अमेरिका का नया कदम: पाकिस्तान में खनिज निवेश से शहबाज शरीफ की चिंताएं बढ़ीं

दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक बदलाव
इस्लामाबाद: दक्षिण एशिया में भू-राजनीतिक परिदृश्य तेजी से बदल रहा है। पिछले महीने भारत पर 25% का भारी टैरिफ लगाने के बाद, अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप प्रशासन ने एक नया कदम उठाया है। भारत के साथ बढ़ते तनाव के बीच, अमेरिका ने आर्थिक संकट का सामना कर रहे पाकिस्तान के साथ संबंध मजबूत करने का प्रयास किया है। हाल ही में, एक अमेरिकी कंपनी ने पाकिस्तान के साथ 50 करोड़ डॉलर (लगभग 4150 करोड़ रुपये) के खनिज निवेश समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसने क्षेत्र में हलचल मचा दी है।
समझौते की जानकारी
यह समझौता मिसौरी स्थित 'यूएस स्ट्रैटेजिक मेटल्स' और पाकिस्तान के प्रमुख खननकर्ता 'फ्रंटियर वर्क्स ऑर्गनाइजेशन' के बीच हुआ है। इस समझौते के तहत, पाकिस्तान में महत्वपूर्ण खनिजों के खनन के साथ-साथ एक पॉली-मेटैलिक रिफाइनरी की स्थापना की जाएगी। यह कदम वॉशिंगटन और इस्लामाबाद के बीच पिछले महीने हुए व्यापारिक समझौते का अगला चरण है। अमेरिकी दूतावास ने इसे 'अमेरिका-पाकिस्तान द्विपक्षीय संबंधों की मजबूती का एक और उदाहरण' बताया है।
शहबाज शरीफ की चिंताएं
प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ के कार्यालय ने भी इस संबंध में बयान जारी किया है, जिसमें तांबे, सोने और अन्य दुर्लभ खनिज संसाधनों पर चर्चा की गई है। शरीफ का कहना है कि पाकिस्तान के पास खरबों डॉलर का खनिज भंडार है, जो विदेशी निवेश से देश को आर्थिक संकट से उबार सकता है। हालांकि, इस अमेरिकी निवेश के साथ दो बड़ी चिंताएं भी जुड़ी हुई हैं।
बलूचिस्तान में विद्रोहियों का खतरा
पाकिस्तान की सबसे बड़ी चिंता यह है कि उसकी अधिकांश खनिज संपदा अशांत बलूचिस्तान प्रांत में स्थित है। यहां बलूच अलगाववादी लंबे समय से विदेशी कंपनियों के खिलाफ हिंसक विरोध कर रहे हैं। अमेरिकी विदेश विभाग ने अगस्त में 'बलूचिस्तान नेशनल आर्मी' को एक विदेशी आतंकवादी संगठन घोषित किया था। ऐसे में, यदि अमेरिकी कंपनी खनन शुरू करती है, तो विद्रोही उस पर हमला कर सकते हैं, जिससे पूरा प्रोजेक्ट खतरे में पड़ सकता है।
चीन की नाराजगी का डर
शरीफ की दूसरी चिंता उनके पुराने मित्र और सबसे बड़े कर्जदाता चीन की नाराजगी है। अमेरिका और चीन के बीच चल रहे वैश्विक प्रभुत्व के संघर्ष से पूरी दुनिया परिचित है। पाकिस्तान में चीन ने खरबों डॉलर का निवेश किया है और वह उसका सबसे बड़ा सहयोगी है। ऐसे में, जब भारत-अमेरिका संबंधों में तनाव है, तब पाकिस्तान का अमेरिका के करीब जाना चीन को अस्वीकार्य हो सकता है। यदि चीन ने नाराज होकर निवेश वापस लिया, तो पाकिस्तान का भारी कर्ज चुकाना मुश्किल हो जाएगा और उसकी अर्थव्यवस्था संकट में पड़ जाएगी।
निष्कर्ष
यह स्पष्ट है कि यह अमेरिकी डील पाकिस्तान के लिए एक सुनहरा अवसर है, लेकिन साथ ही यह एक बड़ी चुनौती भी है, जो शहबाज शरीफ को दो मोर्चों पर उलझा रही है।