आंसुओं के सैलाब के बीच भाइयों के लिए राखी लेकर उत्तराखंड के धराली पहुंची दो बहनें


उत्तरकाशी, 09 अगस्त (हि.स.)। उत्तराखंड के उत्तरकाशी जिले के धराली में बीते पांच अगस्त को प्राकृतिक आपदा ने जहां राज्य के लोगों को ही नहीं देश दुनिया
के लोगों को झकझेार कर रख दिया वहीं अब भी बहुत से लोग लापता हैं। शासन प्रशासन से लेकर परिजन उनकी खोज ओर कुशलक्षेम को लेकर चिंतित हैं।ऐसे लोगों का हाल जानने को अपने हाल बेहाल है, वे अपने जिगर के टुकडे को देखने को अधीर हैं। ऐसी ही दो बहनें शनिवार को अपने भाइयों की तलाश में
धराली पहुंची हैं।
आपदा में गुम हुए अपनों की तलाश और राह देखते देखते पिछले पांच दिन से परिजनों की आंखें पथरा रही हैं। उनका दिल यह मानने को तैयार ही नहीं है कि उनका अपना खून उनसे दूर हो गया है, उन्हें अभी भी यही लग रहा है कि उनका लाल, अपना खून, बस अब आने ही वाला है। उनकी आंखें एकटक गंगा की तेज लहरों की ओर निहार रही हैं। लेकिन उन्हें तो न गंगा की लहरों से अपनों के होने का एहसास हो रहा है और न ही चारों ओर फैले मलबे से ही उनकी रुह का पता चल रहा है।
आज रक्षाबंधन का पर्व है। ऐसे में उन बहनों के लिए आज का दिन बडा ही मार्मिक है। यह भाई बहन के आत्मीय स्नेह का पवित्र त्योहार है। राखी और माया ऐसी दो बहनें आज अपने भाइयों की तलाश में धराली पहुंची हैं और उनको उस आपदा क्षेत्र में खाेज रही हैं। अपने भाइयों को पाने को अधीर दोनों बहनों को कुछ सूझ नहीं रहा है कि वे क्या कुछ ऐसा जतन करें कि उनके भाई उन्हें मिल जाएं। वे दोनों कई दिनों से अपने भाइयों की खोजबीन में व्याकुल हैं। रो रोकर उनका बुराहाल हो गया है। राखी धराली की निवासी है तो माया देहरादून की रहने वाली है। दोनों ही बहनें पिछले पांच दिनों से अपने भाई को फोन कर रही हैं, लेकिन उनका फोन नहीं लग रहा।
जिला प्रशासन इन भाइयों की कलाई पर रक्षा सूत्र तो नहीं बंधवा पाया, लेकिन उसने इतना रहम जरूर दिखाया कि पिछले पांच दिनों से भाई को खोजने धराली जाने के लिए गुहार लगा रही इन बहनों को उत्तरकाशी के मातली से रक्षाबंधन पर हेलीकॉप्टर से धराली भेज दिया है।
गौरतलब है कि धराली की आपदा ने लोगों की आजीविका चलाने वाले घर, होटल, होमस्टे दुकान, सेब के बागवान सबको जमींदोज कर दिया है। बहुतों को हमेशा हमेशा के लिए अपनों से भी दूर कर दिया है। महज 34 सेकेंड के उस जल सैलाब ने धराली का नक्शा तो बदल ही दिया है, बहुतों की जिंदगी भी तबाह कर दी है, जो सो गए। लेकिन जो रह गए, उनके हिस्से कभी न भुलाया जाने वाला दु:ख और अपनों को खोने का दर्द छोड़ दिया है। ऐसा दर्द जिसकी कोई दवा नही, ऐसा दु:ख जिसकी कोई कभी भी कोई भरपाई नहीं कर सकता है।
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हिन्दुस्थान समाचार / चिरंजीव सेमवाल