कुम्हड़ाकोट में नवाखनी-बाहर रैनी पूजा विधान के साथ बस्तर दशहरा के विजय रथ की देर रात्रि हाेगी वापसी


जगदलपुर, 3 अक्टूबर (हि.स.)। बस्तर दशहरे की सबसे अहम रस्म भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान गुरुवार देर रात भारी बारिश के बीच लगभग 11 बजे पूरी की गई । किलेपाल परगना के 32 गांवों के दो हजार से अधिक ग्रामीण आधी रात लगभग 12 बजे दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार के सामने से विजय रथ काे चोरी कर कुम्हड़ाकोट के जंगलों में ले जाने की परंपरा का निर्वहन किया। भीतर रैनी रथ परिक्रमा पूजा विधान की संपन्नता के साथ ही आज शुक्रवार काे बस्तर दशहरा में बाहर रैनी पूजा विधान में परंपरानुसार चोरी किए गए रथ को वापस लाने के लिए राज परिवार के सदस्य कमलचंद भंजदेव पुजारियों के साथ दाेपहर 3 बजे गाजे-बाजे के साथ कुम्हड़ाकोट के जंगल पंहुचकर, ग्रामीणों के साथ नवाखानी त्योहार में नये चांवल का प्रसाद ग्रहंण किया। फिर दंतेश्वरी मंदिर पुजारी ने रथ वापसी से पहले माईजी के छत्र को रथ पर विराजित किया, इसके बाद कुम्हड़ाकोट से 8 चक्के के दुमंजिला विजय रथ की बाहर रैनी पूजा विधान के साथ रथ की वापसी शुरू हाे गई है। आज देर रात्रि को लगभग 10-12 बजे तक मां दंतेश्वार मंदिर के सिंहद्वार में पंहुचने की संभावना है। जिसके बाद माईजी के छत्र को विधि-विधान के साथ दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जायेगा।
विदित हाे कि आठ पहियों वाले विजय रथ को चोरी कर ले जाने की परंपरा के तहत, बास्तानार कोड़ेनार क्षेत्र के 33 गांवों के सैकडाें माडिय़ा जनजाति के ग्रामीण ,राजमहल के सामने खड़े रथ को गुरुवार देर रात 12 बजे खींचते हुए कुम्हड़ाकोट ले गये। बस्तर दशहरा में रथ चुराने की रस्म की शुरूआत शताब्दियों पहले बास्तानार कोड़ेनार-क्षेत्र के माडिय़ा जनजाति के ग्रामीणों के द्वारा अंजाम दिया गया था, तब से यह बस्तर दशहरा की रियासतकालीन परंपरा बन गई। दूसरे शब्दों में यह कहा जा सकता है कि तत्कालीन बस्तर महाराजा पुुरूषाेत्तम देव के प्रति ग्रामीणों के अगाध आस्था और विश्वास का प्रतीक है, ग्रामीणों के द्वारा रथ चुराकर स्वयं ले जाने के बाद बस्तर महाराजा को नियत स्थान पर बुलाकर राजा नवाखानी पूजा विधान के बाद मां दंतेश्वरी के छत्र को रथारूढ़कर राजमहल वापस लाने से जुडा़ हुआ है। तब से कुम्हड़ाकोट में राजपरिवार राजा नवाखानी की परंपरा का निर्वहन करता चला आ रहा है।
उल्लेखनीय है कि बस्तर दशहरा में रथ को कुम्हड़ाकोट के जंगल में ले जाने के कारण रथ परिक्रमा के दायरे से बाहर हो जाता है।कुम्हड़ाकोट से बस्तर दशहा रथ की वापसी की रियासतकालीन परंपरा को बाहर रैनी पूजा विधान कहा जाता है। बाहर रैनी पूजा विधान में कुम्हड़ाकोट के जंगल से पुन: आठ पहियों वाले विजय रथ की वापसी आज शुक्रवार रात्री लगभग 10 बजे तक संपन्न किया जायेगा। विजय रथ काे उसी मार्ग से वापस मां दंतेश्वरी मंदिर के सिंहद्वार के सामने खड़ा कर मां दंतंश्वरी के छत्र को मंदिर में स्थापित करने के साथ ही बाहर रैनी पूजा विधान संपन्न हाे जायेगा। इसी के साथ बस्तर दशहरा में रथ परिचालन भी संपन्न हो जायेगा। इसके बाद बस्तर दशहरा अपने अंतिम पड़ाव में काछन जात्रा, कुटुब जात्रा के साथ बस्तर संभाग सहित पड़ोसी प्रदेश से आमंत्रित देवी-देवताओं की विदाई का क्रम शुरू हो जायेगा।
मां दंतेश्वरी मंदिर के मुख्य पुजारी कृष्ण कुमार पाढ़ी ने बताया कि एक दिन पहले गुरूवार काे भीतर रैनी रस्म अदायगी की गई और आज शुक्रवार को बाहर रैनी रस्म पूरी की गई। आज राजपरिवार के सदस्य कुम्हडाकोट पहुंचकर पूजा पाठ कर नए फसल का भोग ग्रहण करते हैं। जिसके बाद चोरी किए गए विशालकाय रथ को वापस लाया जाता है। इसके पश्चात ससम्मान रथ पर सवार मां दंतेश्वरी देवी के क्षत्र को उतार कर दंतेश्वरी मंदिर में स्थापित किया जाता है। शताब्दियाें से चली आ रही बाहर रैनी पूजा विधान की रस्म के साथ रथ परिक्रमा का परायण आगामी वर्ष के लिए हाे जायेगा।
हिन्दुस्थान समाचार / राकेश पांडे