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आजादी विशेष : उपेक्षा का शिकार पुरुलिया का शताब्दी प्राचीन शिल्पाश्रम

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पुरुलिया, 14 अगस्त (हि. स.)। पश्चिम बंगाल के पुरुलिया में स्वतंत्रता संग्राम के पीठस्थानों में से एक 'शिल्पाश्रम' ने एक शताब्दी पूरी कर ली है। हालांकि रख रखाव की कमी के कारण इसकी चमक फीकी पड़ने लगी है। निर्जन पुरुलिया शहर के एक कोने में इतना सारा इतिहास समेटे हुए यह स्थान जो कभी क्रांतिकारियों का 'डेरा' था, आज उपेक्षित पड़ा है। पुरुलिया शहर का नागरिक समाज 'शिल्पाश्रम' को विरासत स्थल घोषित करने की मांग करने लगा है।

वर्ष 1921 में देश गांधीजी द्वारा आहूत असहयोग आंदोलन के कारण उथल-पुथल मची थी। गांधीजी ने घोषणा की कि वे एक वर्ष के भीतर 'स्वराज' लाएंगे। गांधीजी के आह्वान पर हजारों लोग स्वतःस्फूर्त रूप से इस आंदोलन में शामिल हो गए। आंदोलन ने व्यावहारिक रूप से एक जन आंदोलन का रूप ले लिया। श्रमिकों, मजदूरों से लेकर आम लोग भी इस आंदोलन में बड़ी संख्या में शामिल हुए। उसी वर्ष, गांधीजी के आदर्शों से प्रेरित होकर अतुल चंद्र घोष ने पुरुलिया की अदालती वकालत छोड़ दी और घर छोड़ दिया। निबरन चंद्र दासगुप्ता ने स्कूल के प्रधानाध्यापक की नौकरी छोड़ दी। दोनों ने मिलकर पुरुलिया स्टेशन के पास इस 'शिल्पाश्रम' का निर्माण किया। तब से, उनसे प्रेरित होकर, कई और लोगों ने अपना घर-परिवार छोड़ दिया और मातृभूमि की मुक्ति के लिए संघर्ष करना शुरू कर दिया। यह 'शिल्पाश्रम' उनकी शरणस्थली बन गया। कहा जाता है कि महात्मा गांधी एक बार यहां आए थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से लेकर देशबंधु चित्तरंजन दास और राजेंद्र प्रसाद जैसे दिग्गज आए। बाद में, ज्योति बोस और अजय मुखर्जी जैसी राजनीतिक हस्तियों ने भी इस शिल्पाश्रम का दौरा किया। इस आश्रम ने नमक सत्याग्रह से लेकर भारत छोड़ो आंदोलन तक में प्रमुख भूमिका निभाई।

हालांकि, केवल स्वतंत्रता आंदोलन ही नहीं, भले ही देश 1947 में स्वतंत्र हो गया, मानभूम को बिहार-उड़ीसा प्रांत में शामिल किया गया था। मानभूम के विशाल क्षेत्र के लोगों की मातृभाषा पर हमला किया गया था हालांकि, इसके कारण मानभूम कांग्रेस के नेतृत्व में मतभेद हो गया, 1948 में लोक सेवक संघ का जन्म हुआ। संघ के नेतृत्व में मानभूम में भाषा आंदोलन तेज हुआ। पुरुलिया बंगाली भाषी लोगों के उस आंदोलन का फल है।

वर्तमान में, यह शिल्पाश्रम लोक सेवक संघ का मुख्यालय है। संघ के वर्तमान सचिव सुशील महतो ने कहा कि 2004 में, आश्रम के कई घर तूफान में क्षतिग्रस्त हो गए थे। कई बहुमूल्य दस्तावेज नष्ट हो गए थे। गांधीजी, चित्तरंजन दास सहित कई प्रतिष्ठित लोगों के पत्रों से शुरू होकर, लोक सेवक संघ के कार्यों की विभिन्न पुस्तकें और दस्तावेज अभी भी यहां सुरक्षित हैं।

सुशील महताे के अनुसार, हम इस अमूल्य संपत्ति की रक्षा करने की कोशिश कर रहे हैं। हालांकि, जिले के आम लोगों की मांग है कि सौ साल पुराने शिल्पाश्रम को एक विरासत घोषित किया जाना चाहिए।

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हिन्दुस्थान समाचार / धनंजय पाण्डेय