हिंदी गजल को नए आयाम पर ले जाने वाले कवि दुष्यंत कुमार का मुरादाबाद से रहा गहरा नाता
मुरादाबाद, 29 दिसम्बर (हि.स.)। किसी रेल सी गुजरती है, मैं किसी पुल सा थरथराता हूं... जैसी पंक्तियां कहने वाले इस महान ओजस्वी शायर दुष्यंत कुमार का मुरादाबाद से गहरा नाता रहा है। 30 दिसम्बर को दुष्यंत कुमार की 50वीं पुण्यतिथि है।
वरिष्ठ साहित्यकार डॉ मनोज रस्तोगी ने बताया हैं कि उत्तर प्रदेश के जनपद सहारनपुर के गांव डंगहेड़ा की रहने वालीं राजेश्वरी देवी का दुष्यंत कुमार से विवाह 30 नवम्बर 1949 को हुआ था। इसके बाद वो मुरादाबाद आते-जाते रहे। मुरादाबाद में रहकर ही दुष्यंत कुमार ने पढ़ाई की। मुरादाबाद के हिंदू कॉलेज से बीएड (उस समय बीटी) किया था। इसके बाद इलाहाबाद विश्वविद्यालय से एमए करने के बाद 1957-58 में हिंदू कॉलेज के जंतु विज्ञान विभाग के सेवानिवृत्त प्रोफेसर अपने ममेरे भाई डॉ. वीके त्यागी के मुरादाबाद स्थित घर पर रहकर दुष्यंत ने अपनी रचनाधर्मिता को रफ्तार दी थी।
दुष्यंत कुमार बाद में भोपाल में आकाशवाणी के डिप्टी डायरेक्टर बनने के बाद वहीं शिफ्ट हो गए थे। वहां जाने के बाद वह फिर मुरादाबाद नहीं लौटे। एक बार चाची (दुष्यंत कुमार की पत्नी) राजेश्वरी देवी मुरादाबाद आई थीं। इसके वर्षों बाद उनका बेटा आलोक 27 जुलाई 2023 को एक साहित्यिक कार्यक्रम में मुरादाबाद आया था।
हिंदी गजल को नए आयाम पर ले जाने वाले कवि दुष्यंत कुमार जब गजल के महान हस्ताक्षर रहे जिगर मुरादाबादी से मिले तो उनकी गजलों पर रवानी आई।
डा मनोज का कहना है कि 1957 तक दुष्यंत कुमार स्थापित कवि के रूप में पहचाने जाने लगे थे। उन दिनों गजल पर उन्होंने बहुत काम नहीं किया था लेकिन मुरादाबाद में रहने और जिगर मुरादाबादी से मिलने के बाद उन्होंने गजलें ही लिखीं। यहीं से उनकी गजलों को पहचान मिली। इतना ही नहीं उनके द्वारा लिखित दो उपन्यास भी मुरादाबाद प्रवास के दौरान जन्में विचारों की देन है।
हिन्दुस्थान समाचार / निमित कुमार जायसवाल
