विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला: आस्था, संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का संगम
पटना, 9 नवंबर (हि.स.)। बिहार के सारण जिले में गंगा और गंडक के पावन संगम पर स्थित हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला सदियों से आस्था, संस्कृति, परंपरा और आधुनिकता का अद्भुत संगम प्रस्तुत करता आ रहा है। यह मेला न केवल बिहार बल्कि पूरे भारतवर्ष और पड़ोसी देशों के लिए भी आस्था, व्यापार, पर्यटन और सांस्कृतिक आदान-प्रदान का केंद्र रहा है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लगने वाला यह मेला भारतीय लोकजीवन की गहराई और विविधता को सजीव रूप में प्रदर्शित करता है।
धार्मिक और पौराणिक महत्व
सोनपुर मेले का इतिहास पौराणिक काल तक जाता है। लोकमान्यता है कि इसी पवित्र भूमि पर भगवान विष्णु ने हरि और हर (शिव) का रूप धारण कर गज (हाथी) और ग्राह (मगर) की लड़ाई के दौरान गज की रक्षा की थी। इसीलिए इस क्षेत्र को हरिहर क्षेत्र कहा जाता है। हरिहरनाथ मंदिर, जो मेले का केंद्र बिंदु है, आस्था और भक्ति का प्रतीक है। कार्तिक पूर्णिमा के अवसर पर लाखों श्रद्धालु गंगा-गंडक संगम में स्नान कर हरिहरनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करते हैं।
धार्मिक दृष्टि से कहा जाता है कि यहां एक बार स्नान करने और भगवान हरिहरनाथ के दर्शन मात्र से जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति मिलती है। इस आस्था के चलते देशभर से तीर्थयात्री, साधु-संत और श्रद्धालु हर वर्ष यहां जुटते हैं।
इतिहास और विकास की यात्रा
हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेले की चर्चा प्राचीन भारतीय ग्रंथों और ऐतिहासिक दस्तावेजों में भी मिलती है। माना जाता है कि मौर्य सम्राट चंद्रगुप्त और सम्राट अशोक के समय में भी यह मेला आयोजित होता था। मध्यकाल में इस मेले का महत्व और भी बढ़ा। उस समय यह एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता था।
मेले में हाथियों की खरीद-बिक्री विशेष आकर्षण का केंद्र हुआ करती थी। दूर-दूर से व्यापारी, सर्कस संचालक, सेना के प्रतिनिधि और महावत यहां हाथी खरीदने आते थे। इसके अलावा घोड़े, ऊंट, गाय, भैंस और अन्य पशुओं का भी बड़ा व्यापार होता था। ब्रिटिश काल में यह मेला अंतरराष्ट्रीय पहचान प्राप्त कर चुका था।
समय के साथ जब पशु व्यापार पर प्रतिबंध लगाया गया, तो मेले का स्वरूप धीरे-धीरे धार्मिक और सांस्कृतिक आयोजन में बदल गया। आज यह मेला पर्यटन, संस्कृति, हस्तशिल्प, व्यापार और मनोरंजन का संगम बन चुका है।
संस्कृति और लोक परंपरा का उत्सव
सोनपुर मेला बिहार की लोक संस्कृति का जीवंत दर्पण है। यहां देशभर से कलाकार, नृत्य दल, लोक गायक और नाट्य मंडलियां अपनी प्रस्तुतियों से दर्शकों को मंत्रमुग्ध कर देती हैं। लोकगीतों की गूंज, नाटक, नाट्य परंपरा इस मेले की आत्मा हैं।
राज्य पर्यटन विभाग द्वारा स्थापित मुख्य सांस्कृतिक पंडाल में प्रतिदिन सांस्कृतिक कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं। यहां बिहार की समृद्ध लोक विरासत, पारंपरिक नृत्य, शास्त्रीय संगीत और आधुनिक कला का अनूठा संगम देखने को मिलता है।
इसके अलावा, हस्तशिल्पियों और कारीगरों के लिए यह मेला अपने उत्पादों के प्रदर्शन और बिक्री का एक बड़ा मंच है। मधुबनी पेंटिंग, सिक्की आर्ट, मृद्भांड, जूट के उत्पाद, लकड़ी की नक्काशी, और वस्त्र कला जैसी चीजें यहां बड़ी संख्या में उपलब्ध होती हैं। यह मेला ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गति देने में भी अहम भूमिका निभाता है।
आधुनिकता की नई छवि
पारंपरिक स्वरूप को बनाए रखते हुए अब सोनपुर मेला आधुनिकता की ओर अग्रसर हो चुका है। बिहार सरकार के पर्यटन विभाग और जिला प्रशासन ने मेले को डिजिटल और पर्यटक-अनुकूल बनाने के लिए कई नई पहल की हैं।
इस बार मेले में ई-टिकटिंग सिस्टम, सीसीटीवी कैमरे, कंट्रोल रूम, ड्रोन निगरानी, फ्री वाई-फाई जोन और ऑनलाइन सूचना केंद्र जैसी आधुनिक व्यवस्थाएं की गई हैं। मेले के मुख्य द्वारों और पंडालों को आकर्षक एलईडी लाइटों से सजाया गया है।
स्वच्छता और सुरक्षा को लेकर विशेष पहल की गई है। स्वच्छ मेला, सुरक्षित मेला अभियान के तहत सफाईकर्मियों की विशेष टीम चौबीसों घंटे सक्रिय रहती है। जगह-जगह डस्टबिन, पेयजल की सुविधा और मोबाइल शौचालय की व्यवस्था की गई है।
मनोरंजन और पर्यटन का केंद्र
सोनपुर मेला केवल धार्मिक आयोजन नहीं, बल्कि यह बिहार के सबसे बड़े पर्यटन आकर्षणों में से एक है। मेले में झूले, जादू शो, सर्कस, थियेटर, बच्चों के खेल क्षेत्र और विभिन्न प्रदर्शनियां लगाई जाती हैं। सरकार की विभिन्न योजनाओं के स्टॉल भी लगाए जाते हैं। देश-विदेश से आने वाले पर्यटक यहां बिहार की लोकसंस्कृति के साथ-साथ ग्रामीण जीवन की सादगी और गर्मजोशी का अनुभव करते हैं।
प्रशासनिक तैयारी और सुरक्षा व्यवस्था
जिला प्रशासन और पुलिस विभाग की ओर से मेले में व्यापक सुरक्षा इंतजाम किए गए हैं। विधानसभा चुनाव के कारण प्रत्येक वर्ष कार्तिक पूर्णिमा के अवसर होने वाले इस मेले के तिथि में परिवर्तन किया गया है। इस बार मेला 9 नवंबर से शुरू होकर 10 दिसंबर तक चलेगा। इस वर्ष मेले मेले परिसर में अस्थायी पुलिस चौकियां, महिला हेल्प डेस्क, फायर ब्रिगेड और मेडिकल कैंप स्थापित किए गए हैं। पर्यटन विभाग और सारण जिला प्रशासन के समन्वय से पूरी व्यवस्था को सुचारू रूप से संचालित किया जा रहा है।
जिलाधिकारी अमन समीर और पुलिस अधीक्षक डॉ कुमार आशीष के नेतृत्व में नियंत्रण कक्ष के माध्यम से मेले के हर हिस्से की निगरानी की जा रही है। भीड़ नियंत्रण के लिए बैरिकेडिंग और एंट्री-एग्जिट पॉइंट निर्धारित किए गए हैं।
आर्थिक और सामाजिक महत्व
सोनपुर मेला केवल धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि यह स्थानीय अर्थव्यवस्था के लिए भी जीवनरेखा है। मेले के दौरान हजारों अस्थायी दुकानें, भोजनालय, होटल, परिवहन सेवाएं और हस्तशिल्प स्टॉल लगते हैं, जिससे स्थानीय लोगों को रोजगार मिलता है।
हर वर्ष लाखों की संख्या में आने वाले श्रद्धालु और पर्यटक स्थानीय व्यापारियों के लिए बड़ा बाजार तैयार करते हैं। राज्य सरकार के अनुसार, मेले से प्रत्यक्ष और परोक्ष रूप से हजारों लोगों की आजीविका जुड़ी है।
हरिहर क्षेत्र की पहचान और सांस्कृतिक विरासत
हरिहर क्षेत्र सोनपुर न केवल एक मेला स्थल है, बल्कि यह बिहार की सांस्कृतिक विरासत का गौरव है। यहां की मिट्टी में आस्था की सुगंध और परंपरा की शक्ति समाई है। यह मेला भारतीय समाज के उस अदृश्य धागे का प्रतीक है जो धार्मिक आस्था, सामाजिक मेल-जोल और सांस्कृतिक साझेदारी को एक सूत्र में बांधता है।
आज जब समाज तेजी से आधुनिकता की ओर बढ़ रहा है, तब भी सोनपुर मेला अपनी जड़ों से जुड़ा हुआ है। यहां एक ओर भक्तों की आस्था की लहरें उमड़ती हैं, तो दूसरी ओर आधुनिक प्रबंधन और तकनीकी विकास की छवि उभरती है।
हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला केवल एक धार्मिक या सांस्कृतिक आयोजन नहीं, बल्कि भारत की बहुरंगी सभ्यता का जीवंत उत्सव है। यह मेला हमें हमारी जड़ों से जोड़ता है, हमारी परंपराओं को जीवित रखता है, और आधुनिक भारत के विकास की दिशा में नई राहें खोलता है।
हर वर्ष की तरह इस बार भी सोनपुर मेला आस्था और आनंद का अनूठा संगम बन चुका है। जहां परंपरा की खुशबू और आधुनिकता की चमक एक साथ अनुभव की जा सकती है। यह मेला न केवल बिहार की पहचान है, बल्कि भारतीय संस्कृति की निरंतरता और लोक जीवन की सजीवता का प्रतीक भी है।
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हिन्दुस्थान समाचार / सुरभित दत्त
