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मप्र के उज्जैन नागचंद्रेश्वर मंदिर में हैं नेपाल से लाई गई 11वीं शताब्दी की महादेव-पार्वती की अद्भुत प्रतिमा

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मप्र के उज्जैन नागचंद्रेश्वर मंदिर में हैं नेपाल से लाई गई 11वीं शताब्दी की महादेव-पार्वती की अद्भुत प्रतिमा


मप्र के उज्जैन नागचंद्रेश्वर मंदिर में हैं नेपाल से लाई गई 11वीं शताब्दी की महादेव-पार्वती की अद्भुत प्रतिमा


मप्र के उज्जैन नागचंद्रेश्वर मंदिर में हैं नेपाल से लाई गई 11वीं शताब्दी की महादेव-पार्वती की अद्भुत प्रतिमा


- पूरी दुनिया में एकमात्र ऐसा मंदिर,जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शैय्या पर विराजमान

- नागपंचमी के दिन वर्ष में एक बार 24 घंटे के लिए खुलते हैं पटउज्जैन, 28 जुलाई (हि.स.)। हिंदू धर्म में सदियों से नागों की पूजा करने की परंपरा रही है। भारत में नागों के अनेक मंदिर हैं, इन्हीं में से एक मंदिर है मध्य प्रदेश का उज्जैन स्थित नागचंद्रेश्वर, जो भगवान महाकाल की नगरी उज्जैन में स्थि‍त है। इस मंदिर की खास बात यह है कि यह साल में सिर्फ एक दिन नागपंचमी (श्रावण शुक्ल पंचमी) पर ही दर्शनों के लिए खोला जाता है। ऐसी मान्यता है कि नागराज तक्षक स्वयं मंदिर में रहते हैं। देशभर में मंगलवार, 29 जुलाई को नागपंचमी का पर्व मनाया जाएगा। इस दिन साल में एक बार महाकाल मंदिर के शिखर पर विराजमान सिद्धेश्वर महादेव व नागचंद्रेश्वर भक्तों को 24 घंटे के लिए दर्शन देते हैं।

महाकालेश्वर मंदिर समिति के प्रशासक प्रथम कौशिक ने सोमवार को बताया कि नागपंचमी पर इस वर्ष एक बार होने वाले भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए आज रात 12 बजे मंदिर के पट खोल दिए जाएंगे। दूसरे दिन मंगलवार को नागपंचमी पर रात 12 बजे मंदिर में फिर आरती होगी और मंदिर के पट पुनः बंद कर दिए जाएंगे। नागचंद्रेश्वर मंदिर की पूजा और व्यवस्था महानिर्वाणी अखाड़े के संन्यासियों द्वारा की जाती है। उन्होंने बताया कि नागपंचमी महापर्व पर देशभर से पांच लाख से अधिक भक्तों के भगवान महाकाल व नागचंद्रेश्वर के दर्शन करने आने का अनुमान है। दोनों मंदिरों में प्रवेश की व्यवस्था अलग है, इसलिए दर्शन की कतार भी अलग रहेगी।

दशमुखी सर्प शैय्या पर विराजमान हैं भोले भंडारी-

गौरतलब है कि नागचंद्रेश्वर मंदिर में 11वीं शताब्दी की एक अद्भुत प्रतिमा है, इसमें फन फैलाए नाग के आसन पर शिव-पार्वती बैठे हैं। कहते हैं यह प्रतिमा नेपाल से यहां लाई गई थी। उज्जैन के अलावा दुनिया में कहीं भी ऐसी प्रतिमा नहीं है। पूरी दुनिया में यह एकमात्र ऐसा मंदिर है, जिसमें विष्णु भगवान की जगह भगवान भोलेनाथ सर्प शैय्या पर विराजमान हैं। मंदिर में स्थापित प्राचीन मूर्ति में शिवजी, गणेशजी और मां पार्वती के साथ दशमुखी सर्प शैय्या पर विराजित हैं। शिवशंभू के गले और भुजाओं में भुजंग लिपटे हुए हैं।

पौराणिक मान्यता है कि सर्पराज तक्षक ने शिवशंकर को मनाने के लिए घोर तपस्या की थी। तपस्या से भोलेनाथ प्रसन्न हुए और उन्होंने सर्पों के राजा तक्षक नाग को अमरत्व का वरदान दिया। मान्यता है कि उसके बाद से तक्षक राजा ने प्रभु के सा‍‍‍न्निध्य में ही वास करना शुरू कर दिया। लेकिन महाकाल वन में वास करने से पूर्व उनकी यही मंशा थी कि उनके एकांत में विघ्न ना हो अत: वर्षों से यही प्रथा है कि मात्र नागपंचमी के दिन ही वे दर्शन को उपलब्ध होते हैं। शेष समय उनके सम्मान में परंपरा के अनुसार मंदिर बंद रहता है। इस मंदिर में दर्शन करने के बाद व्यक्ति किसी भी तरह के सर्पदोष से मुक्त हो जाता है, इसलिए नागपंचमी के दिन खुलने वाले इस मंदिर के बाहर भक्तों की लंबी कतार लगी रहती है।

प्रचलित कथा के अनुसार नागचंद्रेश्वर महादेव (नागचंडेश्वर महादेव) के दर्शन से निर्माल्य लंघन से उत्पन्न पाप का नाश होता है। ऐसा कहा जाता है कि देवर्षि नारद एक बार इंद्र की सभा में कथा सुना रहे थे। इंद्र ने मुनि से पूछा कि हे देव, आप त्रिलोक के ज्ञाता हैं। मुझे पृथ्वी पर ऐसा स्थान बताओ, जो मुक्ति देने वाला हो। यह सुनकर मुनि ने कहा कि उत्तम प्रयागराज तीर्थ से दस गुना ज्यादा महिमा वाले महाकाल वन में जाओ। वहां महादेव के दर्शन मात्र से ही सुख, स्वर्ग की प्राप्ति होती है। वर्णन सुनकर सभी देवता विमान में बैठकर महाकाल वन आए। उन्होंने आकाश से देखा कि चारों ओर साठ करोड़ से शत गुणित लिंग शोभा दे रहे हैं। उन्हें विमान उतारने की जगह दिखाई नहीं दे रही थी।

इस पर निर्माल्य उल्लंघन दोष जानकर वे महाकाल वन नहीं उतरे, तभी देवताओं ने एक तेजस्वी नागचंद्रगण को विमान में बैठकर स्वर्ग की ओर जाते देखा। पूछने पर उसने महाकाल वन में महादेव के उत्तम पूजन कार्य को बताया। देवताओं के कहने पर कि वन में घूमने पर तुमने निर्माल्य लंघन भी किया होगा, तब उसके दोष का उपाय बताओ।

नागचंद्रगण ने ईशानेश्वर के पास ईशान कोण में स्थित लिंग का महात्म्य बताया। इस पर देवता महाकाल वन गए और निर्माल्य लंघन दोष का निवारण उन लिंग के दर्शन कर किया। यह बात चूंकि नागचंद्रगण ने बताई थी, इसीलिए देवताओं ने इस लिंग का नाम नागचंद्रेश्वर महादेव रखा ।

यह मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि परमार राजा भोज ने 1050 ईस्वी के लगभग इस मंदिर का निर्माण करवाया था। इसके बाद सिं‍धिया घराने के महाराज राणोजी सिंधिया ने 1732 में महाकाल मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया था। उस समय इस मंदिर का भी जीर्णोद्धार हुआ था। हर साल एक दिन मे लाखों लोग दर्शन लाभ लेते रहे हैं ।------------

हिन्दुस्थान समाचार / मुकेश तोमर