ताजपुर में मुस्लिम परिवार खींचता है चार सौ साल पुराना रथ, सौहार्द की मिसाल बनी रथयात्रा


कोलकाता, 27 जून (हि.स.) ।
हावड़ा ज़िले के आमता थाना क्षेत्र के ताजपुर गांव में स्थित राय परिवार की रथयात्रा इस वर्ष अपने 400वें वर्ष में प्रवेश कर गई है। हालांकि यह रथ 'रायबाड़ी का रथ' के नाम से जाना जाता है, लेकिन इसका वास्तविक नाम 'श्रीधर रथ' है। भगवान जगन्नाथ के स्थान पर इस रथ पर विराजमान होते हैं राय परिवार के कुलदेवता श्रीधर, जिनकी प्रतिमा दरअसल एक शालग्राम शिला है।
इस रथयात्रा की सबसे अनोखी बात यह है कि इसकी शुरुआत हर साल एक मुस्लिम परिवार करता है। परंपरा के अनुसार, ताजपुर से सटे सारदा गांव का काजी परिवार पीढ़ियों से रथ खींचने और आयोजन की पूरी ज़िम्मेदारी निभा रहा है। वर्तमान में यह ज़िम्मेदारी साकू काजी के कंधों पर है, जो पहले उनके पिता खालेक काजी संभालते थे।
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1946 के दंगों के बाद शुरू हुई परंपरा
राय परिवार के वरिष्ठ सदस्य मानस राय बताते हैं कि उनके पूर्वज कभी बर्धमान महाराज के दीवान हुआ करते थे। 400 वर्ष पहले मोकुट राय नामक पूर्वज ने बर्धमान महाराज के आग्रह पर ताजपुर में इस रथयात्रा की शुरुआत की थी।
साल 1946 में जब पूरे बंगाल में सांप्रदायिक दंगे भड़क उठे थे, ताजपुर भी उसकी चपेट में आया। उस समय रथयात्रा को लेकर राय परिवार असमंजस में था कि ऐसी स्थिति में यात्रा निकाली जाए या नहीं। ऐसे समय में सारदा गांव के निवासी खालेक काजी ने आगे आकर न सिर्फ भरोसा दिलाया, बल्कि खुद व्यवस्था संभालते हुए मुस्लिम समुदाय के लोगों को रथ खींचने के लिए प्रेरित किया। इसके बाद राय परिवार ने परंपरा के तौर पर तय किया कि रथ की रस्सी सबसे पहले काजी परिवार ही खींचेगा। तब से यह परंपरा जारी है।
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मुस्लिम परिवार के लिए धार्मिक नहीं, सांस्कृतिक उत्सव
साकू काजी कहते हैं, हमारे लिए यह कोई धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि एक सांस्कृतिक उत्सव है, जिसमें सभी समुदायों के लोग शामिल होते हैं। यही बंगाल की असली संस्कृति है।
हर वर्ष रथयात्रा के दिन पुराने मंदिर से श्रीधर देवता की मूर्ति को पालकी में रथ तक लाया जाता है। सात ब्राह्मण यह कार्य विधिपूर्वक संपन्न करते हैं। फिर काजी परिवार के सदस्य रस्सी खींचकर रथयात्रा की शुरुआत करते हैं। गांव में इस मौके पर बड़ा मेला भी लगता है जिसमें आसपास के लोग बड़ी संख्या में शामिल होते हैं।
स्थानीय विधायक सुकांत पाल कहते हैं, मैं बचपन से इस रथ से जुड़ा रहा हूं। यह आयोजन सामूहिकता और सौहार्द्र का उदाहरण है। रथयात्रा और उससे जुड़ा मेला पूरे क्षेत्र को उत्सव में बदल देता है।
हिन्दुस्थान समाचार / ओम पराशर