पिघलने लगी अमेरिका-भारत तनाव की बर्फ : अमेरिकी दूतावास का एक ट्वीट जो दे रहा खास संदेश

-डॉ. मयंक चतुर्वेदी
शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन (एससीओ) शिखर सम्मेलन के मंच पर इस बार का दृश्य कुछ अलग था। सात साल बाद चीन पहुँचे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी, रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग के साथ हंसी-खुशी बातचीत करते नजर आए। तीनों नेताओं की तस्वीरें जैसे ही सोशल मीडिया पर वायरल हुईं, अंतरराष्ट्रीय राजनीति के गलियारों में हलचल मच गई। यह मुलाकात इसलिए अहम थी क्योंकि पिछले कुछ वर्षों से भारत-चीन संबंधों पर लगातार तनाव की धुंध छाई हुई थी। सीमा विवाद से लेकर आर्थिक प्रतिस्पर्धा तक, हर जगह कड़वाहट महसूस की जा रही थी। लेकिन बीजिंग में मोदी की मौजूदगी और उनका खुले दिल से स्वागत बताता था कि रिश्तों की जमी बर्फ अब धीरे-धीरे पिघलने लगी है। यह सामान्य पल नहीं था, बल्कि कूटनीति के ठंडे रिश्तों में नई गर्माहट का प्रतीक था।
भारत-चीन संबंधों पर पिछले कुछ वर्षों से छाई सर्द हवा अब धीरे-धीरे नरम पड़ रही है। सीमा विवाद और तनाव की परतों के बीच यह दृश्य नई उम्मीद की किरण था। रूस, जो दशकों से भारत का भरोसेमंद साझेदार रहा है, अब चीन के साथ नई रणनीतिक धुरी बना चुका है। ऐसे में भारत का इन दोनों देशों के नेताओं से सहज संवाद संदेश देता है कि दिल्ली अब वैश्विक मंच पर संतुलन साधने की कोशिश कर रही है।
वस्तुत: बीजिंग की इस गर्मजोशी ने वॉशिंगटन को बेचैन कर दिया है। ठीक इसी बीच नई दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास ने अपने आधिकारिक ट्विटर अकाउंट से एक संदेश जारी किया, जिसने कूटनीति के गलियारों में हलचल मचा दी।
इसमें लिखा था, संयुक्त राज्य अमेरिका और भारत के बीच साझेदारी लगातार नई ऊँचाइयों को छू रही है, जो 21वीं सदी का एक निर्णायक रिश्ता है। इस महीने, हम उन लोगों, प्रगति और संभावनाओं पर प्रकाश डाल रहे हैं जो हमें आगे बढ़ा रहे हैं। नवाचार और उद्यमिता से लेकर रक्षा और द्विपक्षीय संबंधों तक, यह हमारे दोनों देशों के लोगों के बीच की स्थायी मित्रता ही है जो इस यात्रा को ऊर्जा प्रदान करती है। हैशटैग का अनुसरण करें और #USIndiaFWDforOurPeople का हिस्सा बनें।
इसमें फिर यूएसएम्बेसी इंडिया ने लिखा, सेकेटरी ऑफ स्टेट के माध्यम से लिखा, “हमारे दो देशों की स्थायी मित्रता हमारे सहयोग की नींव है और हमें आगे बढ़ाती है क्योंकि हम अपने आर्थिक संबंधों की अपार संभावनाओं को साकार करते हैं। –मार्को रूबियो
https://x.com/USAndIndia/status/1962394996310503925
यह ट्वीट ऐसे समय आया, जब पूरी दुनिया की निगाहें बीजिंग में हो रही एससीओ वार्ता पर थीं। विश्लेषक इसे अमेरिका का सकारात्मक संकेत मान रहे हैं, एक ऐसा संकेत जो बताता है कि ट्रंप प्रशासन भारत को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता। वस्तुत: यह ट्वीट साफ संकेत देता है कि अमेरिका भारत को अपने करीब बनाए रखने के लिए पहल कर रहा है। यह महज औपचारिक संदेश नहीं था, बल्कि उस बेचैनी का प्रतीक था, जो ट्रंप प्रशासन को संभावित रूप से भारत-रूस-चीन की बढ़ती नजदीकी से हो रही है।
क्यों बिगड़े भारत-अमेरिका रिश्ते?
दरअसल, पिछले कुछ समय से भारत और अमेरिका के रिश्तों में तल्खी बढ़ी है। ट्रंप प्रशासन ने भारत पर 50 प्रतिशत तक टैरिफ लगाया, जिससे व्यापारिक तनाव बढ़ा। रूस से सस्ता तेल आयात करने पर अमेरिका ने दिल्ली पर दबाव बनाया। बार-बार ट्रंप ने भारत-पाक युद्धविराम का श्रेय खुद लेने की कोशिश की और इसे चुनावी मुद्दा बनाया। मीडिया में खबरें आईं कि प्रधानमंत्री मोदी कई बार ट्रंप के फोन कॉल रिसीव नहीं कर पाए। इन घटनाओं ने माहौल को ठंडा कर दिया। रिश्ते जो कभी नई ऊँचाइयों की तरफ बढ़ रहे थे, अचानक तनाव और अविश्वास की बर्फ में जम गए।
एससीओ और अमेरिका की रणनीति?
शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का मंच अमेरिका का हिस्सा नहीं है। यह वही समूह है, जिसमें चीन और रूस जैसे देश बड़ी भूमिका निभाते हैं। भारत का इस मंच पर सक्रिय होना और मोदी का सात साल बाद चीन जाना, दोनों बातें अमेरिका के लिए असहज करने वाली हैं। रक्षा एवं कूटनीतिक विशेषज्ञ मानते हैं कि अगर भारत, रूस और चीन के बीच नए समीकरण बनते हैं, तो एशिया में अमेरिका का प्रभाव कम हो जाएगा। यही वजह है कि दिल्ली स्थित अमेरिकी दूतावास का ट्वीट तुरंत सामने आया, मानो वॉशिंगटन यह बताना चाहता हो कि भारत के लिए असली साझेदार अभी भी अमेरिका ही है।
भारत के संतुलित प्रयास
वैसे दिल्ली और वॉशिंगटन के बीच खटपट नई नहीं है। यह रिश्ते हमेशा उतार-चढ़ाव से गुजरते रहे हैं। कभी रक्षा सहयोग की ऊँचाइयाँ, तो कभी व्यापारिक मतभेद की गहराइयाँ। लेकिन इस बार दोनाें देशों के बीच रिश्तों का दौर कुछ ज्यादा ठंडा हो गया था। ऐसे में अमेरिकी ट्वीट रिश्तों की बर्फ को पिघलाने का प्रयास लगता है। दूसरी ओर भारत का रुख अब भी पहले की तरह ही स्पष्ट है, वह किसी एक ध्रुव पर खड़ा नहीं होना चाहता। रूस के साथ पारंपरिक दोस्ती, चीन के साथ स्थिरता और अमेरिका के साथ रणनीतिक साझेदारी, तीनों को साथ लेकर चलना ही दिल्ली की नई विदेश नीति है।
कहना होगा कि मोदी की चीन यात्रा ने इस सोच को और मजबूत किया है। वहीं, अमेरिकी ट्वीट ने यह दर्शाया कि वॉशिंगटन रिश्तों की बर्फ पिघलाने के लिए पहल करने को तैयार है। कूटनीतिज्ञों का मानना है कि यह “बर्फ की पहली दरार” है, जो आगे चलकर बड़े बहाव का रूप ले सकती है।
सोशल मीडिया की प्रतिक्रिया
अमेरिकी दूतावास का ट्वीट आते ही सोशल मीडिया पर तीखी प्रतिक्रियाएँ आईं। कुछ यूजर्स ने कहा—“अमेरिका को दिखावा बंद करना चाहिए।” किसी ने लिखा, “भारत-अमेरिका रिश्ते अब तक के सबसे निचले स्तर पर पहुँच गए हैं।” जबकि कुछ ने माना कि यह अमेरिका की “मजबूरी में की गई दोस्ती” है। लेकिन कूटनीति का खेल अलग होता है। यहाँ भावनाओं से ज्यादा संकेत मायने रखते हैं। और यह ट्वीट दरअसल संकेत ही है कि अमेरिका भारत को खोने का जोखिम नहीं उठा सकता।
नई शुरुआत की ओर
बीजिंग की तस्वीर और वॉशिंगटन का ट्वीट, दोनों घटनाएँ एक साथ एक नई कहानी गढ़ रही हैं। भारत-चीन की दूरी कम होना और अमेरिका का दोस्ताना रुख, दोनों इस ओर इशारा करते हैं कि अब जिस तरह का वैश्विक कूटनीतिक परिदृष्य बन रहा है, उसमें राष्ट्रपति ट्रंप अपने ही देश में घिरते नजर आ रहे हैं। भारत की स्पष्ट विदेश नीति सही दिशा में कारगर साबित हो रही है। हालांकि आगे सब कुछ सहज हो जाने की प्रक्रिया आसान नहीं है। मतभेद अब भी हैं, चुनौतियाँ बरकरार हैं। लेकिन जब वॉशिंगटन से दोस्ती का संदेश आया है तो दिल्ली ने उसे हल्की मुस्कान के साथ स्वीकार किया है।
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हिन्दुस्थान समाचार / डॉ. मयंक चतुर्वेदी