ट्रंप की नीति “अमेरिका फर्स्ट” को अमेरिकन ने ही नकारा

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने सत्ता में आने के बाद “अमेरिका फर्स्ट” का नारा देते हुए व्यापार युद्धों की शुरुआत की और टैरिफ को अपनी आर्थिक नीति का प्रमुख हथियार बना लिया। उनका दावा रहा है कि इससे अमेरिकी उद्योग दोबारा खड़ा होगा और विदेशी आयात पर निर्भरता घटेगी। लेकिन हाल के आँकड़े और वैश्विक रेटिंग एजेंसियों की चेतावनियाँ उनके इन दावों की पोल खोल रही हैं। यह आंकड़ें और चेतावननी बता रही हैं कि कई अमेरिकन ने ही डोनाल्ड ट्रंप के “अमेरिका फर्स्ट” का नारा नकार दिया है।
दरअसल, इस संबंध में ग्लोबल एजेंसी ‘मूडीज’ एनालिटिक्स ने स्पष्ट कहा है कि अमेरिका आज मंदी की कगार पर खड़ा है और सकल घरेलू उत्पाद का लगभग एक-तिहाई हिस्सा पहले से ही गंभीर संकट में फँस चुका है। रिपोर्ट बताती है कि अमेरिका के कई राज्य या तो मंदी का सामना कर रहे हैं या निकट भविष्य में उसमें घिरने वाले हैं। केवल कुछेक राज्यों में ही आर्थिक वृद्धि दर्ज की जा रही है जबकि बहुसंख्यक राज्यों में ठहराव या गिरावट का माहौल है। यह परिदृश्य उस देश की असली हालत दिखाता है जो खुद को दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था कहता है।
मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर अपने सबसे कमजोर प्रदर्शन पर पहुंचा
राष्ट्रपति ट्रंप की नीतियों का सबसे गहरा प्रहार अमेरिकी मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर पर हुआ है। आयात शुल्कों के कारण कच्चे माल और पुर्जों की कीमतें इतनी बढ़ गई हैं कि उत्पादन महँगा और अलाभकारी हो गया है। जिन उद्योगों को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला से लाभ मिल रहा था, वे अचानक महंगे उत्पादन की मार झेलने लगे हैं। रिपोर्ट के अनुसार अगस्त 2025 में अमेरिका का मैन्युफैक्चरिंग परचेजिंग मैनेजर्स इंडेक्स घटकर 48.7 पर आ गया, जो लगातार छठा महीना है जब इस क्षेत्र में गिरावट दर्ज हुई।
इंस्टीट्यूट फॉर सप्लाई मैनेजमेंट का सर्वे भी यही संकेत देता है कि उद्योगपतियों का विश्वास डगमगा चुका है और वे विस्तार की जगह सिमटने की रणनीति अपना रहे हैं। कई कंपनियाँ छंटनी कर रही हैं और नई नौकरियाँ देने से बच रही हैं। यह स्थिति महामंदी से भी बदतर बताई जा रही है।
अमेरिका में रोजगार तेजी से घट रहे
रोजगार के मोर्चे पर भी तस्वीर चिंताजनक है। ट्रंप प्रशासन ने बार-बार रोजगार सृजन का दावा किया लेकिन हकीकत इसके उलट है। सरकारी नौकरियों में कटौती ने हालात को और खराब कर दिया है। केवल जनवरी से मई के बीच वाशिंगटन डीसी क्षेत्र में ही बाईस हजार से अधिक सरकारी नौकरियाँ खत्म हो चुकी हैं। उत्तर-पूर्व और मध्य-पश्चिम के राज्य भी इससे प्रभावित हुए हैं। सरकारी नौकरियों की कटौती का असर केवल रोजगार तक सीमित नहीं रहता बल्कि यह आम लोगों की आय और उपभोग क्षमता पर भी सीधा प्रहार करता है। जब लोगों के पास काम नहीं होगा तो उनकी खपत घटेगी और बाजार सिकुड़ेगा, जिससे मंदी का चक्र और गहराता जाएगा।
पैंतीस ट्रिलियन डॉलर पर जा पहुंचा है अमेरिकन कर्ज
इन सबके बीच अमेरिका का राष्ट्रीय कर्ज भी तेजी से बढ़ रहा है। आज यह कर्ज लगभग पैंतीस ट्रिलियन डॉलर तक पहुँच चुका है। कर कटौती और बढ़ते सैन्य व्यय ने इस बोझ को और बढ़ा दिया है। हालत यह है कि अमेरिकी बजट का एक बड़ा हिस्सा केवल ब्याज भुगतान में चला जाता है और शिक्षा, स्वास्थ्य, सामाजिक सुरक्षा तथा बुनियादी ढाँचे जैसे अहम क्षेत्रों पर खर्च सीमित होता जा रहा है। दीर्घकाल में इसका असर अमेरिकी जनता की जीवनशैली और सामाजिक सुरक्षा पर पड़ना तय है।
अमेरिकी उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ बढ़ रहा
ट्रंप लगातार दावा करते रहे हैं कि उनकी टैरिफ नीति अमेरिका को चीन जैसे देशों पर निर्भरता से मुक्त करेगी और घरेलू उद्योगों को नई ताकत देगी। लेकिन वास्तविकता यह है कि आयात महँगा होने से अमेरिकी उपभोक्ताओं पर सीधा बोझ पड़ा है। रोजमर्रा की वस्तुएँ महँगी हुई हैं, महँगाई बढ़ी है और उपभोग घटा है। व्यापारिक साझेदार देशों ने भी पलटवार करते हुए अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ लगाया है। इससे अमेरिकी निर्यात घटा है और अंतरराष्ट्रीय बाजारों में प्रतिस्पर्धा कमजोर हुई है। जिस नीति को अमेरिका की मजबूती का औजार बताया जा रहा था, वही उसकी कमजोरी का कारण बन गई है।
कूटनीतिक मोर्चे पर भी अलग-थलग हो रहा अमेरिका
अमेरिका की मंदी का असर केवल उसके भीतर सीमित नहीं रहेगा बल्कि इसका असर पूरी दुनिया पर पड़ेगा। जब अमेरिकी मांग घटेगी तो चीन, भारत, जापान और यूरोप जैसे देशों का निर्यात प्रभावित होगा। डॉलर की अस्थिरता वैश्विक वित्तीय बाजारों में उथल-पुथल मचाएगी और विदेशी पूँजी का प्रवाह कमजोर होगा। उभरती अर्थव्यवस्थाओं पर दबाव बढ़ेगा। ट्रंप की नीतियों ने अमेरिका को न केवल आर्थिक बल्कि कूटनीतिक मोर्चे पर भी अलग-थलग कर दिया है। व्यापार युद्धों ने सहयोगी देशों के बीच अविश्वास पैदा किया है और अमेरिका की साख पर गहरी चोट की है।
सुधारों की बजाय टकराव और दावों की राजनीति में उलझा दिखता है ट्रंप प्रशासन
यदि अमेरिकी प्रशासन को अपनी अर्थव्यवस्था को वास्तविक मजबूती देनी है तो उसे संरक्षणवाद छोड़कर निवेश और नवाचार की दिशा में कदम बढ़ाने होंगे। शिक्षा और कौशल विकास में निवेश, नई तकनीकों और हरित ऊर्जा को प्रोत्साहन और सामाजिक सुरक्षा तंत्र की मजबूती जैसे कदम ही अमेरिका को टिकाऊ विकास की ओर ले जा सकते हैं। लेकिन मौजूदा हालात में ट्रंप प्रशासन इन बुनियादी सुधारों की बजाय टकराव और दावों की राजनीति में उलझा हुआ दिखाई देता है।
मूडीज की चेतावनी, मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर की गिरावट, सरकारी नौकरियों में कटौती और बढ़ते राष्ट्रीय कर्ज सब मिलकर यही संकेत देते हैं कि ट्रंप की नीतियाँ अमेरिका को मजबूती देने के बजाय और कमजोर कर रही हैं। “अमेरिका फर्स्ट” की आड़ में अपनाई गई टैरिफ रणनीति अल्पकाल में राजनीतिक लाभ तो दे सकती है, लेकिन दीर्घकाल में यह अमेरिका को मंदी, बेरोजगारी और वैश्विक अलगाव की ओर धकेल रही है। यदि जल्द ही ठोस और संतुलित नीतियाँ नहीं अपनाई गईं तो दुनिया की सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था का यह डगमगाना पूरे वैश्विक आर्थिक ढाँचे को हिलाने का एक अहम कारण बनेगा।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी