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मल्टीनेशनल कंपनी की चमक-धमक छोड़ पकड़ी स्वरोजगार की डोर, पिथौरागढ़ के हिमांशु अब स्वावलंबन की ओर 

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मल्टीनेशनल कंपनी की चमक-धमक छोड़ पकड़ी स्वरोजगार की डोर, पिथौरागढ़ के हिमांशु अब स्वावलंबन की ओर 


सफलता की कहानी - उत्तराखंड के युवा अब खुद पैदा कर रहे रोजगार के अवसर - रोजगार सृजन में ला रहे नई क्रांति, खुलेंगे समृद्धि के द्वार - राज्य के विकास का प्रतीक बनेगा 'प्राइड ऑफ हिमालया' देहरादून, 29 नवंबर (हि.स.)। उत्तराखंड के युवा अब केवल नौकरी की तलाश में नहीं हैं बल्कि वे खुद रोजगार के अवसर पैदा कर रहे हैं। स्वरोजगार की दिशा में उठाए गए उनके कदम न केवल अपने भविष्य को संवार रहे हैं बल्कि समाज में भी बदलाव ला रहे हैं। ऐसा कर दिखाया है कि पिथौरागढ़ के हिमांशु जोशी ने। ये युवा अपने विचारों और हुनर से समाज को प्रेरित कर रहे हैं और रोजगार सृजन में एक नई क्रांति ला रहे हैं। इससे आत्मनिर्भर भारत की संकल्पना साकार होने के साथ बेरोजगारों की आंगन में खुशहाली छाएगी और समृद्धि के द्वार खुलेंगे। उत्तराखंड की पर्वतीय वादियों और समृद्ध सांस्कृतिक धरोहर से प्रेरित होकर पिथौरागढ़ के हिमांशु जोशी ने मल्टीनेशनल कंपनी की चमक-धमक छोड़ अपने खेतों में उगने वाली चाय पत्तियों और स्थानीय अनाजों को नई पहचान दी। 'प्राइड ऑफ हिमालया' के जरिए उन्होंने पहाड़ी किसानों को स्वरोजगार के नए रास्ते दिखाए। साथ ही उत्तराखंड के जैविक उत्पादों को दुनियाभर में पहचान दिलाने की दिशा में कदम बढ़ाए। आज उनका ब्रांड न केवल स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती दे रहा है बल्कि एक उदाहरण बन गया है। इससे न केवल व्यक्तिगत सफलता मिली बल्कि उत्तराखंड के हजारों किसानों की जिंदगी में भी बदलाव आया है। मुख्यमंत्री उद्यमशाला योजना से मिली प्रेरणा हिमांशु जोशी के इस साहसिक कदम में उत्तराखंड सरकार की मुख्यमंत्री उद्यमशाला योजना, ग्रामोत्थान योजना और अन्य जनकल्याणकारी योजनाओं का महत्वपूर्ण योगदान रहा। इन योजनाओं के माध्यम से हिमांशु ने पहाड़ी किसानों की मदद से जैविक उत्पादों को एक नया जीवन देने का निर्णय लिया। 'प्राइड ऑफ हिमालया' के साथ उनकी शुरुआत केवल एक व्यापारिक योजना नहीं, बल्कि एक सामाजिक बदलाव की दिशा में उठाया गया कदम था। आधुनिक सोच और पारंपरिक उत्पादों का संगम 'प्राइड ऑफ हिमालया' का उद्देश्य उत्तराखंड के पारंपरिक उत्पादों को आधुनिक तकनीक और विपणन के जरिए बढ़ावा देना था। हिमांशु जोशी ने स्थानीय चाय और मोटे अनाजों जैसे जौ, मडुआ, तिल आदि को मिलाकर स्वास्थ्यवर्धक और स्वादिष्ट मिठाइयों का निर्माण किया। इसके साथ ही चाय के 50 से अधिक प्रकारों में फ्लेवर्ड ग्रीन टी, हर्बल टी, मसाला चाय, औषधीय चाय, आइस टी आदि ने 'प्राइड ऑफ हिमालया' को न केवल उत्तराखंड, बल्कि देशभर में पहचान दिलाई। 600 किसानों का नेटवर्क और ऑनलाइन सफलता 'प्राइड ऑफ हिमालया' ने उत्तराखंड के चार पहाड़ी जिलों- पिथौरागढ़, अल्मोड़ा, चमोली और चंपावत में लगभग 600 किसानों का नेटवर्क तैयार किया है। अब इनके उत्पाद प्रमुख ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स जैसे अमेज़न, फ्लिपकार्ट, स्नैपडील, मीशो और टाटा 1mg पर उपलब्ध हैं, जिससे इनकी उपस्थिति देशभर में व्यापक हो चुकी है। इसके अलावा इसके वितरक नेटवर्क के माध्यम से यह उत्पाद ऑफलाइन भी प्रमुख शहरों में पहुंच रहे हैं। अंतरराष्ट्रीय बाजार में कदम रखने की योजना अब हिमांशु जोशी और उनकी टीम का लक्ष्य अंतरराष्ट्रीय बाजार में अपनी पहचान बनाना है। जल्द ही 'प्राइड ऑफ हिमालया' के उत्पाद अमेरिकी बाजार में भी लॉच किए जाएंगे। यही नहीं, यह ब्रांड 'अमेजन लॉच पैड साझेदारी' से भी जुड़ा हुआ है, जो एक बड़ा सम्मान है। सामाजिक जिम्मेदारी और पर्यावरणीय पहल हिमांशु जोशी का मानना है कि व्यापार केवल मुनाफा कमाने का माध्यम नहीं, बल्कि समाज और पर्यावरण के प्रति जिम्मेदारी निभाने का भी एक रास्ता है। 'प्राइड ऑफ हिमालया' हर साल अपने प्लास्टिक और कार्बन पदचिह्न का मूल्यांकन करता है और इसे घटाने के लिए कदम उठाता है। कंपनी ने प्लास्टिक रीसाइक्लिंग, नवीकरणीय ऊर्जा और ऊर्जा दक्षता में निवेश करने की दिशा में कई पहलें शुरू की हैं। इसके अलावा कंपनी के राजस्व का एक हिस्सा सीमांत किसानों के बच्चों की शिक्षा पर खर्च किया जाता है, ताकि उन्हें एक उज्जवल भविष्य मिल सके। किसानों की आजीविका में हुआ सुधार, 'प्राइड ऑफ हिमालया' ने जगाई नई उम्मीद हिमांशु जोशी की यह सफलता की कहानी केवल एक बिजनेस मॉडल नहीं, बल्कि एक सामाजिक आंदोलन बन चुकी है। 'प्राइड ऑफ हिमालया' ने न केवल पिथौरागढ़ के किसानों की आजीविका में सुधार किया, बल्कि उनके जीवन में एक नई उम्मीद भी जगाई। यह ब्रांड उत्तराखंड के विकास का प्रतीक बन चुका है, जो स्वरोजगार से स्वावलंबन की ओर बढ़ते हुए न केवल पहाड़ी क्षेत्रों को बल्कि पूरी दुनिया को दिखा रहा है कि अगर ठानी जाए तो कोई भी सपना हकीकत में बदल सकता है।

हिन्दुस्थान समाचार / कमलेश्वर शरण