(संशोधित) आततायियों और अत्याचारियों के विनाशक हैं भगवान श्री कृष्ण


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उदय कुमार सिंह
नई दिल्ली, 15 अगस्त (हि.स.)।
देश और दुनियाभर में जन्माष्टमी अर्थात भगवान कृष्ण का जन्मोत्सव इस वर्ष 16 अगस्त को मनाया जाएगा। संपूर्ण भारत वर्ष में इस त्योहार का उत्साह देखने योग्य है। श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूर्ण आस्था एवं श्रद्धा के साथ मनाया जाता है। भगवान विष्णु ने पृथ्वी को पापियों से मुक्त करने के लिए कृष्ण रुप में इसी दिन अवतार लिया था। भाद्रपद माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि में रोहिणी नक्षत्र में माता देवकी और वासुदेव के पुत्र रूप में उनका जन्म हुआ।
भूलोक पर जब-जब असुरों के अत्याचार बढ़े हैं और धर्म का पतन हुआ है, तब-तब भगवान (भगवान विष्णु) ने पृथ्वी पर अवतार लेकर सत्य और धर्म की स्थापना की है। इसी कड़ी में भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मध्यरात्रि के अभिजित मुहूर्त में अत्याचारी कंस का वध करने के लिए मथुरा में भगवान कृष्ण ने अवतार लिया। एक ऐसा अवतार जिसके दर्शन मात्र से प्राणियों के घट-घट के संताप, दुःख, पाप मिट जाते हैं।
हमारे वेदों में चार रात्रियों का विशेष महातम्य बताया गया है। दीपावली जिसे कालरात्रि कहते हैं। शिवरात्रि महारात्रि है। श्रीकृष्ण जन्माष्टमी मोहरात्रि और होली अहोरात्रि है। जिनके जन्म के संयोग मात्र से बंदी गृह के सभी बंधन स्वत: ही खुल गए, सभी पहरेदार घोर निद्रा में चले गए, माँ यमुना जिनके चरण स्पर्श करने को आतुर हो उठीं, उस भगवान श्री कृष्ण को संपूर्ण श्रृष्टि को मोह लेने वाला अवतार माना गया है। इसी कारणवश जन्माष्टमी की रात्रि को मोहरात्रि कहा गया है। इस रात में योगेश्वर श्रीकृष्ण का ध्यान, नाम अथवा मंत्र जपते हुए जगने से संसार की मोह-माया से आसक्ति हटती है। जन्माष्टमी के व्रत को “व्रतराज” कहा गया है। इसके सविधि पालन से प्राणी अनेक व्रतों से प्राप्त होने वाली महान पुण्य राशि प्राप्त कर सकते हैं।
श्री कृष्ण जन्माष्टमी पर क्या होता है?
भगवान श्री कृष्ण का जन्मोत्सव प्रत्येक वर्ष भाद्रपद मास में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को भक्ति-भाव एवं हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। देश भगवान श्री कृष्ण की भक्ति में लीन हो जाता है। संपूर्ण संसार में श्रद्धा, भक्ति एवं उल्लास का माहौल होता है। इस पावन पर्व पर मंदिरों को आकर्षक ढंग से सजाया और संवारा जाता है। देश श्री कृष्ण की भक्ति एवं रंग में डूबा हुआ होता है। हर किसी पर भगवान श्री कृष्ण का रंग चढ़ा होता है। भजन, कीर्तन तथा आध्यात्मिक एवं सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। भव्य एवं आकर्षक झाकियां निकाली जाती हैं। भगवान श्री कृष्ण की लीलाओं को दर्शाया जाता है। हर मंदिर, हर घर भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति में सराबोर होता है। चारों ओर नटखट कन्हैया के दर्शन होते हैं। माधव, केशव, कान्हा और कन्हैया जैसे नामों से पुकारे जाने वाले भगवान श्रीकृष्ण की पूजा, अर्चना, आराधना एवं साधना की जाती है।
मथुरा की श्री कृष्ण जन्माष्टमी
भाद्रपद माह में कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाए जाने वाले श्रीकृष्ण जन्मोत्सव की रौनक वैसे तो देश और दुनियाभर में देखने को मिलती है। लेकिन मथुरा, वृंदावन और द्वारका में इस अवसर पर विशेष अनुष्ठान होते हैं। वातावरण में नन्द के आनंद भए, जय कन्हैया लाल की के स्वर गूंजते रहते हैं। यहां श्री कृष्ण जन्माष्टमी पूरी श्रद्धा, भक्ति, हर्ष एवं उल्लास के साथ मनाई जाती है। पूजन, भजन, कीर्तन और लीलाओं का आयोजन होता है।
मथुरा में
प्रातः चार बजे की मंगल आरती के उपरांत आठ बजे शृंगार आरती होती है। भगवान श्रीकृष्ण का संपूर्ण विधि-विधान के साथ अभिषेक किया जाता है। भगवान का दिव्य शृंगार किया जाता है। पंचामृत स्नान के बाद आरती वंदन किया जाता है। संध्या बेला में झूला बनाकर बालकृष्ण को उसमें झुलाया जाता है। रात के बारह बजते ही मंदिरों में घंटे-घड़ियाल बजने लगते हैं। पंचामृत से भगवान श्री कृष्ण को स्नान कराया जाता है और फिर सुंदर वस्त्र पहनाकर बालगोपाल का स्वागत किया जाता है। भगवान भोग लगाने के उपरांत भगवान श्रीकृष्ण की दिव्य आरती की जाती है।
भगवान श्री कृष्ण के जन्मोत्सव का जितना महत्व कान्हा की नगरी मथुरा में होता है, उतना ही महत्व द्वारिका में भी इस उत्सव का होता है। अतः दोनों स्थानों पर भक्तों की भारी भीड़ होती है। मंदिरों में भक्तों का तांता लगा रहता है। देश-विदेश से पहुंचे श्रद्धालु भगवान कृष्ण के दर्शन और पूजन कर पुण्य के भागी बनते हैं। दुःख, दर्द, कष्ट और क्लेशों से मुक्ति पाते हैं। भगवान कृष्ण की कृपा से मनुष्यों के सभी प्रकार के मनोरथ पूर्ण होते हैं।
कौन हैं भगवान श्री कृष्ण ?
पृथ्वी पर जब-जब असुर एवं राक्षसों के पापों का आतंक व्यापत होता है, तब-तब भगवान विष्णु किसी न किसी रूप में अवतरित होकर पृथ्वी के भार को कम करते हैं। आततायियों और अत्याचारियों का विनाश करते हैं। भगवान श्री कृष्ण का अवतरण भी इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु हुआ। भगवान श्री कृष्ण को श्री हरि विष्णु का आठवां अवतार माना जाता है।
सोलह कलायुक्त भगवान श्री कृष्ण ही थे, जिन्होंने पांडव पुत्र अर्जुन को कायरता से वीरता और विषाद से प्रसाद की ओर जाने का दिव्य संदेश दिया। भयंकर विषधर कालिया नाग के फन पर नृत्य किया। दुर्योधन के छप्पन भोग को नकार कर विदुराणी का साग खाया, कंस के अत्याचारों से मानव जाति को मुक्त करवाया और गोवर्धन पर्वत को उठाकर गिरिधारी कहलाए। भगवान श्री कृष्ण ने शिशुपाल की गालियां सुनीं, तो क्रोध आने पर उन्होंने सुदर्शन चक्र भी उठाया।
मानव जाति और जगत के कल्याण के लिए श्री कृष्ण देवकी और वासुदेव के आठवें पुत्र के रूप में अवतार लिए, ताकि कंस जैसे दुष्टआत्मा के अत्याचार से वे साधु, संतों, महात्माओं और मनुष्यों को मुक्त करा सकें। भगवान कृष्ण ने अपने मामा कंस का वध कर न केवल अपने माता-पिता को उसके चंगुल से मुक्त कराया, बल्कि यह संदेश भी दिया कि झूठ, फरेब, दूराचार, अन्याय और अत्याचार करने वालों का अंत सुनिश्चित है।
अन्याय एवं अत्याचार नाशक हैं सुदर्शनधारी
अन्याय एवं अत्याचार नाशक हैं सुदर्शनधारी। आततायियों के विनाशक हैं चक्रधारी। गोवर्धन पर्वत उठाने वाले हैं गिरिधारी। रासलीला करने वाले हैं रसिक बिहारी। कर्म पर विश्वास करने वाले हैं बांके बिहारी। संपूर्णता के परिचायक हैं वृंदावन बिहारी। सोलह कलाओं से युक्त हैं केशव। व्यापक एवं महान हैं माधव। मधु दैत्य का वध करने वाले हैं मधुसूदन। दुष्टों का दमन करने वाले हैं जनार्दन। नटखट, माखनचोर और मनप्रीत हैं नटवरनागर। हर किरदार निभाते हैं गोपियों के प्रियवर।
यदुकुल में अवर्तीण हुए श्री कृष्ण श्रीहरि विष्णु हैं। सत्व की कमी नहीं होने के कारण सातत्व हैं। उपनिषदों से प्रकाशित होने के कारण आर्षभ हैं। वेद ही आपके नेत्र हैं। अतः आप वृषभक्षेण हैं। नरों को आश्रय देने वाले आप ही नारायण हैं। ईश होने से आप हृषीकेश हैं। संपूर्ण विश्व में व्याप्त विष्णु हैं। पृथ्वी-आकाश को धारण करने वाले दामोदर हैं। नित्य होने के कारण अनंत हैं। आप गो-इंद्रियो के ज्ञाता गोविंद हैं।
श्री कृष्ण एक ऐसे एकांकी नायक हैं, जिनमें जीवन के सभी पक्ष विद्यमान हैं। भगवान कृष्ण से हमें ऐसी कई शिक्षा मिलती हैं, जो विपरीत परिस्थिति में भी सकारात्मक सोच को कायम रखने की सीख देती हैं। कृष्ण के जन्म से पहले ही उनकी मृत्यु का षड्यंसत्र रचा जाना और कारावास जैसे नकारात्मक परिवेश में जन्म होना, किसी त्रासदी से कम नहीं था। परंतु विपरीत परिस्थितियों के बावजूद मुरलीधरण ने जीवन की सभी विधाओं को बहुत ही उत्साह से जीवंत किया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / उदय कुमार सिंह / पवन कुमार
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