अमेरिका का शांति निर्माता होने का दावा, भारत का स्पष्ट रुख

अमेरिका की शांति की कोशिशें
अमेरिका ने खुद को शांति का निर्माता बताने की कोशिश की है। हाल ही में, अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने कहा कि अमेरिका भारत और पाकिस्तान के बीच स्थिति पर लगातार नजर रखता है। उन्होंने यह भी कहा कि अमेरिका ने इन दोनों परमाणु देशों के बीच संघर्ष विराम में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। रुबियो ने कहा, "हम हर दिन पाकिस्तान और भारत के बीच की घटनाओं पर ध्यान देते हैं।" यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रम्प के उस दावे के बाद आया है जिसमें उन्होंने कहा था कि उनके प्रशासन ने भारत और पाकिस्तान के बीच संघर्ष विराम स्थापित किया था, जिसे भारत ने हमेशा खारिज किया है।मारको रुबियो ने फॉक्स बिजनेस के साथ बातचीत में अमेरिकी प्रशासन के शांति स्थापित करने के प्रयासों को दोहराया। उन्होंने कहा, "हम भाग्यशाली हैं कि हमारे पास एक ऐसा राष्ट्रपति है जिसने शांति को प्राथमिकता दी है। हमने इसे कंबोडिया और थाईलैंड में देखा है, और अब भारत-पाकिस्तान में भी।" उनके बयान अंतरराष्ट्रीय संबंधों में अमेरिका की भूमिका को दर्शाते हैं, लेकिन यह भारत के आधिकारिक रुख के विपरीत है।
भारत का स्पष्ट रुख
मारको रुबियो के बयान भारत के आधिकारिक रुख से मेल नहीं खाते। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल ही में ऑपरेशन सिंदूर पर चर्चा करते हुए स्पष्ट किया कि किसी विदेशी नेता ने भारत से सैन्य मिशन वापस लेने का अनुरोध नहीं किया। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने भी किसी तीसरे पक्ष की मध्यस्थता के सुझावों को खारिज किया। उन्होंने कहा, "यह पूरी तरह से एक द्विपक्षीय निर्णय था।" यह दर्शाता है कि भारत अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा और कूटनीति में स्वतंत्र निर्णय लेने में विश्वास रखता है।
रुबियो का रूस पर आरोप
रुबियो की टिप्पणियां वैश्विक संघर्ष विरामों, विशेषकर यूक्रेन युद्ध के संदर्भ में आईं। एनबीसी के 'मीट द प्रेस' पर उन्होंने संघर्ष विराम की चुनौतियों को स्वीकार किया और रूस को यूक्रेन में प्रगति की कमी के लिए जिम्मेदार ठहराया। यह बयान अंतरराष्ट्रीय भू-राजनीति की जटिलताओं को उजागर करता है।
भारत-अमेरिका संबंधों में बारीकियां
अमेरिका द्वारा शांति के निर्माता के रूप में खुद को प्रस्तुत करने के प्रयास और भारत के द्विपक्षीय निर्णय पर जोर देने के बीच एक स्पष्ट अंतर है। भारत की विदेश नीति हमेशा संप्रभुता और स्वतंत्र निर्णय लेने की क्षमता पर केंद्रित रही है। प्रधानमंत्री मोदी और विदेश मंत्री जयशंकर के बयानों से यह स्पष्ट है कि भारत अपनी कूटनीति में पारदर्शिता को महत्व देता है।