मुख कैंसर के निदान और उपचार के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाएगा बीएचयू के वैज्ञानिकों का शोध
— व्यक्तिगत चिकित्सा के लिए सटीक रोडमैप,नए शोध ने मुख कैंसर को चलाने वाले पाँच अलग-अलग आणविक मार्गों को पहचाना
वाराणसी,26 दिसंबर (हि.स.)। उत्तर प्रदेश के वाराणसी स्थित काशी हिन्दू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं की टीम ने मुख कैंसर के दुनिया के पहले व्यवस्थित आणविक वर्गीकरण का प्रस्ताव दिया है, जो पारंपरिक निदान विधियों से कहीं आगे है। 8,000 से अधिक वैज्ञानिक लेखों और जीनोमिक डेटा की विस्तृत समीक्षा और विश्लेषण के बाद यह नया शोध मुख कैंसर को चलाने वाले पाँच अलग-अलग आणविक मार्गों की पहचान करता है, जो व्यक्तिगत चिकित्सा (पर्सनलाइज्ड थेरेपी) के लिए एक सटीक रोडमैप प्रदान करता है।
शोध टीम में शामिल प्रो. मनोज पांडेय के अनुसार यह भारत में मुख कैंसर की देखभाल के लिए एक महत्वपूर्ण क्षण है। प्रत्येक रोगी के ट्यूमर के अद्वितीय आणविक फिंगरप्रिंट को समझकर, हम सामान्य उपचारों से हटकर उन उपचारों की ओर बढ़ सकते हैं जिन्हें कैंसर के कमजोर बिंदुओं पर सटीक प्रहार करने के लिए डिज़ाइन किया गया है। इससे न केवल परिणामों में सुधार होगा, बल्कि अप्रभावी उपचारों का बोझ भी कम होगा। उन्होंने कहा कि इस शोध के निहितार्थ बहुत गहरे हैं, जो अधिक प्रभावी, व्यक्तिगत उपचार, बेहतर रोगी परिणामों और उपचार से संबंधित विषाक्तता को संभावित रूप से कम करने का मार्ग प्रशस्त करते हैं। उम्मीद है कि इस वर्गीकरण को पूरे भारत में रेफरल प्रयोगशालाओं और ऑन्कोलॉजी केंद्रों द्वारा अपनाया जाएगा, जिससे मुख कैंसर के लिए 'प्रिसिजन मेडिसिन' के एक नए युग की शुरुआत होगी। हालाँकि, परीक्षण की लागत, दवाओं की उपलब्धता और लागत, तथा मजबूत क्लिनिकल परीक्षणों की कमी एक ऐसी चुनौती है जिसे सार्वभौमिक रूप से लागू करने से पहले भविष्य में संभालना आवश्यक होगा।
उन्होंने बताया कि यह शोध 05 दिसंबर, 2025 को जर्नल म्यूटेशन रिसर्च/रिव्यूज़ इन म्यूटेशन रिसर्च में प्रकाशित हुआ है। एक ऐतिहासिक भारतीय अध्ययन, अनवेलिंग ओरल कैंसर’स मॉलिक्यूलर ब्लूप्रिंट: ए नोवल क्लासिफिकेशन टू गाइड प्रिसिजन थेरेपी, दुनिया भर में, और विशेष रूप से भारत और दक्षिण पूर्व एशिया में मुख कैंसर (ओरल कैंसर) के निदान और उपचार के तरीके में क्रांतिकारी बदलाव लाने के लिए तैयार है। बीएचयू के सर्जिकल ऑन्कोलॉजी विभाग के शोधकर्ताओं के नेतृत्व में, जिसमें 'हेल्थ टेक्नोलॉजी असेसमेंट इन इंडिया' और 'डीएचआर-आईसीएमआर एडवांस्ड मॉलिक्यूलर ऑन्कोलॉजी डायग्नोस्टिक सर्विसेज' बीएचयू टीम ने सहायता प्रदान की है। उन्होंने कहा कि भारत में मुख कैंसर एक विनाशकारी बीमारी है जिसकी दर बहुत अधिक है, और यह मुख्य रूप से तंबाकू और सुपारी के सेवन से जुड़ी है। पारंपरिक रूप से, इसका उपचार एक-ही-तरीका-सबके-लिए रहा है, जिससे परिणाम अलग-अलग मिलते हैं।
—शोध अध्ययन की विशेषताएं
पाँच नए आणविक समूह: अध्ययन मुख कैंसर को पाँच अलग-अलग जैविक समूहों में वर्गीकृत करता है: सेल-साइकिल डिसरेगुलेशन (सीसीडी), इम्यून-मीडिएटेड (आईएम), ज़ेनोबायोटिक मेटाबॉलिज्म-असोसिएटेड (एक्सएमए), इंफ्लेमेटरी पाथवे एक्टिवेशन (आईपीए), और वायरल प्रोटीन एक्टिवेशन (वीपीए)। सटीक उपचार (प्रिसिजन ट्रीटमेंट) इसका केंद्र: प्रत्येक समूह सीधे विशिष्ट 'एक्शननेबल' जीन और मार्गों से जुड़ा हुआ है। यह चिकित्सकों को केवल पारंपरिक कीमोथेरेपी पर निर्भर रहने के बजाय एचईआर2 अवरोधक , पीएआरची अवरोधक, या विशिष्ट इम्यूनोथेरेपी जैसे लक्षित उपचारों का चयन करने के लिए मार्गदर्शन करता है।
———भारत के विशिष्ट बोझ का समाधान
पश्चिमी वर्गीकरणों के विपरीत, यह मॉडल तंबाकू और सुपारी के उपयोग से प्रभावित मार्गों पर जोर देता है, जो इसे भारतीय आबादी के लिए अत्यधिक प्रासंगिक बनाता है। यह यह भी स्पष्ट करता है कि अधिकांश भारतीय मुख कैंसर में एचपीवी एक गौण कारक है, जिससे पश्चिमी उपचार प्रोटोकॉल के गलत उपयोग को रोका जा सकता है। यह वर्गीकरण ऑन्कोलॉजिस्टों को सूचित निर्णय लेने के लिए एक साक्ष्य-आधारित ढांचा प्रदान करता है, जिससे पात्र रोगियों के लिए उन्नत लक्षित दवाओं के उपयोग की अनुमति मिलती है और दूसरों के लिए अप्रभावी उपचारों से बचा जा सकता है। यह वर्गीकरण न केवल उपचार में सुधार लाता है, बल्कि आयुष्मान भारत जैसी सरकारी योजनाओं के तहत आणविक परीक्षण को शामिल करने के लिए एक मजबूत आधार प्रदान करता है। 'राइट ड्रग फॉर द राइट पेशेंट' (सही रोगी के लिए सही दवा) के माध्यम से, हम न केवल जीवन बचा सकते हैं, बल्कि अप्रभावी और महंगी कीमोथेरेपी पर होने वाले अनावश्यक खर्च को कम करके परिवारों पर पड़ने वाले वित्तीय बोझ को भी सीमित कर सकते हैं। शोधकर्ताओं का मानना है कि ईजीएफआर, पीआईके 3सीए और सीडीकेएन 2ए जैसे 48 विशिष्ट जीनों की पहचान भारत में 'वैल्यू-बेस्ड केयर' की शुरुआत करेगी। इस शोध टीम में प्रो. मनोज पांडेय के अलावा डॉ. रूही दीक्षित, डॉ. पूजा सिंह, डॉ. मोनिका राजपूत और डॉ. मृदुला शुक्ला शामिल रही।
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हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी
