शौर्य, वीरता और साहस का उत्सव है उत्तराखंड का लोक पर्व इगास
 
 
देहरादून, 31 अक्टूबर (हि.स.)। दीपावली के 11 दिन बार एकादशी काे लेकर प्रदेश के लाेगाें में उत्साह है। आज उत्तराखंड के प्रमुख लाेक पर्व इगास के दिन लक्ष्मी माता की पूजा नहीं हाेती बल्कि वीरभड़ माधों सिंह भंडारी के रण जीत के वापस आने की खुशी का पर्व मनाया जाता है। इस मौके पर घरों में विभिन्न व्यंजन बनाने के साथ ही साहस का प्रतीक भैलोखेला जाता है। ढोल-दमाऊ के साथ नृत्य करते हुए गांव-गांव मे बच्चे-बूढे, महिला और पुरुष भैलो खेल कर खुशियां मनाते हैं। भैलो रे भैलो, काखड़ी को रैलू, उज्यालू आलो अंधेरो भागलो...आदि गीत गाए जाते हैं।
उत्साह, उल्लास और उल्लार का पर्व इगास को बूढ़ी दीवाली, हर बोधिनी एकादशी, देवउठनी के रूप में भी जाना जाता है। उत्तराखंड की यह पुरानी परंपरा है। इगास को लेकर कई तरह की किंवदंतियां है। मान्यता के अनुसार गढ़वाल में भगवान श्रीराम के अयोध्या लौटने का समाचार देरी से पहुंचा था, 11 दिन बाद जब राम के लौटने का समाचार प्राप्त हुआ तो दीपावली मनाई गई। उत्तराखंड राम के लौटने की घटना को कम मान्यता मिली है। बहुसंख्यक इतिहासकारों व साहित्यकारों के साथ ही बुजुर्ग इसके वर्ष 1632 की घटना से जोड़कर मानते हैं। मान्यता है कि गढ़वाल नरेश राजा महिपत शाह के शासनकाल में तिब्बत युद्ध हुआ। युद्ध के सेनापति वीरमाधों सिंह भंडारी जीत के 11 दिन बाद लौटे तब वीर योद्धा माधो सिंह भंडारी और गढ़वाली सैनिकों के सम्मान में भैलों खेलकर इगास उत्सव मनाया गया।
किसे कहते हैं भैलो
चीड़ के पेड़ में एक अतिज्वलनशील लाल रंग की लकड़ी होती है। इसे स्थानीय भाषा में छिल्ला कहा जाता है। इस लकड़ी को लम्बाई में काटा जाता है और फिर बब्लू नाम की घास से रस्सी बनाकर इसे इस तरह बांधा जाता है कि वह खुले नहीं। छिल्ले बांधने के बाद जो एक निश्चित लंबाई तक रस्सी छोड़ दी जाती है। इस तरह भैला तैयार होता जाता है।
खेल न आता हो तो दूर से ही लें लुप्फ
फिर गांव की चौपाल में धुनी जलाकर सारे गांव के अपने-अपने भैले जलाते हैं। भैले जल जाने के बाद ढोल-दमाऊ के साथ लोग खेतों में जाते है ं और जले हुए छिल्लों को ढोल-दमाऊ की थाप पर आकर्षक तरीके से घुमाया जाता है। यह जोखिम भरा भी होता है, जिसे यह खेल नहीं आता वह इससे जल भी सकता है। इस दिन खेत-खेत में भैलो नृत्य देखने को मिलता है।
मुख्यमंत्री आवास में भी खेला जाएगा भैला
संस्कृति विभाग ने इस लोक उत्सव को जन-जन तक पहुंचाने के लिए इस बार मुख्यमंत्री आवास में भी भैलो खेलने का लोगों को निमंत्रण दिया है। मुख्यमंत्री ने निर्देश पर यह विशेष आयोजन किया जा रहा है।
हिन्दुस्थान समाचार / विनोद पोखरियाल
