राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना से पाँच वर्ष पूर्व ही तय हुआ था गणवेश


कांग्रेस अधिवेशन के गणवेश की कल्पना बनी संघ की पहचान
नागपुर, 28 सितंबर (हि.स.)
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) के स्वयंसेवकों का गणवेश संघ की एक विशेष पहचान माना जाता है। वर्तमान में प्रचलित भूरे रंग की फुलपैंट वाला गणवेश यद्यपि वर्ष 2016 से लागू हुआ है, किंतु गणवेश की पहचान संघ की स्थापना से भी पाँच वर्ष पूर्व अर्थात् वर्ष 1920 में ही बन गई थी।
गणवेश, अनुशासन और समानता गणवेश अनुशासन और समानता का प्रतीक होता है। इसी कारण विद्यालयों से लेकर सेना तक, अनुशासन और समरूपता को दर्शाने के लिए गणवेश पहना जाता है। स्वतंत्रता-पूर्व काल में जाति, संप्रदाय, धर्म, आर्थिक तथा सामाजिक भेदभावों को समाप्त कर सभी को समान मानने का संदेश देने के उद्देश्य से डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वयंसेवकों के लिए एक निश्चित गणवेश निर्धारित किया था। विशेष बात यह है कि उन्हें गणवेश की यह प्रेरणा संघ की स्थापना से पाँच वर्ष पूर्व, वर्ष 1920 में कांग्रेस के एक अधिवेशन में प्राप्त हुई थी।
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के तत्कालीन सरकार्यवाह हो.वो. शेषाद्री द्वारा डॉ. हेडगेवार का जीवनचरित्र लिखा गया है। शेषाद्री के अनुसार, संघ की स्थापना से पूर्व जनवरी 1920 में कांग्रेस के तत्कालीन नेता एल.वी. परांजपे ने ‘भारत स्वयंसेवक मंडल’ नामक एक संगठन की स्थापना की थी, जिसमें डॉ. हेडगेवार उनके प्रमुख सहयोगी थे।
नागपुर में आयोजित कांग्रेस के वार्षिक अधिवेशन में सहभागिता के लिए भारत स्वयंसेवक मंडल के लगभग 1200 स्वयंसेवकों को नियुक्त किया गया था। इस अधिवेशन में मंडल के सदस्य विशिष्ट रूप से पहचाने जा सकें, इसके लिए उनके लिए खाकी रंग की शर्ट, हाफ पैंट, टोपी, लंबे मोज़े और जूते वाला गणवेश निर्धारित किया गया था।
बाद में 27 सितंबर 1925 को जब डॉ. हेडगेवार ने राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की स्थापना की, तब उन्होंने इसी भारत स्वयंसेवक मंडल के गणवेश को अपनाया।
गणवेश में समयानुसार परिवर्तन
संघ की स्थापना के पाँच वर्ष पश्चात, वर्ष 1930 में गणवेश में पहला परिवर्तन किया गया—खाकी टोपी के स्थान पर काली टोपी को अपनाया गया। इसके पश्चात 1939 में खाकी शर्ट की जगह सफेद शर्ट को शामिल किया गया। यह परिवर्तन ब्रिटिश शासन द्वारा आरएसएस के गणवेश और अभ्यासों पर लगाए गए प्रतिबंधों के कारण आवश्यक हुआ था। समय के साथ-साथ जूतों से लेकर बेल्ट तक, गणवेश के विभिन्न अंगों में भी परिवर्तन किए गए।
धीरे-धीरे संघ के गणवेश में खाकी रंग का उपयोग कम होता गया। हालांकि, संघ की हाफपैंट वर्ष 2016 तक बनी रही। उसी वर्ष, कालानुसार परिवर्तन को स्वीकारते हुए खाकी हाफपैंट के स्थान पर भूरे रंग की फुलपैंट को गणवेश में सम्मिलित किया गया। इस परिवर्तन पर राजस्थान के नागौर में आयोजित अखिल भारतीय प्रतिनिधि सभा की तीन दिवसीय बैठक में औपचारिक रूप से मुहर लगी। गणवेश केवल एक ड्रेस कोड नहीं बल्कि संघ की विचारधारा एवं कार्यपद्धति का अविभाज्य अंग है। यह अनुशासन, समानता और एकरूपता जैसे मूल्यों को दर्शाता है और आज भी लाखों स्वयंसेवकों के लिए यह प्रेरणास्रोत बना हुआ है।
संघ के शताब्दी वर्ष के आरंभ के अवसर पर यह गणवेश न केवल परिवर्तित रूप में विद्यमान है, बल्कि यह एक शताब्दी के सांस्कृतिक और सामाजिक यात्रा का प्रतीक बन चुका है।
गणवेश में हुए तीन प्रमुख परिवर्तन :
1930 - खाकी टोपी की जगह काली टोपी को स्थान दिया गया।
1939 - खाकी शर्ट की जगह सफेद शर्ट को अपनाया गया।2016 - खाकी हाफपैंट की जगह भूरी फुलपैंट लागू की गई ।---------------------------
हिन्दुस्थान समाचार / मनीष कुलकर्णी