केविके परसौनी ने किसानों के बीच किया अजोला का प्रसार


पूर्वी चंपारण, 24 जुलाई (हि.स.)।जिले के पहाड़पुर प्रखंड स्थित परसौनी कृषि विज्ञान केन्द्र द्धारा अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के तहत किसानो के बीच अजोला का प्रसार किया जा रहा है।उक्त जानकारी देते हुए केन्द्र के मृदा विशेषज्ञ डाॅ आशीष राय ने बताया कि प्राकृतिक तरीके से तैयार अजोला एक जलीय फर्न है, जिसको नील हरित शैवाल भी कहते हैं जो कम लागत में और कम समय में तैयार होने वाला हरी खाद है,जिसकी भूमिका खरीफ की खेती में अति महत्वपूर्ण है और इसे धान की फसल के लिए वरदान माना जाता है।
इसमें प्रचुर मात्रा में नाइट्रोजन समेत अन्य पोषक पदार्थ होते हैं, जिससे धान के पौधों का बेहतर विकास होता है। धान की फसल में रोपनी करने के बाद पानी से भरे हुए खेत में अजोला को एक 1 किलोग्राम प्रति वर्ग मीटर की दर से डाला जाए तो यह बहुत तेजी से खेत में फैलता है,जो मिट्टी के लिए वरदान साबित हो सकता है।
डा.आशीष राय ने बताया कि वर्मी कंपोस्ट और कंपोस्ट बनाने में अगर अजोला का उपयोग किया जाए तो वर्मी कंपोस्ट में केंचुआ का वजन और विकास तेजी से होता है साथ ही साथ कंपोस्ट में ऑर्गेनिक मैटर भी बढ़ता है जिससे नाइट्रोजन की मात्रा खेत में बढ़ती है।भूमि के सेहत पर इसके सकारात्मक प्रभाव को देखते हुए परसौनी कृषि विज्ञान केंद्र परसौनी ने किसानों के लिए सही समय पर अजोला को उपलब्ध कराने के लिए अपने सहयोगियों डाॅ अंशू गंगवार, रुपेश कुमार, चुन्नु कुमार आदि के साथ कृषि विज्ञान केंद्र परसौनी में अजोला की यूनिट को बनाया है और किसानों के साथ मिलकर उनके तालाबों पर भी अजोला को वृहद स्तर पर उत्पादन के लिए तैयारी की है,जिससे इस वर्ष धान के खेत में किसान भाई बहनों को अजोला डलवा करके उसके फायदे और सकारात्मक पहलुओं को किसानों के बीच में समझाने का प्रयास किया जा रहा है।
उन्होने बताया कि अग्रिम पंक्ति प्रत्यक्षण के माध्यम से किसानों के बीच अजोला को धान के खेतों में प्रशिक्षण के लिए प्रयोग किया रहा है जिसका मुख्य उद्देश्य किसान भाई अपने खेतों में यूरिया के अधिक प्रयोग को कम किया जा सके और खेतो की उर्वरा शक्ति को प्राकृतिक तरीके से मजबूत बनाया जा सके।
-कैसे बनाये अजोला
वैज्ञानिक अंशू गंगवार ने बताया कि किसान भाइयों के लिए अजोला उत्पादन करना बहुत आसान है इसके लिए प्लास्टिक की सीट ले ले और इसको 6 बाई 4 फीट नाप कर काट लें और 1 फीट गहरा गड्ढा करके उसमें प्लास्टिक की सीट को डालकर प्लास्टिक के किनारों को चारों तरफ से ऊंचा करके मिट्टी से दबा दें और हो सके तो 20-25 सेंटीमीटर पानी भर दें लेकिन जहां पर भी इस यूनिट का निर्माण हो वह हल्का छायादार स्थान पर हो और वहां तापमान 25 से 30 डिग्री सेल्सियस के बीच में रहे जिससे अजोला के उत्पादन में बढ़ोतरी होती है। इसके बाद सीट पर उपजाऊ मिट्टी में 3-4 किलोग्राम वर्मी कंपोस्ट, 500 ग्राम सुपर सिंगल सुपर फास्फेट, 100 ग्राम पोटाश मिलाकर करीब 2-5 सेंटीमीटर की मोटाई की सतह बिछा दें और फिर इसके ऊपर पानी भर दें और जब पानी स्थिर हो जाए इसमें अजोला के कल्चर को डालाे। फिर 12 से 15 दिन के बीच में पूरे यूनिट में अजोला फैल जाएगा और फिर इसको धान के खेत में ट्रांसफर कर सकते हैं।
मिट्टी में कैसे और क्या काम करता है अजोला
अजोला हवा में उपस्थित नाइट्रोजन गैस को अपने अंदर स्थित कर लेता है और जब धान की फसल में पानी कम होता है तब यह मिट्टी के संपर्क में आता है और बढ़ने लगता है जिससे इसका अपघटन होता है यह कार्बनिक खाद के रूप में रहकर कुछ लाभदायक बैक्टीरिया जैसे नाइट्रोबैक्टर नाइट्रोसोमोनास की मदद से अकार्बनिक खाद नाइट्रेट के रूप में परिवर्तित हो जाता है यह प्रक्रिया धान की फसल में अत्यंत लाभदायक है। जब यह मिट्टी में अपघटित हो जाता है तब रबी की फसलों जैसे गेहूं, सरसो, मक्का, आदि को भी फायदा पहुंचाता है। इसके अलावा अजोला को मवेशियों को भी हरा चारा के रुप में खिला सकते हैं और ग्रास कार्प मछली को भी चारा के रुप में दे सकते हैं।
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हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार