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'राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान' दिन में सपने जैसा : डॉ. विष्णु सक्सेना

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'राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान' दिन में सपने जैसा : डॉ. विष्णु सक्सेना


'राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान' दिन में सपने जैसा : डॉ. विष्णु सक्सेना


झांसी, 05 अगस्त (हि.स.)। राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान मेरे लिए दिन में सपने जैसा है। मैं तो विश्वास ही नहीं कर रहा था। जब मुझे पता चला कि मुझे राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से सम्मानित किया जा रहा है। यह कहना था देश के सुप्रसिद्ध कवि डॉ. विष्णु सक्सेना का। उन्हें बीती शाम राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त की 139वीं जयंती पर राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सम्मान से बुन्देलखंड विश्वविद्यालय के गांधी ऑडिटोरियम में हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित कार्यक्रम में सम्मानित किया गया है। सम्मान पाकर वह अभिभूत हो उठे।

हिन्दुस्थान समाचार से बातचीत में उन्होंने कहा कि जो खुशी एक सम्मान प्राप्त करने वाले को होती है वही खुशी मुझे यह सम्मान प्राप्त करके मिली है। यह मेरे लिए एक अभूतपूर्व उपलब्धि है। अब यह जिम्मेदारी भी उनके हिस्से में है। कोई सम्मान प्राप्त करने के साथ ही उसे निर्वाह करने का दायित्व भी बढ़ जाता है। उन्होंने आगे कहा कि दद्दा मैथिलीशरण गुप्त राष्ट्र के चिंतक थे, इसलिए उन्हें राष्ट्रकवि की उपाधि मिली। यही नहीं उन्होंने सामाजिक कुरीतियों पर भी लिखा और राष्ट्र के चिंतन पर भी लिखा। उनके बहुत सारे प्रसंग ऐसे हैं जो हमें प्रेरणा देते हैं। हमारे नौजवानों के लिए उनके प्रसंग इस समय अत्यधिक आवश्यक हैं। यदि युवा पढ़ते हैं तो जो बिखरा हुआ समाज है उसे एकजुट करने में सहायता मिलेगी। उन्होंने कहा कि दद्दा का कहना था कि इंसान के विचार उसके कपड़ों से नहीं पहचाने जा सकते। सादगी से बड़ा कोई फैशन नहीं होता। आपका दिखावा ज्यादा नहीं होना चाहिए। क्योंकि आपके कपड़े तो बदल जाते हैं लेकिन आपके जो विचार हैं वह नहीं बदलते। उन्होंने कहा कि साहित्य समाज का दर्पण होता है। जब तक हम साहित्य से नहीं जुड़ेंगे तब तक हम अपने आप को संस्कृति से नहीं जोड़ पाएंगे। उन्होंने वर्तमान परिवेश पर चिंता व्यक्त करते हुए बताया कि जिस देश को नष्ट करना हो उसकी संस्कृति नष्ट कर दीजिए, उसकी भाषा नष्ट कर दीजिए। आज योजनाबद्ध तरीके से वैसा ही हो रहा है। यदि आज हमारे युवा साहित्य को अपनाते हैं तो एक बेहतर समाज की परिकल्पना और निर्माण हम भविष्य में कर सकते हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / महेश पटैरिया