माता मावली-विष्णु के कल्की अवतार काे समर्पित जोड़ा होलिका दहन व श्रीजगन्नाथ मंदिर में हाेली खेलने की परंपरा


जगदलपुर, 14 मार्च (हि.स.)। बस्तर की रियासत कालीन शताब्दियाें पुरानी परंपरानुसार गुरुवार देर रात्रि 11:45 बजे मावली मंदिर के सामने माता मावली, भगवान श्रीजगन्नाथ एवं भगवान विष्णु के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन संपन्न हुआ। जिसमें बड़ी संख्या में श्रद्धालु अपनी-अपनी आस्था के अनुरूप स्वयं जाेड़ा हाेलिका कुंड की पूजा-अर्चना के साथ श्रीफल का अर्पण कर मंगलकामना का पुण्य लाभ अर्जित करते रहे। उल्लेखनीय है कि जोड़ा होलिक दहन में भक्त प्रहलाद और होलिका गौण हो जाते हैं, इनके स्थान पर कृष्ण के रूप में श्रीहरि विष्णु के कलयुग के अवतार कल्की के साथ माता मावली काे समर्पित कर रियासत कालीन हाेलिका दहन की परंपरा का निर्वहन किया जाता, इसके दाे हाेलिका कुड़ में एक में माता मावली का सफेद पताका लगाया जाता है, वहीं एक अन्य हाेलिक कुंड में भगवान विष्णु के कल्की अवतार कलंकी मंदिर के लाल पताका जाता है।
इससे पूर्व 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा रियासत कालीन परंपरानुसार श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) निकाली गई। इस दाैरान विलुप्तता की कगार में पहुंच चुकी नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल लाई गई, जहां जाेड़ा हाेलिका कुड़ के तीन परिक्रमा के बाद उसके समक्ष रखकर परंपरानुसार जाेड़ा हाेलिका कुड़ एवं जाेड़ा डाेली की पूजा-अर्चना के बाद माता मावली, भगवान जगन्नाथ एवं श्रीकृष्ण के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन संपन्न किये जाने की परंपरा का निर्वहन 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के द्वारा संपन्न कराया गया। इसके बाद भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) काे श्रीजगन्नाथ मंदिर से स्थापित किया गया । वहीं आज शुक्रवार काे विशेष पूजा में प्रभु श्रीजगन्नाथ, माता सुभद्र व बलभद्र स्वामी काे अबीर-गुलाल अर्पित कर चना एवं गुड़ का भाेग अर्पित किया गया। इसके उपरांत श्रृद्धालुओं काे अबीर-गुलाल का टीका लगकर चना एवं गुड़ का प्रसाद वितरित कर श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ के श्रीकृष्ण अवतार के साथ हाेली खेलने की परंपरा का निर्वहन किया गया।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के अध्यक्ष वेदप्रकाश पांडे ने बताया कि रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन करते हुए माता मावली, भगवान जगन्नाथ एवं श्रीकृष्ण के कल्की अवतार कलंकी मंदिर को समर्पित जोड़ा होलिका (दो होली) दहन किया गया। इस जोड़ा होलिका दहन की रियासत कालीन परंपरा का निर्वहन आज भी अनवरत 615 वर्षों से 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज करता चला आ रहा है, जिसमें श्रीजगन्नाथ मंदिर से श्रीकृष्ण की दो डोली नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल लाई जाती है। तदुपरांत परंपरानुसार पूजा विधान के बाद होलिका दहन की जाती है। इस दौरान बड़ी संख्या में श्रृद्धालू होलिका पूजन के बाद प्रज्वलित जाेड़ा होलिका की परिक्रमा कर पुण्य लाभ अर्जित करते रहे। वहीं आज शुक्रवार काे श्रीजगन्नाथ मंदिर में विशेष पूजा संपन्न का भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ के श्रीकृष्ण अवतार के साथ हाेली खेलने की परंपरा का निर्वहन किया गया।
360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज के वरिष्ठ सदस्य बनमाली पानीग्राही ने बताया कि रियासत कालीन जोड़ा होलिका दहन की शताब्दियों पुरानी परंपरा के निर्वहन के चलते श्रीजगन्नाथ मंदिर में नंगाड़े के धुन पर होली के फाग गाने की विलुप्त हो रही परंपरा को आज भी बनाये रखने के प्रयास में हम सफल रहे हैं। आगे भी 360 घर आरण्यक ब्राह्मण समाज इस परंपरा का निर्वहन करता रहेगा। उन्होने बताया कि जगदलपुर में होली के कई दिन पहले से नंगाड़े के धुन पर होली के फाग गाने का दौर शुरू हो जाता था, लेकिन अब लगभग फाग गाने की परंपरा विलुप्तता की कगार पर पंहुच चुकी है, अब लाेग नंगाड़ा के बजाए डीजे को ज्यादा महत्व दे रहे है।बावजूद इसके श्रीजगन्नाथ मंदिर से भगवान श्रीहरि विष्णु स्वरूप श्रीजगन्नाथ की श्रीकृष्ण के रूप में दाे डाेली (पालकी) निकालने एवं नगाड़े की थाप पर फाग गीताें के साथ जोड़ा होलिका दहन स्थल पंहुचाने की परंपरा का निर्वहन किया जा रहा है।
उल्लेखनीय है कि श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार भगवान श्रीहरि विष्णु के कुल 24 अवतार माने जाते हैं, किन्तु भगवान के मुख्य दस अवतारों की महिमा महत्वपूर्ण माने जाते हैं जिसमें वराह अवतार, मत्स्य अवतार, कूर्म (कच्छप) अवतार, नृसिंह अवतार, वामन अवतार, परशुराम अवतार, श्रीरामावतार, श्रीकृष्णावतार, भगवान बुद्ध अवतार, तथा दसवां भगवान का कल्कि अवतार प्रतीक्षित है। श्रीमद्भागवत पुराण के बारहवें स्कन्द के अनुसार कल्कि अवतार कल्कि भगवान का अवतार किसी भी समय हो सकता है। जिस काल में केवल यश के निमित्त कार्य किया जाएगा। जो धनहीन होगा, उसे चोर की संज्ञा दी जाएगी। पाखंडी और कपटी, साधु कहलाएंगे, बलवान, गुणवान, आचारवान और बुद्धिमान वे व्यक्ति कहलाएंगे, जिनके पास धन होगा। अधिक ज्ञान वालों को पंडित माना जायेगा। बीस से तीस की आयु परम आयु गिनी जायेगी। कलियुग के प्रभाव से शरीर छोटे हो जायेंगे। अकाल, वर्षा तथा राज्य के कर से प्रजा को क्लेश होगा। अन्न समाप्त हो जायेगा और वर्षा बन्द हो जायेगी। तब कलियुग पूरा हो जायेगा और सम्बल ग्राम में भगवान विष्णु का, यश नामक ब्राह्मण के घर कल्कि रूप में अवतार होगा, जिसका नाम देवदत्त होगा। तब फिर एक बार दुष्टों का विनाश होगा और लोगों के मन पुनः निर्मल हो जायेंगे। धर्म-कर्म, पूजा-पाठ, यज्ञादि में मनुष्यों की फिर से निष्ठा बन जायेगी। धर्म की स्थापना के लिए भगवान कल्कि के रूप में अवतार लेंगे, तब 'सतयुग' प्रवेश करेगा और प्रजा की संतान भी सतोगुणी होगी।
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हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे