झाड़ग्राम : 400 वर्ष पुरानी परंपरा, रात में होती है प्रहराज राजबाड़ी में नवपत्रिका पूजा


झाड़ग्राम, 23 सितम्बर (हि. स.)। जिले के गोपीबल्लभपुर-2 ब्लॉक स्थित बेलियाबेड़ा प्रहराज राजबाड़ी में चार शताब्दियों से नवपत्रिका पूजा की प्राचीन परंपरा जीवित है। यहां सप्तमी से लेकर दशमी तक प्रतिदिन सूर्यास्त के बाद देवी की रात्रिकालीन आराधना होती है। पूजा की इस अद्वितीय रीति में प्रतिमा की नहीं, बल्कि नवपत्रिका की उपासना की जाती है।
मंदिर प्रांगण डुलुंग नदी के तट पर स्थित है। षष्ठी के दिन बेलवरण उत्सव सम्पन्न होता है, जबकि सप्तमी की सुबह डुलुंग नदी से घट भरकर लाया जाता है। दिनभर हवन और चंडीपाठ चलता है तथा सूर्यास्त के बाद देवी की आराधना प्रारंभ होती है। अष्टमी, नवमी और दशमी की संधिक्षण में परंपरा अनुसार चालकुमड़ा (कद्दू) बलि दी जाती है। पूजा पूर्ण होने पर कुलपुरोहित देवी को पान और नारियल का जल अर्पित करते हैं।
इस अनूठी परंपरा का सूत्रपात राजवंश के संस्थापक निमाईचांद प्रहराज ने किया था। कहा जाता है कि वे कभी उड़ीसा के राजा प्रतापरुद्र देव के सभासद थे और भाग्य अन्वेषण करते हुए बेलियाबेड़ा पहुंचे थे। स्थानीय मल्लराजा से भेंट के बाद उनका जीवन बदल गया।
प्रचलित कथा के अनुसार, उन्होंने अपनी पहचान छिपाकर राजदरबार में पाकशास्त्र का कार्य किया। राजा उनके भोजन से प्रसन्न हुए और उन्हें ‘प्रहराज’ की उपाधि दी। इसके बाद राजपरिवार की समृद्धि के लिए नवपत्रिका पूजा का शुभारंभ हुआ, जो आज तक चली आ रही है।
परंपरा में अनेक ऐतिहासिक प्रसंग जुड़े हैं। चौदहवें प्रहराज गोविंदराम ने बर्गी आक्रमण का प्रतिकार करने के लिए अपनी सेना तैयार की थी। इक्कीसवें प्रहराज कृष्णचंद्र ने संस्कृत में रचित ग्रंथ दुर्गोत्सव तरंगिणी का बांग्ला में अनुवाद कर साहित्य को अमूल्य निधि प्रदान की।
स्थानीय शिक्षक सुब्रत महापात्र का कहना है कि प्रहराज राजबाड़ी की नवपत्रिका पूजा अपने आप में विलक्षण है। इसमें इतिहास, संस्कृति और अध्यात्म का अद्भुत संगम दिखाई देता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / अभिमन्यु गुप्ता