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अमेरिका की चिंता: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों पर नई टिप्पणी

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने भारत द्वारा रूस से हथियार खरीदने पर चिंता व्यक्त की है। उन्होंने भारत के ऐतिहासिक सैन्य संबंधों को स्वीकार करते हुए, अमेरिका द्वारा बेहतर विकल्पों की पेशकश की बात की। जानें कि कैसे भारत अपने रक्षा आयात में विविधता लाने का प्रयास कर रहा है और अमेरिका की चिंताएं क्या हैं।
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अमेरिका की चिंता: भारत और रूस के बीच रक्षा संबंधों पर नई टिप्पणी

अमेरिकी वाणिज्य सचिव की चेतावनी

अमेरिकी वाणिज्य सचिव हावर्ड लुटनिक ने हाल ही में भारत द्वारा रूस से हथियार खरीदने को लेकर अमेरिका की चिंताओं को स्पष्ट किया है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया कि भारत और रूस के बीच ऐतिहासिक सैन्य खरीद संबंध रहे हैं। शीत युद्ध के दौरान, भारत ने पूर्व सोवियत संघ पर अपने सैन्य उपकरणों के लिए काफी निर्भरता दिखाई थी, जो आज भी जारी है।


सिंगापुर में एक कार्यक्रम में बोलते हुए, लुटनिक ने अमेरिका के दृष्टिकोण को साझा किया। उन्होंने कहा कि भारत को यह अच्छी तरह से पता है कि अमेरिका रूस के रक्षा सौदों को किस तरह देखता है। रूस और यूक्रेन के बीच चल रहे संघर्ष के संदर्भ में, अमेरिका ने कई देशों से आग्रह किया है कि वे रूस के साथ अपने रक्षा संबंधों को सीमित करें, ताकि रूस की अर्थव्यवस्था और सैन्य क्षमताओं पर दबाव डाला जा सके।


लुटनिक ने यह भी कहा कि अमेरिका भारत की रक्षा आवश्यकताओं और ऐतिहासिक संबंधों को समझता है। हालांकि, उन्होंने सुझाव दिया कि अमेरिका भारत को बेहतर विकल्प प्रदान कर सकता है। इसका मतलब यह है कि अमेरिका भारत को ऐसे सैन्य हार्डवेयर और प्रौद्योगिकी की पेशकश करने के लिए तैयार है, जो रूसी हथियारों से बेहतर या प्रतिस्पर्धी हो सकते हैं। इससे भारत को धीरे-धीरे रूसी उपकरणों पर अपनी निर्भरता कम करने में मदद मिल सकती है।


भारत ने पिछले कुछ वर्षों में अपने रक्षा खरीद में विविधता लाने का प्रयास किया है, जिसमें अमेरिका, फ्रांस, इज़राइल और अन्य देशों से हथियार शामिल हैं। फिर भी, भारतीय सशस्त्र बलों का एक बड़ा हिस्सा अभी भी रूसी मूल के उपकरणों पर निर्भर है, जिसके लिए निरंतर रखरखाव और स्पेयर पार्ट्स की आवश्यकता होती है।


अमेरिकी अधिकारियों के बयान यह दर्शाते हैं कि अमेरिका भारत के साथ अपनी रणनीतिक साझेदारी को मजबूत करना चाहता है, लेकिन रूस के साथ उसके गहरे रक्षा संबंधों पर उसकी चिंताएं बनी हुई हैं। भविष्य में यह देखना दिलचस्प होगा कि भारत अपने रक्षा आयात में कितनी विविधता ला पाता है और क्या अमेरिकी पेशकशें इस प्रक्रिया को तेज करने में मदद करेंगी।