अमेरिका का इजरायल के प्रति समर्थन: ईरान-इजरायल तनाव के बीच सुरक्षा उपाय
ईरान और इजरायल के बीच बढ़ता तनाव
हाल ही में ईरान और इजरायल के बीच तनाव में वृद्धि हुई है, जिसके चलते अमेरिका ने इजरायल के प्रति अपने समर्थन को फिर से स्पष्ट किया है। इजरायल ने ईरान के महत्वपूर्ण परमाणु और सैन्य स्थलों पर सटीक हमले किए हैं, जिसके जवाब में ईरान ने भी कार्रवाई की है। इस स्थिति में अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा को सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण संसाधनों को तैनात किया है। रिपोर्टों के अनुसार, अमेरिका ने अपनी उन्नत एंटी-मिसाइल रक्षा प्रणाली का लगभग 20 प्रतिशत हिस्सा इस क्षेत्र में भेजा है। विशेष रूप से, THAAD मिसाइल रक्षा प्रणाली को इजरायल में स्थापित किया गया है ताकि संभावित हमलों को प्रभावी ढंग से रोका जा सके।यह पहली बार नहीं है जब अमेरिका ने इजरायल के प्रति अपनी प्रतिबद्धता दिखाई है। इतिहास में कई मौकों पर अमेरिका ने इजरायल की सुरक्षा के लिए अपने हितों को जोखिम में डालकर समर्थन दिया है। एक प्रमुख उदाहरण 1967 का छह दिन का युद्ध है, जिसमें इजरायल ने वेस्ट बैंक, गाजा पट्टी, सिनाई प्रायद्वीप और गोलान हाइट्स पर कब्जा किया। उस समय भी अमेरिका ने इजरायल का समर्थन किया, भले ही इसके परिणामस्वरूप क्षेत्रीय और वैश्विक ऊर्जा संकट उत्पन्न हुआ।
योम किप्पुर युद्ध का महत्व
इजरायल के कैलेंडर में 'योम किप्पुर' को सबसे पवित्र दिन माना जाता है। 1973 में इसी दिन मिस्र और सीरिया ने अचानक इजरायल पर हमला किया, जिससे इजरायल पूरी तरह से तैयार नहीं था। इस संकट के दौरान इजरायल ने तुरंत अमेरिकी मदद की मांग की, और अमेरिका ने बिना किसी देरी के युद्ध सामग्री और सैन्य सहायता भेजी। यह संघर्ष 'योम किप्पुर युद्ध' के नाम से जाना जाता है, जो 6 अक्टूबर से 25 अक्टूबर 1973 तक चला।
शुरुआती दिनों में, मिस्र और सीरिया की सेनाओं ने गोलान हाइट्स और सिनाई क्षेत्रों में काफी बढ़त बना ली थी, जिससे ऐसा प्रतीत हुआ कि वे विजेता होंगे। लेकिन बाद में इजरायल ने कड़ा मुकाबला करते हुए स्थिति को पलट दिया और दमिश्क सहित कई स्थानों पर घातक हमले किए। यह सब अमेरिका की सहायता के कारण संभव हो पाया।
अमेरिका का समर्थन और वैश्विक तनाव
इस युद्ध के दौरान अमेरिका ने इजरायल का खुलकर समर्थन किया, जबकि सोवियत संघ ने मिस्र और सीरिया का पक्ष लिया। वैश्विक तनाव इतना बढ़ गया था कि यह परमाणु संघर्ष के कगार तक पहुंच गया। हालांकि अंततः एक सीजफायर हुआ, लेकिन इसके बाद अरब देशों ने तेल निर्यात बंद कर दिया, जिससे अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों को ऊर्जा संकट का सामना करना पड़ा।