धान की फसल को खैरा रोग से बचाने के लिए करें जिंक का प्रयोग :डाॅ आशीष राय



- अल्कलाइन व कैल्शियम की अधिक मात्रा वाली मिट्टी में होता है रोग का प्रकोप
पूर्वी चंपारण,07 जुलाई (हि.स.)। उत्तर बिहार के ज्यादातर कृषि योग्य भूमि पर धान की खेती की जाती है,लेकिन इस क्षेत्र के ज्यादा भूमि में जिंक की मात्रा कम है,वही अल्काइन और कैल्शियम की मात्रा ज्यादा पाया गया है।ऐसे भूमि में लगाये गये धान की फसल में खैरा रोग होने की संभावना ज्यादा है।उक्त बाते केवीके परसौनी के मृदा विशेषज्ञ डा.आशीष राय ने हिन्दुस्थान समाचार से कही।
उन्होने कहा कि उत्तर बिहार के भूमि में जिंक की कमी होने से धान की उपज हमेशा कमी देखी जा रही है।इसके साथ जिंक की कमी से अल्काइन और कैल्शियम की मात्रा बढ जाती है,नतीजतन धान की फसल खैरा समेत कई रोगो के चपेट में आ जाते है। उन्होने कहा कि मिट्टी की जांच में जिस मिट्टी का पीएच मान 8.0 के आसपास है या ऊपर रहता है उसमें सूक्ष्म पोषक तत्वों खासकर जिंक की कमी हो जाती है। खैरा रोग धान रोपने के बीस से पच्चीस दिनों के अंदर दिखने लगते हैं। इस रोग के लग जाने से पौधे के विकास से लेकर उसका पुष्पण,फलन व परागण तक प्रभावित हो जाता है। किसानों के लिए समय पर इस रोग की पहचान कर निरोधी उपाय करना जरूरी है।
उन्होने बताया कि उत्तर बिहार की मिट्टी में जिंक की कमी के दो प्रमुख कारण है,जिसमे मिट्टी में विभिन्न कारणों से कैल्शियम, सोडियम की मात्रा का बढ़ना या पीएच मान 8.0 से ऊपर होना। उन्होने कहा कि एक सर्वेक्षण के आधार यह पाया गया कि किसान भाई एक ही खेत में हाई इंटेन्सिटी धान,मक्का,गन्ना आदि फसलें बार-बार लगाते है। जिस कारण भूमि में जिंक की कमी हो रही है।
कैसे करे रोग की पहचान
धान के पौधे में खैरा रोग लगने पर इसकी बीच की पत्तियों पर भूरे या लाल रंग के धब्बे पड़ जाते हैं। जिससे पौधे का विकास रूक जाता है। बाद में ये पत्तियां सिकुड़ने व मुरझाने लगती हैं।
कैसे करे रोग से बचाव
धान के पौधे में खैरा रोग लगने पर किसी फंगीसाइड या पेस्टीसाइड का इस्तेमाल नहीं करें। जानकारी के अभाव में किसान इसे फंगस या कोई दूसरा रोग समझ कर कीटनाशी का प्रयोग करने लगते हैं। यह गलत है। इस रोग के निदान के लिए पानी में 0.5 प्रतिशत जिंक सल्फेट व 0.2 प्रतिशत बुझा हुआ चूना मिला कर रोगग्रस्त खेतों में लगी फसलों पर स्प्रे करना चाहिए। यह घोल 10-15 दिनों के अंतराल पर तीन बार स्प्रे करने से पौधे रोगमुक्त होने लगते हैं। खेत में धान की फसल लगाने से पूर्व प्रति हेक्टेयर 25 किलो जिंक सल्फेट डाल दिए जाने पर इसका नियंत्रण किया जा सकता है।
उन्होने कहा कि जिंक एक सूक्ष्म पोषक तत्व है,जिसकी कमी होने पर धान के पौधे खैरा रोग की चपेट में आ जाते हैं। समय पर रोगनिरोधी उपाय नहीं किए जाने से उपज में भारी गिरावट हो सकती है।
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हिन्दुस्थान समाचार / आनंद कुमार