सूरजपुर : एक हजार फीट की कठिन चढ़ाई कर श्रद्धालु दर्शन करने पहुंचते हैं कठौता धाम


सूरजपुर, 18 जून (हि.स.)। ऊंचे-ऊंचे पहाड़ों पर आस्था के केंद्र देखने को मिलते हैं, एक ऐसा ही धाम छत्तीसगढ़ के सूरजपुर जिले के प्रतापपुर तहसील के ग्राम पंचायत भेड़िया में स्थित है, जिसे कठौता धाम कहा जाता है। कठौता पहाड़ पर करीब एक हजार फीट की ऊंचाई पर स्थित धाम में बूढ़ी माई, कठौता पाट की पूजा होती है। प्राचीन काल से ही यह आस्था का केंद्र है लेकिन केवल बैगा, पंडा यहां आते थे, बावजूद इसके कि चढ़ाई बहुत कठिन है। जैसे -जैसे लोगों को इसके बारे में जानकारी हुई, अब बड़ी संख्या में श्रद्धालु यहां पहुंचने लगे हैं।
कठौता पहाड़ अंबिकापुर-बनारस मार्ग में स्थित है और कठौता धाम तक जाने का मुख्य रास्ता भेड़िया पंचायत भवन के पास से होकर है। जहां से वाहन सीधे पहाड़ के नीचे तक चला जाता है। दूसरा रास्ता नवाधकी पेंडारी से होकर है तथा एक रास्ता घाट पेंडारी से छूही खदान होकर भी है।
धाम के बारे में जानकारी देते हुए ग्राम पंचायत भेड़िया के पूर्व सरपंच देवसाय पोया बताते हैं कि, करीब एक हजार ऊंचे फीट पर धाम स्थित है। जहां बूढ़ी माई के साथ कठौता पाट, बंजारिन देवी, नांग देवता की पूजा होती है। यह धार्मिक स्थल प्राचीनकाल से ही है और पूजा पाठ होती है। पहले इस स्थान को लेकर कम लोग जानते थे, केवल बैगा, पंडा ही यहां तक पहुंचते थे, लेकिन कुछ वर्षों से बड़ी संख्या में श्रद्धालु आने लगे हैं। उन्होंने बताया कि प्रत्येक रविवार को आवश्यक रूप से पूजा होती है। स्थानीय लोगों के साथ दूर से भी श्रद्धालु आते हैं। चढ़ाई बहुत कठिन है लेकिन सभी कठिनाइयों के बावजूद श्रद्धालु यहां तक पहुंचते हैं।
उन्होंने बताया कि, यहां दूध पीने वाला सर्प भी है, यहां से कुछ दूर में एक कुआं और पानी का एक कुंड है। देवसाय बताते हैं कि, कठौता धाम हमारे लिए आस्था का प्रमुख केंद्र है, गांव में सुख समृद्धि का यह कारण है। अब तक शासन- प्रशासन की नजर इस पर नहीं है लेकिन पंचायत और ग्रामीण कठौता धाम के विकास के लिए प्रयास करते रहते हैं, यहां की सेवा के लिए जय कठौता पाट सेवा समिति भी बनी हुई है।
घाट पेंडारी में स्थित मंदिर के पुजारी कुंदन मिश्रा तथा पूर्व सरपंच देवसाय पोया कहते हैं कि, स्थानीय स्तर पर यह एक प्रमुख पूजा स्थल बनने जा रहा है। हर किसी के लिए कठिन चढ़ाई कर वहां तक जाना संभव नहीं इसलिए लोग नहीं जा पाते है। सीढ़ियों का निर्माण के साथ कठौता धाम तक जाने के लिए रास्ता कुछ सुगम हो जाए तो यह एक प्रमुख तीर्थ बन सकता है। इसके लिए शासन और प्रशासन को आगे आने की जरूरत है।
कठौता पाट से पहले है बाबापाट धाम
कठौता धाम पहाड़ के शीर्ष पर हैं तो इनसे कठिन दो सौ फिट पहले एक और धाम है, जिन्हें वाचापाट के नाम से जाना जाता है। यहां एक मूर्ति है और ऊपर जाने से पहले श्रद्धालु यहां पूजा करते हैं। कठौता धाम को लेकर ग्रामीणों में जबरदस्त आस्था है और कहा जाता है कि, पूजा के बाद मनोकामना पूर्ण होती है। मनोकामना के लिए श्रद्धालु यहां लाल चुनरी में लपेट कर नारियल बांधते हैं और ये बड़ी संख्या में अभी देखे जा सकते हैं।
रोमांच और खतरों से भरी है चढ़ाई
कठौता पहाड़ की चढ़ाई खतरनाक तो है ही, रोमांच से भी भरी है। कई जगहों पर एकदम सीधी चढ़ाई है और पत्थरों से होकर जाना पड़ता है। इस तरह की जगहों पर ग्रामीणों ने मोटी रस्सी बांध रखी है और इन्हें पकड़कर ही चढ़ाई पूरी करनी पड़ती है। रस्सियों का सहारा चढ़ाई को रोमांचकारी बना देता है। एक हजार फिट से ज्यादा की ऊंचाई पर स्थित कठौता धाम में लोहे का गेट लगाया गया है. अन्य कई तरह की सुविधाएं हैं। सबसे बड़ी बात है कि, ग्रामीण नीचे गांव से यहां तक बिजली ले आए हैं ताकि शाम के समय अंधेरे के कारण पूजा पाठ या आने जाने में दिक्कत न हो।
बारिश से जुड़ी है मान्यता
कठौता धाम की मान्यता बारिश को लेकर भी है और यहां पूजा के बाद ही क्षेत्र में बारिश होती है। स्थानीय ग्रामीणों का कहना है कि, मानसून से पहले यहां पूजा न हो तो बारिश वाली हवाएं कठौता पहाड़ से टकराकर वापस चली जाती हैं इसलिए नियमित तौर पर मानसून से पहले कठौता माता की पूजा अर्चना कर उन्हें प्रसन्न किया जाता है।
हिन्दुस्थान समाचार / विष्णु पांडेय