कृषि एवं पारिस्थितिकी सामंजस्य : एक प्राकृतिक व्यवस्था


- विंग कमांडर एचएल रिसांगा (सेवानिवृत्त), आइजोल, मिजोरम
सौभाग्य ने हमें महाराष्ट्र के यवतमाल स्थित इस अद्भुत स्थान तक पहुंचाया, जहां “दीनदयाल सेवा प्रतिष्ठान” स्थित है। यह हमारी पहली यात्रा थी, इसलिए हम बेहद उत्साहित और जोश से भरे हुए थे। मेरे साथ समाजसेवी और प्रगतिशील किसानों का एक जुनूनी दल था जिसमें कुरुसार तिमुंग (डिफू, कार्बी आंगलोंग), रूपक गोगोई (तेजपुर) और कृष्ण कांत बोरा (गुवाहाटी) शामिल थे।
हम सभी पहले से ही इस प्रतिष्ठित संस्थान और इसके सराहनीय प्रयासों से अवगत थे, जो शिक्षा, सामाजिक सशक्तिकरण, आर्थिक मजबूती और स्वास्थ्य सेवाओं को बढ़ावा देने में लंबे समय से लगे हुए हैं। इस संस्थान ने किसानों की आत्महत्या से प्रभावित परिवारों के पुनर्वास और टिकाऊ, किफायती कृषि पद्धतियों को आगे बढ़ाने में जो समर्पित कार्य किया है, उसे देखकर गहरा आभार अनुभव होता है।
यवतमाल ने कई हृदयविदारक त्रासदियों का सामना किया है। उनमें से वर्ष 2017 में एक भयंकर घटना- जिसका कारण कीटनाशक विषाक्तता माना गया- ने कपास उत्पादक क्षेत्रों में 50 से अधिक किसानों की जान ले ली। फिर 2022 में क्षेत्र ने एक और दर्दनाक अध्याय देखा- कपास उत्पादक किसानों की आत्महत्या की घटनाएं, जहां खराब फसल और घटिया बीज गुणवत्ता जैसी चुनौतियों के कारण 800 से अधिक किसानों ने जीवन खो दिया। किंतु इस महान पहल के रूपांतरकारी प्रयासों से निराशा की इस धारा को मोड़कर आशा और उपचार का मार्ग प्रशस्त किया गया।
प्रभावशाली पहलों में से एक उल्लेखनीय है उन किसानों की विधवाओं को पुनः रोजगार के अवसर उपलब्ध कराना, जिन्होंने कृषि संकट के कारण अपनी जान गंवाई। इन महिलाओं को टिकाऊ कृषि पद्धतियों और व्यावसायिक प्रशिक्षण के माध्यम से सशक्त किया गया, जिससे वे छोटी दुकानों, सिलाई-कढ़ाई सेवाओं और अन्य उद्यमों की आसानी से शुरुआत कर सकें। इसके अलावा, नियमित स्वास्थ्य जांच और केवल 10 रुपये में दवाइयों सहित प्राथमिक स्वास्थ्य सेवाएं भी उपलब्ध कराई जाती हैं।
संस्थान में पहुंचते ही हमारी जिज्ञासा और उत्साह और बढ़ गया- हम इन नवाचारी, किफायती और पर्यावरण अनुकूल खेती की पद्धतियों को जानने के लिए हम सभी बहुत उत्सुक थे, जो टिकाऊ कृषि और किसानों की आजीविका सुधारने के लिए विकसित की गई थी। उत्तर-पूर्व भारत से होने के नाते, अब तक हमारा ज्ञान केवल साहित्य और शैक्षणिक अध्ययन तक सीमित था। प्रत्यक्ष रूप से इनका अनुभव करना अत्यंत शिक्षाप्रद और हम सभी पर गहरा प्रभाव डालने वाला अनुभव रहा।
संस्थान में मौजूद शरद जी ने हमारा स्वागत किया और पूरे उत्साह के साथ खेत की विशेषताओं को समझाया। उन्होंने शुरुआत में ही बताया कि खेत में हर जगह मेड़ (ज्तमदबी) बनाई जा रही हैं ताकि वर्षा का जल संचित किया जा सके। यह तकनीक मिट्टी की नमी और उर्वरता दोनों बढ़ाती है।
इसके बाद हमें हरी खाद (ढैंचा) दिखाई गई, जहां शरद जी ने बताया कि बिना किसी रासायनिक उपयोग के भी मिट्टी की उर्वरता बढ़ाई जा सकती है। इस प्रकार जैविक रूप से मिट्टी की उर्वरता बढ़ाकर हम हानिकारक रसायनों से बच सकते हैं, जो आजकल की कई बीमारियों की जड़ हैं।
इसके पश्चात् हम गोशाला गए, जहां हमें गोमूत्र के उपयोग की जानकारी दी गई। यह सुनकर हम चकित रह गए कि गोमूत्र जैविक खेती में कितनी उपयोगी है- इसे खरपतवार नाशक और प्राकृतिक कीटनाशक के रूप में भी इस्तेमाल किया जा सकता है।
हमारे लिए सबसे प्रेरणादायक नवाचारों में से एक था देशी बीज भंडारण कुटिया। यहां मिट्टी के मटकों में विभिन्न किस्मों और प्रजातियों के बीज सुरक्षित रखे जाते हैं और बाद में उन्हें खेत में बोया जाता है। यह न केवल जैव विविधता को संरक्षित करता है बल्कि पूर्वजों की उस परंपरागत कृषि बुद्धिमत्ता को भी जीवित रखता है, जिसने आज तक भारतीय किसान समुदाय को वैश्विक किसान समुदाय के समकक्ष टिकाए रखा और खड़ा रखा है।
संस्थान के भोजनालय में हमें स्वादिष्ट भोजन परोसा गया। बाद में पता चला कि इसका खर्च एक निवासी ने अपनी वैवाहिक वर्षगांठ के अवसर पर वहन किया था। यह परंपरा यहां की उदारता और सामुदायिक भावनाओं को दर्शाती है। यात्रा के बाद हमें पद्मश्री सुभाष खेतलाल शर्मा से मिलने का अवसर मिला, जिनका प्राकृतिक खेती में क्रांतिकारी कार्य और मॉडल यहाँ तथा अन्य कई खेतों में अपनाया गया है।
उनके खेत में अपनाया गया 2: . 3: . 30: .65: प्राकृतिक खेती का मॉडल वास्तव में अद्भुत था-
- 30: भूमि फलदार वृक्षों के लिए।
- 3: जल संरक्षण के लिए।
- 2: पशुपालन के लिए।
- 65: बहु-फसली खेती के लिए।
उन्होंने हमें यह भी बताया कि वृक्षों को पूर्व-पश्चिम दिशा में लगाना चाहिए ताकि सूर्य का अधिकतम प्रकाश मिल सके। इसके अतिरिक्त, उन्होंने अपने श्रमिकों के साथ पारिवारिक संबंध और आपसी विश्वास पर जोर दिया। इस मुलाकात के बाद हम सब नए उत्साह और आशा से भर उठे। समाज की उन्नति के लिए ऐसे समर्पित व्यक्तियों से मिलना हमारे लिए गौरव और प्रेरणा का स्रोत रहा।
पद्मश्री सुभाष खेतलाल शर्मा- यवतमाल में प्राकृतिक खेती के ध्वजवाहक :महाराष्ट्र के विदर्भ क्षेत्र के हृदय में, जहां किसान आत्महत्या की दुखद घटनाओं ने लंबे समय तक आशा की कहानियों पर अपनी काली परछायी डाली, वहीं एक व्यक्ति की यात्रा सबके लिऐ प्रेरणा का दीपक बनकर उभरी है। यवतमाल जिले के किसान सुभाष खेतुलाल शर्मा ने न केवल अपनी जमीन को रूपांतरित किया, बल्कि प्राकृतिक खेती के माध्यम से भारतीय कृषि में एक मौन क्रांति भी जगाई। उनके असाधारण योगदान को मान्यता देते हुए भारत सरकार ने वर्ष 2025 में उन्हें पद्मश्री सम्मान से अलंकृत किया है। यह यवतमाल से किसी व्यक्ति को मिला पहला पद्म सम्मान है।
रासायनिक खेती से प्राकृतिक समृद्धि तक :
सुभाष खेतुलाल शर्मा ने अपनी खेती की शुरुआत परंपरागत ढंग से की, जो रासायनिक उर्वरकों और कीटनाशकों पर अत्यधिक निर्भर थी। लेकिन वर्ष 1994 तक, लगातार घटती पैदावार और बिगड़ती मिट्टी की सेहत ने उन्हें अपनी पद्धति पर पुनर्विचार करने को मजबूर किया। उन्होंने साहसिक निर्णय लिया और रासायनिक खेती को त्यागकर पूर्णतः प्राकृतिक एवं टिकाऊ खेती अपनाई। परिणाम अद्भुत रहे। उनकी उपज 50 टन से बढ़कर वर्ष 2000 तक 400 टन से अधिक हो गई और इनपुट लागत भी बहुत कम हो गई।
खेत जो बन गया पाठशाला :
दरव्हा क्षेत्र के टिवसा गांव स्थित शर्मा का 20 एकड़ का खेत केवल आजीविका का साधन ही नहीं, बल्कि टिकाऊ कृषि की एक जीवंत प्रयोगशाला भी है। वर्षों से देशभर के हजारों किसान उनकी खेती को देखने और सीखने आते हैं। यहां वे मिट्टी की उर्वरता को पुनर्जीवित करने, जैव विविधता बढ़ाने और महंगे बाहरी इनपुट से स्वतंत्र होने के तरीके सीखते हैं।
उनकी प्राकृतिक खेती के सिद्धांत :
1. प्रकृति के साथ सामंजस्य- प्राकृतिक चक्रों को समझना और उनके साथ काम करना।
2. पशुपालन का समावेश- गोबर और गौमूत्र से जैविक खाद एवं कीटनाशक तैयार करना।
3. जैव विविधता- वृक्षारोपण और पक्षियों को प्रोत्साहित करना ताकि प्राकृतिक कीट नियंत्रण हो सके।
4. मिट्टी एवं जल संरक्षण- भूमि की रक्षा और समृद्धि सुनिश्चित करना।
5. बीज स्वराज्य- पारंपरिक, देशी बीजों का प्रयोग करना ताकि फसलें स्वादिष्ट और सशक्त हों।
मान्यता और प्रभाव :
सुबाष शर्मा के कार्यों ने राष्ट्रीय स्तर पर ध्यान आकर्षित किया है। पद्मश्री के अलावा उन्हें कई सम्मान प्राप्त हुए, जैसे : महाराष्ट्र कृषि भूषण, एग्रोवन द्वारा स्मार्ट फार्मर अवार्ड, पंडित दीनदयाल उपाध्याय सेवा पुरस्कार।
उनके दर्शन की सराहना डॉ. एमएस स्वामीनाथन, समाजसेवी अन्ना हजारे, नाबार्ड के अध्यक्ष उमेश चंद्र सारंगी और अनेक कृषि वैज्ञानिकों ने की है।
सहानुभूति से आगे किसानों के प्रति संवेदना :
शर्मा किसानों की समस्याओं की जड़ों को संबोधित करने पर जोर देते हैं। वे अक्सर कहते है कि किसान मरने के बाद उनसे सहानुभूति मत दिखाइए। यह समझिए कि वे ऐसे कदम उठाने को मजबूर क्यों होते हैं। उन्हें उनकी उपज का सही मूल्य दीजिए, वे गरिमा के साथ जीवन जीएंगे।
ग्रामीण समृद्धि का मॉडल :
एक ऐसे क्षेत्र में, जहां निराशा ने आशा को ढक लिया था, सुबाष शर्मा की सफलता यह जीवंत प्रमाण है कि खेती लाभकारी और टिकाऊ हो सकती है, वह भी प्रकृति का दोहन किए बिना। उनका कार्य आज भी नीति-निर्माताओं, कृषि महाविद्यालयों, कृषि विश्वविद्यालयों और किसान संगठनों को प्रेरित कर रहा है। -----------------------
हिन्दुस्थान समाचार / अरविन्द राय