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अफगानिस्तान में बच्चा बाजी: एक गंभीर सामाजिक समस्या

अफगानिस्तान में बच्चा बाजी की प्रथा, जो किशोर लड़कों के यौन शोषण से जुड़ी है, एक गंभीर सामाजिक समस्या बन चुकी है। तालिबान के शासन में महिलाओं को सार्वजनिक जीवन से अलग रखा गया है, जिसके कारण पुरुष मनोरंजन के लिए लड़कों का उपयोग करते हैं। इस प्रथा के तहत लड़कों को महिलाओं की तरह सजाया जाता है और उन्हें नृत्य करने के लिए मजबूर किया जाता है। यह प्रथा इस्लामी नियमों का उल्लंघन मानी जाती है, लेकिन फिर भी यह जारी है। जानिए इस गंभीर मुद्दे के बारे में और अधिक जानकारी।
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अफगानिस्तान में बच्चा बाजी: एक गंभीर सामाजिक समस्या

अफगानिस्तान में बच्चा बाजी की प्रथा

अफगानिस्तान में बच्चा बाजी: तालिबान के शासन के बाद से, अफगानिस्तान में महिलाओं के प्रति सख्त शरिया कानून लागू किए गए हैं। इस सख्ती के चलते, बच्चा बाजी की प्रथा का उदय हुआ है। यह प्रथा मुख्य रूप से किशोर लड़कों (जो आमतौर पर 10 से 18 वर्ष के होते हैं) के यौन शोषण और मनोरंजन के लिए उपयोग की जाती है। इसमें धनी और प्रभावशाली पुरुष इन लड़कों को खरीदते हैं या जबरन शामिल करते हैं, उन्हें महिलाओं की तरह कपड़े पहनाते हैं, और उन्हें नृत्य या अन्य मनोरंजन के लिए प्रस्तुत करते हैं। यह प्रथा अक्सर यौन शोषण में बदल जाती है, जहां लड़कों को इन पुरुषों की इच्छाओं को पूरा करने के लिए मजबूर किया जाता है।


लड़कों को महिलाओं की तरह सजाया जाता है

"बच्चा बाजी" में लड़कों को "बच्चा" या "नाचने वाला लड़का" कहा जाता है, और उन्हें महिलाओं की तरह सजाया जाता है। ये लड़के अक्सर गरीब परिवारों से आते हैं, जहां उन्हें बेचा जाता है या जबरन शामिल किया जाता है।



महिलाओं को छूने पर मिलती है सजा ए मौत

यह प्रथा अफगानिस्तान में महिलाओं के सार्वजनिक जीवन से अलग-थलग रहने के कारण उभरी है। चूंकि महिलाओं को सार्वजनिक रूप से भाग लेने से मना किया जाता है, इसलिए पुरुष मनोरंजन के लिए लड़कों का उपयोग करते हैं।


यौन शोषण का शिकार होते हैं लड़के

कई बार ये लड़के यौन शोषण का शिकार होते हैं, जो इस प्रथा को और भी क्रूर बनाता है। यह प्रथा इस्लामी नियमों का उल्लंघन मानी जाती है, लेकिन फिर भी यह जारी है। तालिबान ने 1990 के दशक में इस प्रथा पर पाबंदी लगाने का दावा किया था, लेकिन रिपोर्ट्स बताती हैं कि यह अभी भी जारी है, खासकर शक्तिशाली लोगों के बीच। तालिबान के वर्तमान शासन में भी इस प्रथा को पूरी तरह खत्म नहीं किया गया है।