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हमीरपुर में 601 साल पुराने ऐतिहासिक गुदरिया मेले की तैयारी

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हमीरपुर में 601 साल पुराने ऐतिहासिक गुदरिया मेले की तैयारी


हमीरपुर में 601 साल पुराने ऐतिहासिक गुदरिया मेले की तैयारी


टूटी -फूटी बोली भाषा में होगी रामलीलाहमीरपुर, 23 नवम्बर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के हमीरपुर जिले के मुस्करा बड़े कस्बे में 601 साल पुराने गुदरिया बाबा के मेले की तैयारियां अब शुरू हो गई है। सात दिनों तक चलने वाले इस एतिहासिक मेले में खेल, तमाशा समेत अन्य कार्यक्रमों की धूम मचेगी। हिन्दू- मुस्लिम एकता के प्रतीक एक मेले में टूटी-फूटी बोली में रामलीला का मंचन भी होगा जिसे देखने के लिए लोगों की भीड़ भी उमड़ती है। इस ऐतिहासिक मेले का आगाज 26 नवम्बर से होगा। एकादशी के दिन कोतवाली नामक मुख्य कार्यक्रम होगा जिसे देखने के लिए लोगों का जन सैलाब उमड़ेगा।

हमीरपुर जिले के मुस्करा कस्बे में हिन्दु मुस्लिम एकता का प्रतीक गुदरिया बाबा रौरों मेला का इतिहास 601 साल पुराना है। जो हर साल अगहन सुदी छठ से खेल तमाशों के साथ शुरू होता है। पांच दिनों तक गांव में प्रतिदिन अलग-अलग खेल तमाशे हाेते हैं। छठवें दिन कोतवाली नामक मुख्य कार्यक्रम का आयोजन किया जाता है। मुस्करा कस्बा निवासी व राष्ट्रीय ग्राम प्रधान संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हरस्वरूप व्यास ने रविवार को बताया कि अमावस्या के बाद सुदी छठ से ऐतिहासिक मेले का आगाज होगा, जो लगातार सात दिनों तक टूटी-फूटी भाषा में कलाकार कार्यक्रम करेंगे। बताया कि ऐतिहासिक गुदरिया बाबा रौरों मेले में अलग-अलग किरदारों में हिन्दु और मुस्लिम लोगों बड़ी भूमिका निभाते हैं। बताया कि कस्बे की 10 अस्थायी जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। इसके बाद दो दिनों तक विराट दंगल का आयोजन होगा। एक सप्ताह तक चलने वाले मेले में रात्रि में रामलीला का आयोजन हर साल होता है जिसे देखने के लिये आसपास के तमाम गांवों के लोगों की भीड़ उमड़ती है।

7 दिनों तक गुदरिया के मेले में होंगे खेल तमाशेमुस्करा के सरपंच महेन्द्र प्रताप सिंह ने बताया कि गुदरिया बाबा रौरों का मेला बुन्देलखंड का प्रमुख मेला है जिसे लेकर पूरे क्षेत्र में बड़ा उत्साह लोगों में रहता है। उन्हाेंने बताया कि सात दिवसीय ऐतिहासिक मेले को लेकर पूरे गांव के लोग मदद करते हैं। गुदरिया बाबा के मेले में खेल तमाशे के साथ ही बनरा, नागा, कालीस वहकटा, कोतवाली समेत तमाम कार्यक्रमों की धूम मचती है। इसके अलावा रामलीला की टूटी-फूटी नकल के रूप में खेल और तमाशे हर साल की तरह इस बार भी होंगे।

शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चुनाई जाएंगी चीटियां ग्राम प्रधान संगठन के राष्ट्रीय महासचिव हरस्वरूप व्यास ने बताया कि मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष की अमावस्या को ऐतिहासिक मेले को लेकर शोधन होता है। फिर गांव के सभी जमींदार अस्थायी मालिक एक जगह एकत्र होते हैं। उन्हाेंने बताया कि शुक्ल पक्ष की चतुर्थी को चीटियां चुनाई जाती है फिर गुदरी में खेल होते ही छठ से तमाशे शुरू हो जाते हैं। उन्हाेंने बताया कि ऐतिहासिक मेले के पहले दिन छठ को नटबिडिय़ां सप्तमी को चोर, दीवारी, धुबियाई, पमारों के बाद एकादशी के दिन मुख्य कार्यक्रम कोतवाली होगा।

हिन्दुस्थान समाचार / पंकज मिश्रा