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एफवीएएस–बीएचयू को पाँचवीं सफलता : एमओईटी तकनीक से स्वदेशी सरोगेट गाय ने दी साहीवाल बछिया को जन्म

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एफवीएएस–बीएचयू को पाँचवीं सफलता : एमओईटी तकनीक से स्वदेशी सरोगेट गाय ने दी साहीवाल बछिया को जन्म


एफवीएएस–बीएचयू को पाँचवीं सफलता : एमओईटी तकनीक से स्वदेशी सरोगेट गाय ने दी साहीवाल बछिया को जन्म


वाराणसी, 30 दिसंबर (हि.स.)। राष्ट्रीय कृषि विकास योजना के अंतर्गत काशी हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) के राजीव गांधी दक्षिण परिसर, बरकछा स्थित कृषि विज्ञान संस्थान की फैकल्टी ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज (एफवीएएस) ने स्वदेशी गोवंश संरक्षण की दिशा में एक और महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है।

साहीवाल नस्ल के संरक्षण एवं आनुवंशिक सुधार के लिए संचालित परियोजना के तहत सोमवार शाम एफवीएएस डेयरी फार्म में एक स्वदेशी सरोगेट गाय ने 24.5 किलोग्राम वज़न की स्वस्थ साहीवाल मादा बछिया को जन्म दिया। इस प्रक्रिया में मल्टीपल ओव्यूलेशन एंड एम्ब्रियो ट्रांसफर (एमओईटी) तकनीक के साथ लिंग-परिक्षित वीर्य का सफलतापूर्वक उपयोग किया गया। यह एफवीएएस डेयरी फार्म में भ्रूण स्थानांतरण तकनीक के माध्यम से जन्मी पाँचवीं साहीवाल बछिया है।

उल्लेखनीय है कि 28 मार्च 2025 को एक उच्च दुग्ध-उत्पादक साहीवाल डोनर गाय से भ्रूण संग्रह प्रक्रिया के दौरान पाँच उच्च-गुणवत्ता वाले भ्रूण प्राप्त किए गए थे, जिन्हें पाँच अलग-अलग सरोगेट गायों में प्रत्यारोपित किया गया। विशेष बात यह है कि इसी सरोगेट गाय ने 13 माह के अंतराल में दूसरी बार बछिया को जन्म दिया है। इससे पूर्व 2 दिसंबर 2024 को भी इसी गाय ने भ्रूण स्थानांतरण के माध्यम से एक साहीवाल बछिया को जन्म दिया था। अब तक एफवीएएस में भ्रूण स्थानांतरण तकनीक से जन्मी सभी साहीवाल बछियाएँ पूर्णतः स्वस्थ हैं और उनकी वृद्धि दर सामान्य पाई गई है।

नवजात बछिया का निरीक्षण फैकल्टी ऑफ वेटरनरी एंड एनिमल साइंसेज के डीन प्रो. अमित राज गुप्ता तथा राजीव गांधी दक्षिण परिसर के प्रोफेसर-इन-चार्ज प्रो. बी. एम. एन. कुमार ने किया और फार्म प्रबंधन से संबंधित आवश्यक सुझाव दिए। कृषि विज्ञान संस्थान के निदेशक प्रो. यू. पी. सिंह ने भी स्वदेशी गोवंश संरक्षण के क्षेत्र में फैकल्टी द्वारा की जा रही निरंतर प्रगति की सराहना की।

यह परियोजना डॉ. मनीष कुमार (प्रधान अन्वेषक) के नेतृत्व में तथा डॉ. कौस्तुभ किशोर सराफ और डॉ. अजीत सिंह (सह-प्रधान अन्वेषक) के सहयोग से संचालित की जा रही है। भविष्य में ओवम पिक-अप (ओपीयू) और इन-विट्रो भ्रूण उत्पादन जैसी उन्नत प्रजनन तकनीकों को अपनाकर स्वदेशी नस्लों के संरक्षण एवं संवर्धन को और अधिक सशक्त बनाने की दिशा में कार्य किया जा रहा है।

हिन्दुस्थान समाचार / श्रीधर त्रिपाठी