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ULFA का दावा: म्यांमार में भारतीय सेना ने किया ड्रोन हमला

यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (ULFA-I) ने म्यांमार में भारतीय सेना द्वारा किए गए एक ड्रोन हमले का दावा किया है, जिसमें उनके एक वरिष्ठ नेता की मौत और 19 अन्य के घायल होने की बात कही गई है। हालांकि, भारतीय सेना ने इस हमले की किसी भी जानकारी से इनकार किया है। ULFA के इतिहास और उनके उद्देश्यों पर भी चर्चा की गई है। इस घटना के पीछे की सच्चाई जानने के लिए पढ़ें पूरा लेख।
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ULFA का दावा: म्यांमार में भारतीय सेना ने किया ड्रोन हमला

गुवाहाटी में ULFA का सनसनीखेज आरोप

गुवाहाटी: उग्रवादी समूह यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम-इंडिपेंडेंट (ULFA-I) ने एक चौंकाने वाला बयान जारी करते हुए कहा है कि भारतीय सेना ने म्यांमार की सीमा के भीतर उनके शिविरों पर ड्रोन से हमला किया है। संगठन के अनुसार, इस हमले में उनके एक वरिष्ठ नेता की मृत्यु हो गई है और लगभग 19 अन्य सदस्य घायल हुए हैं। हालांकि, भारतीय सेना ने इस प्रकार के किसी भी ऑपरेशन की जानकारी होने से स्पष्ट रूप से इनकार किया है।


ULFA का दावा: ड्रोन हमले में वरिष्ठ नेता की मौत


ULFA (I) द्वारा जारी एक बयान में कहा गया है कि म्यांमार के सागिंग क्षेत्र में स्थित उनके कई मोबाइल शिविरों पर तड़के ड्रोन से हमला किया गया। संगठन ने यह भी दावा किया कि इस हमले में उनके एक वरिष्ठ नेता की जान चली गई। सूत्रों के अनुसार, ULFA-I के साथ-साथ एनएससीएन-के (NSCN-K) के ठिकानों को भी निशाना बनाया गया, जिसमें उस संगठन के कई कार्यकर्ताओं के हताहत होने की संभावना है।


भारतीय सेना ने आरोपों को खारिज किया


ULFA के इन दावों पर प्रतिक्रिया देते हुए रक्षा प्रवक्ता लेफ्टिनेंट कर्नल महेंद्र रावत ने स्पष्ट किया, "भारतीय सेना के पास इस तरह के किसी भी ऑपरेशन की कोई जानकारी नहीं है।" सेना ने सीमा पार किसी भी कार्रवाई से इनकार करते हुए इन आरोपों को खारिज कर दिया है।


ULFA का परिचय


यूनाइटेड लिबरेशन फ्रंट ऑफ असम (ULFA) पूर्वोत्तर भारत में सक्रिय एक प्रमुख उग्रवादी संगठन है, जिसकी स्थापना 1979 में परेश बरुआ और उसके सहयोगियों ने की थी। इसका मुख्य उद्देश्य असम को एक स्वतंत्र राज्य बनाना है। भारत सरकार ने इसके अलगाववादी एजेंडे और हिंसक गतिविधियों के कारण 1990 में इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। एक समय था जब ULFA के आतंक के कारण चाय व्यापारियों को भी असम छोड़ना पड़ा था। 2008 में इसके एक प्रमुख नेता अरबिंद राजखोवा को बांग्लादेश से गिरफ्तार कर भारत को सौंपा गया था, जिसके बाद संगठन कमजोर हुआ, लेकिन परेश बरुआ का गुट (ULFA-I) अभी भी सक्रिय है।