आपातकाल: मंडप से दूल्हे को ले जाकर करा दी जाती थी नसबन्दी


सुल्तानपुर, 24 जून (हि.स.)। अपनी जिंदगी में इस तरह का आपातकाल न कभी मैंने देखा था और न ही कभी मैं देखूंगा। वह काला दिन मैं कभी भूल सकता हूँ। एक तुगलकी फरमान (आपातकाल) ने न जाने कितने का घर और जिंदगी बर्बाद कर दिया । उस दौरान मंडप से दूल्हा उठा ले जाते थे, उनकी नसबंदी करा दी जाती थी। यहां तक कि मैं पुलिस सेवा में था इसके बाद भी जब घर आता था तो डर लगा रहता था , इसीलिए मुझे भी पुलिस वर्दी में ही रहना पड़ता था। बराबर डर लगा रहता था। कि मुझे भी उठा ले जाकर कहीं नसबन्दी न करा दे।
उत्तर प्रदेश के जिला सुलतानपुर नगर निवासी हरिनारायण राय को पुलिस सेवा के दौरान उत्कृष्ट सेवा के लिए दो बार राष्ट्रपति द्वारा पुलिस सेवा पदक से सम्मानित किया गया था। श्री राय ने आपात काल के पचास साल की याद को हिन्दुस्थान समाचार के संवाददाता से विस्तार से बात की।
आपातकाल के दिनों को याद करते हुए उनके मन में एक गुस्सा था। श्री राय ने बताया कि
सरकारी नौकरशाहों के ऊपर इतना दबाव था कि उन्हें प्रतिदिन नसबन्दी केस देने पड़ते थे इसीलिए लोग गांव-गांव घूम कर के जबरदस्ती लोगों को उठा ले जाते थे । उन पर दबाव डाला जाता था। केश नहीं लाने पर नौकरी से बर्खास्त करने की धमकी भी दी जाती थी । उन्होंने बताया कि हमारे बड़े भाई गिरजा शंकर राय इंटर कॉलेज में प्रवक्ता पद कार्यरत थे । उस समय उनकी जबरदस्ती नसबंदी करा दी गई । उसके बाद उनके दो बच्चे हुए ,फिर घर में एक बड़ा हंगामा भी हुआ ।
उन्होंने बताया कि मंडप से दूल्हा भी उठा लिया जाता था और उसकी भी नसबंदी करा दी जाती थी। गांव में लोग अपना घर बार छोड़कर बाग- बगीचा, नदी के किनारे दिनभर लोग भूखे- प्यासे छिपे रहते थे। देर रात डरते हुए लोग अपने घर को वापस आते थे । भूख -प्यास के मारे लोग तड़प जाते थे। तब तो किसी प्रकार का टेलीफोन, मोबाइल आज की तरह सुविधा भी नहीं था कि लोग पता करते कहां छिपे हैं ,कि कुछ खाने पीने की चीजें पहुंचा सकें । इतना आतंक आज तक हमने अपनी जिंदगी में कभी नहीं देखा । ऐसे मे आपातकाल को आखिर मैं कैसे भूल सकता हूं ।
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हिन्दुस्थान समाचार / दयाशंकर गुप्ता