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गौरैया का भारत में पहला जीनोम सीक्वेंस, पक्षी जीनोमिक्स में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि

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गौरैया का भारत में पहला जीनोम सीक्वेंस, पक्षी जीनोमिक्स में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि


गौरैया का भारत में पहला जीनोम सीक्वेंस, पक्षी जीनोमिक्स में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि


वाराणसी,23 जून (हि.स.)। काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू), मणिपाल विश्वविद्यालय जयपुर, जूलॉजीकल सर्वे ऑफ इंडिया, कोलकाता और अन्य प्रमुख संस्थानों के शोधकर्ताओं की टीम ने महत्वपूर्ण शोध किया है। टीम ने गौरैया (पैसर डोमेस्टिकस) के जीनोम का पहली बार सफलतापूर्वक सीक्वन्सिंग और असेंबली करके पक्षी जीनोमिक्स में एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। यह उच्च-गुणवत्ता वाला जीनोम असेंबली, पैसरिन्स (गौरैया सहित पक्षियों का एक विविध समूह) के ईवोलूशन, अनुकूलन, और जनसंख्या गतिशीलता को समझने के लिए एक महत्वपूर्ण आधार प्रदान करता है।

टीम का अध्ययन आज गीगा बाइट नामक अन्तरराष्ट्रीय विज्ञान पत्रिका में प्रकाशित हुआ है। इस शोध ने गौरैया के 24152 जीन की पहचान की है। प्रो. प्रशांत सुरवज्हाला और प्रो. ज्ञानेश्वर चौबे के सह-नेतृत्व में, इस अध्ययन ने नेक्स्ट जनरेशन सीक्वन्सिंग तकनीकों और जीनोमिक वर्कफ़्लो का उपयोग करके 922 एमबी का एक रेफरेंस जीनोम तैयार किया। इस असेंबली में 268,193 कॉन्टिग बेस शामिल हैं, जिनमें गौरैया का मुर्गी (गैलस गैलस) और ज़ेब्रा फिंच (टेनियोपाइजिया गुट्टाटा) के जीनोम के साथ महत्वपूर्ण आनुवंशिक समानताएँ पाई गईं। शोधकर्ताओं ने गौरैया के सर्कैडियन रिदम, इम्यूनिटी, और ऑक्सीजन परिवहन से संबंधित प्रमुख जीनों की पहचान भी की है। शोध के पहले लेखक और जेडएसआई कलकत्ता के वरिष्ठ वैज्ञानिक डॉ विकास कुमार के अनुसार “डीएनए के फाइलोजेनेटिक विश्लेषण से पता चलता है कि भारतीय गौरैया यूरेशियन ट्री गौरैया और सक्सौल गौरैया के साथ 44 लाख वर्ष पहले अलग हुआ था। इस शोध ने पक्षी के ईवोलूशनरी विकास की टाइमलाइन को बेहतर तरीके से रेखांकित किया है।”

बीएचयू के प्रोफेसर ज्ञानेश्वर चौबे ने बताया कि, “ माइटोकॉन्ड्रियल डीएनए जीनोम विश्लेषण, ने बताया की विश्व में गौरैया (जिसको पैसरिडी परिवार कहते है) की उत्पत्ति 90 लाख वर्ष पूर्व हुई और पैसर डोमेस्टिकस गौरैया 30 लाख वर्ष पूर्व यूरेसीयन ट्री स्पैरो से अलग हो गई थी ”। गौरैया जो की एक वैश्विक रूप से वितरित प्रजाति है, की जनसंख्या में चिंताजनक कमी देखी गई है, जिसमें पेरिस जैसे शहरी क्षेत्रों में 89फीसद तक और भारत के मुंबई और बेंगलुरु जैसे शहरों में 70फीसद से अधिक की कमी दर्ज की गई है। व्यापक शहरीकरण, प्राकृतिक आवास की कमी, और पर्यावरणीय परिवर्तन जैसे कारकों को इन कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया गया है।

शोध के संयोजक प्रोफेसर सुरवज्हाला ने कहा, “यह जीनोम असेंबली पक्षी विकास, अनुकूलन, और संरक्षण का अध्ययन करने वाले शोधकर्ताओं के लिए एक खजाना है। गौरैया के आनुवंशिक मैप को डीकोड करके, हम बेहतर ढंग से समझ सकते हैं कि ये पक्षी बदलते पर्यावरणों में कैसे अनुकूलित होते हैं और इस प्रजाति की रक्षा के लिए संरक्षण रणनीतियों को जीनोम के आधार पर बनाया जा सकता हैं।” यह शोध, राजस्थान और भारत सरकार के वन विभाग, और बिरला वैज्ञानिक अनुसंधान संस्थान द्वारा समर्थित है, जिसमें, गोपेश शर्मा, संकल्प शर्मा, संवृथा प्रसाद, तोरल वैशनोई, शैलेश देसाई, और अन्य वरिष्ठ वैज्ञानिकों के योगदान शामिल हैं।

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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी