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अंत्योदय दिवस 2025: पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती का महत्व

25 सितंबर को पूरे देश में अंत्योदय दिवस मनाया जा रहा है, जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर उनके योगदान को याद करता है। यह दिन समाज के सबसे गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के उत्थान के प्रति उनके दृष्टिकोण को उजागर करता है। उपाध्याय के विचारों के अनुसार, सच्ची राष्ट्रीय प्रगति तभी संभव है जब समाज के अंतिम व्यक्ति को सशक्त किया जाए। इस अवसर पर विभिन्न संगठनों द्वारा शिक्षा, स्वास्थ्य और कौशल विकास पर कार्यक्रम आयोजित किए जाते हैं।
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अंत्योदय दिवस 2025: पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती का महत्व

अंत्योदय दिवस का उत्सव

अंत्योदय दिवस 2025: आज (25 सितंबर) पूरे भारत में पंडित दीनदयाल उपाध्याय की जयंती के अवसर पर अंत्योदय दिवस मनाया जा रहा है। यह दिन हर साल उपाध्याय के जीवन और उनके योगदान को याद करने के लिए मनाया जाता है, जो भारतीय राजनीति के एक महत्वपूर्ण व्यक्तित्व थे। अंत्योदय दिवस का उद्देश्य समाज के सबसे गरीब और हाशिए पर पड़े वर्गों के उत्थान के प्रति उनके दृष्टिकोण को उजागर करना है, जो 'अंतिम व्यक्ति' की सेवा के उनके सिद्धांत को दर्शाता है।


उपाध्याय की जयंती का महत्व

उपाध्याय की जयंती अंत्योदय के दिन मनाई जाती है, जिसका अर्थ है 'अंतिम व्यक्ति का उदय'। यह दिन वंचितों और हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए उनके प्रयासों का सम्मान करता है। अंत्योदय का अर्थ है 'अंतिम व्यक्ति का उत्थान', जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के दर्शन को दर्शाता है। यह दिन जागरूकता और कार्रवाई को बढ़ावा देने के लिए समर्पित है, ताकि समाज के अंतिम व्यक्ति के कल्याण को प्राथमिकता दी जा सके।


उपाध्याय के प्रयासों का सम्मान

अंत्योदय दिवस का आयोजन वंचितों और कम भाग्यशाली लोगों के जीवन को बेहतर बनाने के लिए उपाध्याय के प्रयासों को मान्यता देने के लिए किया जाता है। इस अवसर पर, विभिन्न सरकारी और गैर-सरकारी संगठन शिक्षा, स्वास्थ्य सेवा और कौशल विकास पर केंद्रित सेमिनार, कार्यशालाएं और सामुदायिक सेवा गतिविधियों का आयोजन करते हैं।


अंत्योदय दिवस का महत्व

अंत्योदय दिवस का महत्व गहरा है, क्योंकि यह पंडित दीनदयाल उपाध्याय के विचारों को दर्शाता है। उन्होंने समाज के सबसे गरीब और हाशिए पर पड़े लोगों के उत्थान के लिए 'अंत्योदय' शब्द का प्रयोग किया। उनका मानना था कि सच्ची राष्ट्रीय प्रगति केवल तब संभव है जब समाज के सबसे निचले स्तर पर मौजूद लोगों को सशक्त किया जाए।


उपाध्याय की विरासत

उपाध्याय ने भारतीय संस्कृति और राष्ट्रवाद के महत्व पर जोर दिया। उनका मानना था कि कोई भी राष्ट्र अपनी परंपराओं से अलग होकर समृद्ध नहीं हो सकता। इस दृष्टिकोण को मान्यता देने के लिए, भारत सरकार ने 2014 में उनकी 98वीं जयंती पर 25 सितंबर को अंत्योदय दिवस के रूप में मनाने की घोषणा की। यह दिन समावेशी विकास और सामाजिक न्याय के उनके मिशन की याद दिलाता है।


अंत्योदय दिवस की शुरुआत

2014 में, प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 25 सितंबर को अंत्योदय दिवस के रूप में घोषित किया, जो पंडित दीनदयाल उपाध्याय के योगदान को याद करने के लिए एक राष्ट्रीय उत्सव है। उसी वर्ष, ग्रामीण विकास मंत्रालय ने राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन (एनआरएलएम) के तहत अपने कौशल कार्यक्रम का पुनर्गठन किया।


मुगलसराय जंक्शन का नाम परिवर्तन

उनकी विरासत का सम्मान करते हुए, 2018 में मुगलसराय जंक्शन रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर दीन दयाल उपाध्याय जंक्शन कर दिया गया। यह उस स्थान को चिह्नित करता है जहां 1968 में उनका निधन हुआ था।


पंडित दीनदयाल उपाध्याय का परिचय

पंडित दीनदयाल उपाध्याय भारतीय जनसंघ (बीजेएस) के सह-संस्थापक थे, जो भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) का पूर्ववर्ती था। उनका मानना था कि सबसे गरीब व्यक्ति का भी कल्याण सुनिश्चित किया जाना चाहिए। उनका मंत्र था कि अंतिम व्यक्ति का उत्थान होना चाहिए।


उपाध्याय का जीवन

पंडित दीनदयाल उपाध्याय का जन्म 25 सितंबर, 1916 को मथुरा जिले के नगला चंद्रभान गांव में हुआ था। उन्होंने अपने जीवन का अधिकांश समय गरीबों और जरूरतमंदों के लिए काम करने में बिताया। वे एक प्रसिद्ध दार्शनिक थे और सामाजिक न्याय, आर्थिक समानता और आत्मनिर्भरता के समर्थक थे।


उनकी हत्या

अपनी पढ़ाई पूरी करने के बाद, दीनदयाल उपाध्याय राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) में शामिल हो गए। वे भारतीय जनसंघ के संस्थापक सदस्यों में से एक थे। 1968 में मुगलसराय रेलवे स्टेशन पर उनकी हत्या कर दी गई।


अंतिम विचार