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कालीमठ में त्रिशक्ति के रूप में होती महाकाली, महालक्ष्मी व महासरस्वती की पूजा

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रुद्रप्रयाग, 30 सितंबर (हि.स.)। भारत के 108 शक्तिपीठों में एक कालीमठ में महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती त्रिशक्ति के रूप में पूजी जाती हैं। नवरात्रों में कालीमठ में भक्तों की खूब भीड़ उमड़ती है। नवरात्र की अष्टमी को यहां रात्रिभर विशेष पूजा-अर्चना होती है।

रुद्रप्रयाग-गौरीकुंड राष्ट्रीय राजमार्ग पर गुप्तकाशी से लगभग 10 किमी की दूरी पर कालीमठ मंदिर है। यहां मां महाकाली की पूजा श्रीयंत्र के रूप में की जाती है, जो रजतपटल से ढका हुआ है।

मान्यता है कि देवासुर संग्राम में मां दुर्गा ने महाकाली का रूप धारण कर रक्तबीज राक्षस का वध किया था और इसी स्थान पर अंतर्ध्यान हो गई थीं। इसके बाद यहां पर महाशक्ति के रूप में मां काली की पूजा की जाने लगी। यूं तो यहां वर्षभर भक्त अपने परिवार के साथ दर्शन व पूजा-अर्चना को पहुंचते हैं, पर चैत्र व शारदीय नवरात्र पर कालीमठ में त्रिशक्ति के दर्शन और पूजा-अर्चना का विशेष महत्व है।

यहां नवरात्र की अष्टमी को महाकाली की विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। मध्य रात्रि में मंदिर परिसर में स्थित कुंड का अभिषकेक किया जाता है और चार पहर पूजा-अर्चना होती है। मंदिर परिसर में महालक्ष्मी व महासरस्वती के प्राचीन मंदिर हैं। इन मंदिरों में आराध्य मां लक्ष्मी व मां सरस्वती की काले पत्थर की मूर्ति है। मां सरस्वती अस्त्र-शस्त्र धारण किये हुए विराजमान है।

स्थानीय ग्रामीणों के अनुसार, पूर्व में कालीमठ मंदिर लकड़ी का बना हुआ था, जिसे बाद में श्री बदरीनाथ केदारनाथ मंदिर समिति (बीकेटीसी) व ग्रामीणों ने मिलकर जीर्णोद्धार किया। मंदिर के पुजारी आचार्य सुरेशानंद गौड़ बताते हैं कि इस स्थान पर त्रिशक्ति विराजमान हैं, जो दुर्लभ संयोग है। यहां पहुंचने वाले भक्तों को एक साथ आराध्य मां भगवती के तीनों रूपों के दर्शन हो जाते हैं। यही नहीं, इस स्थान पर भक्तों की सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। यह मंदिर श्रीबदरीनाथ-केदारनाथ मंदिर समिति के अधीन है।

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हिन्दुस्थान समाचार / दीप्ति