पंच पोखर धाम : सर्पों के विनाश का साक्षी
– राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद पुत्र जनमेजय ने किया था सर्पमेध यज्ञ
औरैया, 29 जुलाई (हि. स.)। छोटे से जनपद औरैया की मिट्टी में इतिहास के अनगिनत अध्याय समाए हुए हैं। रामायण और महाभारत काल की पदचापों से लेकर स्वतंत्रता संग्राम तक — यह भूमि केवल दर्शक नहीं, भागीदार रही है।
इसी जनपद में स्थित है “पंच पोखर धाम”, एक ऐसा पौराणिक तीर्थ, जहां संपूर्ण सर्प जाति के विनाश का प्रयास हुआ था। यह वही स्थान है जहाँ महाभारत के अंतिम राजा जनमेजय ने अपने पिता राजा परीक्षित की सर्पदंश से हुई मृत्यु का प्रतिशोध लेने के लिए सर्पमेध यज्ञ किया था।
सदियों पहले जब हजारों सर्प हवन कुंड में गिरे
पंच पोखर में आज भी गूंजती हैं उन वेद मंत्रों की स्मृतियाँ, जब राजा जनमेजय ने क्रोध और बदले की आग में संपूर्ण सर्प जाति को समाप्त करने का यज्ञ शुरू किया था। श्री श्री 108 महंत दयालु दास जी महाराज बताते हैं कि यज्ञ की अग्नि में हजारों सांप आकाश से गिरकर हवन कुंड में समाहित होने लगे थे। पूरा क्षेत्र जैसे एक अद्भुत चमत्कार का साक्षी बन चुका था।
राजा परीक्षित और श्राप की शुरुआत
पौराणिक कथा के अनुसार, राजा परीक्षित एक बार शिकार के दौरान प्यास से व्याकुल होकर शमीक ऋषि के आश्रम पहुंचे, लेकिन ध्यान में लीन ऋषि ने उत्तर नहीं दिया। अपमानित महसूस कर राजा ने एक मरा हुआ साँप उनके गले में डाल दिया।
यह अपमान ऋषि के पुत्र श्रृंगी ऋषि को सहन नहीं हुआ और उन्होंने राजा परीक्षित को श्राप दिया कि सातवें दिन सर्पदंश से उसकी मृत्यु निश्चित है।
और ठीक सातवें दिन तक्षक नामक नाग ने राजा को डसकर उनकी जीवनलीला समाप्त कर दी।
पुत्र का प्रतिशोध: सर्पमेध यज्ञ
राजा परीक्षित की मृत्यु के बाद राजा जनमेजय ने प्रण लिया कि वह सर्प जाति का समूल नाश करेगा। उन्होंने ब्राह्मणों और विद्वानों को आमंत्रित कर सर्पमेध यज्ञ की शुरुआत की।
इस यज्ञ का स्थान चुना गया औरैया के निकट दलेल नगर के पास स्थित पंच पोखर, जो सूर्य उदय-अस्त की विशेष भूमि मानी जाती है।
तक्षक सूर्य रथ से जा लिपटा और यज्ञ थमा
जब सांपों का राजा तक्षक भी यज्ञ की अग्नि में खिंचने लगा, तो उसने सूर्यदेव के रथ से लिपटकर बचने का प्रयास किया। यह देख देवताओं में हाहाकार मच गया, क्योंकि यदि सूर्य रथ हवन में आ गया, तो सम्पूर्ण ब्रह्मांड की गति रुक सकती थी। इंद्रदेव और अन्य देवताओं ने यज्ञ रोकने के लिए आग्रह किया, लेकिन जनमेजय अडिग रहे।
आखिरकार, महर्षि आस्तिक ने हस्तक्षेप किया और राजा को धर्म, क्षमा और संयम का बोध कराकर यज्ञ रुकवाया।
आज भी है रहस्यमयी प्रभाव: यहां सर्प दंश से नहीं होती मृत्यु
पंच पोखर के इलाके के जानकार व वरिष्ठ पत्रकार सुवीर त्रिपाठी का कहना है कि इस भूमि पर आज भी सर्पदंश का कोई प्रभाव नहीं होता। आसपास के गांवों में लोग मानते हैं कि यदि किसी को सर्प डस भी ले, तो उसकी जान नहीं जाती।
यह भूमि कालसर्प दोष से ग्रस्त लोगों के लिए भी एक विशेष तीर्थ मानी जाती है। यहाँ आने वाले श्रद्धालु आज भी विशेष पूजन व अनुष्ठान करवाते हैं।
धरोहर उपेक्षित, प्रशासन मौन
इतिहास और आस्था की इस अमूल्य विरासत को संजोने के बजाय, प्रशासन और जनप्रतिनिधि उदासीन बने हुए हैं।
पंच पोखर मंदिर परिसर जर्जर हो रहा है, कुंड के चारों ओर पानी भरा रहता है, और संरक्षण की कोई योजना नहीं दिखती। यदि सरकार और जिला प्रशासन इस ओर थोड़ी भी संवेदनशीलता दिखाए, तो यह स्थल अंतरराष्ट्रीय पर्यटन केंद्र बन सकता है, जो न केवल इतिहास को जीवित करेगा, बल्कि स्थानीय अर्थव्यवस्था को भी संबल देगा।
पंच पोखर - जहाँ आस्था, इतिहास और अद्भुत रहस्य मिलते हैं।
पंच पोखर धाम केवल एक मंदिर या धार्मिक स्थल नहीं, यह एक ऐसी जीवंत कथा है जो हमें यह सिखाती है कि क्रोध में लिया गया निर्णय भी ब्रह्मांड को हिला सकता है, और धर्म के मार्ग पर क्षमा ही अंतिम सत्य है।
आज जरूरत है इस तीर्थ की पहचान को फिर से जगाने की — ताकि आने वाली पीढ़ियाँ जान सकें कि औरैया की मिट्टी में केवल धूल नहीं, बल्कि सैकड़ों वर्षों की आध्यात्मिक और पौराणिक विरासत दबी पड़ी है।
हिंदुस्थान समाचार / सुनील कुमार
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हिन्दुस्थान समाचार / सुनील कुमार