनिज संपदा से भरपूर बलोचिस्तान क्षेत्र में सक्रिय सबसे प्रभावशाली उग्रवादी गुट माना जाता है।


सैयद और शुभचिंतकाें ने बचाया, दीन के बेरहम लाेगाें ने किया कत्लेआम-
एक तरफ साऊ‍वाल गांव के सैयद और उनके शुभचिंतक थे ताे दूसरी तरफ कामाेकी रेलवे स्टेशन (गुजरांवाला) पर हिन्दू शरणार्थियाें का कत्लेआम करने वाले दीन के मानने वाले। जिन्हाेंने उनके साथ ऐसा सूलक किया कि उनके समेत बहुतों की कई पीढ़ियां हाेम हाे गईं। वे ज्यादती और बर्बरता के शिकार हुए। जाे किस्मत से बच गए, उन्हें यह पीड़ा गहरे तक सालती है और इसकी याद ताजा हाेने पर मन मस्तिष्क में अजीब सी टीस पैदा हाेती है कि एक ही मजहब काे मनाने वालाें में इतना भेद कैसे हाे सकता है? उनके पिता जी सैयद काे अपने जीवन की सारी कमाई पांच किलाे साेना और 50 हजार की नकदी रखने काे दी थी जिसकाे वे अगले दिन सुबह सुरक्षित लाैटाने के साथ ही पिता जी काे एक महीने का राशन दे गए थे। साथ ही शिविर में रुकने पर और राशन की व्यवस्था का भराेसा भी दे गए थे, लेकिन कामाेकी रेलवे स्टेशन पर 24 सितंबर 1947 काे जाे कुछ हुआ, वह ताउम्र न भूलने वाली पीड़ा और ऐसे गहरे जख्म दे गया, जिसकी काेई भरपाई नहीं कर सकता है। उन्हाेंने बताया कि इस जुल्म और अत्याचार के बाबत जब उनके वीडियाे वायरल हुए ताे उनके पैतृक गांव साऊवाल, गुजरांवाला पाकिस्तान के लाेगाें से उनकी कई बार बात हुई। वर्ष 2015 के पहले उनके पिता के मित्र सैयद जी से भी बात हुई थी। जब उनका इंतकाल हुआ था। उसके बाद गांव के लाेगाें ने उनकी मजार भी दिखाई थी।

 

मासूम परमहंस काे नहीं पता था क्या है बंटवारा-
कक्षा चाैथी में पढ़ने वाले परमहंस काे बंटवारा क्या हाेता है, यह पता नहीं था। वह बताते हैं कि जब देश का बंटवारा हुआ ताे उनके गांव में दाे-तीन दिन बाद एक जुलूस निकला, जिसमें वह पााकिस्तान जिंदाबाद के नारे लगा रहे थे। इसके कुछ दिनाें बाद ही जब उनके घर पर बुजुुर्गाें की बैठक हुई ताे उन्हें पता चला कि देश का बंटवारा हाे गया है और वे लाेग पाकिस्तान के हिस्से में हैं। उन लाेगाें काे यहां से जाना हाेगा। लगभग दाे सप्ताह बाद उनके परिवार के लोगों को गांव के कुछ लाेगाें ने बताया कि उनके घर पर हमला हाेने वाला है। इसलिए वे लाेग गांव छाेड़कर चले जाएं। इसके बाद गांव के ही मुस्लिमाें के गुरु सैयद ने उनके पिता जी से कहा कि आप लाेग चिंता नहीं कराे। अगर आपको ऐसा कुछ भय है ताे आप तब तक उनके यहां आकर रुक जाओ। आप लाेगाें काे कुछ नहीं हाेगा क्याेंकि उनके घर काेई भी हमला नहीं करेगा। जब तक आप लाेगाें के जाने का इंतजाम नहीं हाेता है, आप सबकी सुरक्षा की जिम्मेदारी उनकी है। इसके बाद वे लाेग साऊवाल गांव का अपना पुश्तैनी घर छाेड़कर एक सप्ताह तक उनके घर पर रहे और उन्हें फिर अपना पांच किलाे साेना और 50 हजार रुपये देकर आर्मी के ट्रकाें से पिंड दादन खान शिविर में चले गए थे।

 

साऊवाल का प्रतिष्ठित परिवार था मेहता परिवार-
परमहंस लाल के पिता रामरक्खा महंत थे। वह साऊवाल गांव के बहुत ही रखूखदार और सम्मानित व्यक्ति थे। पूरे इलाके में एक प्रतिष्ठित परिवार के रूप में उनकी पहचान थी। उनका एक एकड़ में मकान था। आधे हिस्से में घर था और शेष मवेशी के लिए था। उनकी बहुत अधिक खेती बाड़ी थी। उनकी क्षेत्र में अच्छी साख हाेने के साथ लाेग बहुत इज्जत करते थे। उन्हाेंने बताया कि गांव में केवल सात परिवार ही हिन्दुओं के थे। वे बताते हैं कि उनके घर पर साल में दाे बार नवरात्र पर विशेष आयाेजन हाेता था। इसमें इलाके भर के लाेग आते थे। इस अवसर पर उनके यहां दाे साै लाेगाें के रुकने और ठहरने का इंतजाम रहता था। उनसे 15 साै परिवार जुड़े हुए थे।

 

पुरुषार्थ से बनाया खुशहाल परिवार-
परमहंस लाल मेहता ने अपने पुरखों, माता-पिता के आशीर्वाद और पुरुषार्थ से अपने परिवार को खुशहाल बनाया। गुजरांवाला से अमृतसर में अपने रिश्तेदार के यहां कुछ समय रहे। इसके बाद अंबाला में अपने मौसा के पास गए। वहां पर कुछ समय रहने के बाद वे लोग उत्तराखंड के रूड़की में रहने लगे। यहां से परमहंस लाल ने प्राथमिक शिक्षा के बाद मेरठ कॉलेज से एमए किया और फिर डीसीएम में नौकरी की। इसके बाद वे दिल्ली आकर रहने लगे। उनका एक बेटा है। उसके दो बच्चे हैं। उनका पौत्र दिल्ली में अधिवक्ता है और पौत्री मुंबई में बालीवुड में काम करती है। वे यहां पर मिनरल्स का व्यवसाय करते हैं। उनकी पत्नी सुषमा मेहता भी पाकिस्तान से हैं। उनका परिवार बंटवारे के बाद पाकिस्तान से आकर दिल्ली के चांदनी चौक में बस गया था।
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हिन्दुस्थान समाचार