अमेरिका के टैरिफ का इतिहास: 1929 का स्मूट-हॉली अधिनियम और वर्तमान स्थिति
टैरिफ का प्रभाव और व्यापार युद्ध
डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति बनने के बाद से अमेरिका ने कई देशों पर टैरिफ लगाने की प्रक्रिया शुरू की है, जिसे व्यापार युद्ध के रूप में देखा जा रहा है। उनका नारा 'मेक अमेरिका ग्रेट अगेन' है, और भारत पर भी टैरिफ लगाने की चर्चा हो रही है। इस कदम ने वैश्विक बाजार में हलचल मचा दी है। क्या आप जानते हैं कि अमेरिका ने पहले भी टैरिफ लगाए थे, जिससे उसे गंभीर नुकसान उठाना पड़ा था?
स्मूट-हॉली टैरिफ अधिनियम का इतिहास
1929 में अमेरिका ने एक ऐसा कानून बनाया, जिसने उसकी अर्थव्यवस्था को बुरी तरह प्रभावित किया। यह कानून स्मूट-हॉली टैरिफ अधिनियम के नाम से जाना जाता है, जिसे राष्ट्रपति हर्बर्ट हूवर के कार्यकाल में लागू किया गया।
इस अधिनियम का उद्देश्य अमेरिकी किसानों और व्यवसायों को विदेशी प्रतिस्पर्धा से बचाना था, जिसके तहत आयात शुल्क को बढ़ाया गया।
कानून का प्रभाव
स्मूट-हॉली अधिनियम के तहत विदेशी आयातों पर शुल्क लगभग 20% बढ़ा दिया गया। इसके परिणामस्वरूप, 25 से अधिक देशों ने अमेरिकी उत्पादों पर अपने शुल्क बढ़ा दिए, जिससे वैश्विक व्यापार में भारी गिरावट आई। 1929 से 1934 के बीच, वैश्विक व्यापार में 66% की कमी आई।
इस कानून ने वैश्विक महामंदी को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, हालांकि यह अकेले इसका कारण नहीं था।
टैरिफ बढ़ाने के परिणाम
अमेरिका के इस निर्णय के कारण अन्य देशों ने भी अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ बढ़ा दिए, जिससे अमेरिकी सामान की बिक्री में कमी आई।
इस दौरान, अमेरिका की GDP में लगभग 30% की गिरावट आई और बेरोजगारी दर 1933 तक 25% तक पहुंच गई। लाखों लोग बेरोजगार हो गए और कई कंपनियां बंद हो गईं।
ट्रेड वॉर का प्रभाव
जब एक देश टैरिफ बढ़ाता है, तो अन्य देश भी ऐसा ही करते हैं, जिससे व्यापार युद्ध की स्थिति उत्पन्न होती है। इससे वैश्विक व्यापार बाधित होता है और सभी देशों को नुकसान होता है।
इस ऐतिहासिक गलती से यह सीख मिली कि अत्यधिक टैरिफ लंबे समय में अर्थव्यवस्था को नुकसान पहुंचाते हैं।
भविष्य के लिए सबक
इस अनुभव के बाद, अमेरिका ने 1934 में Reciprocal Trade Agreements Act लाकर टैरिफ में कटौती शुरू की और अंतरराष्ट्रीय व्यापार को फिर से बढ़ावा दिया।
हालांकि, डोनाल्ड ट्रंप जैसे नेता फिर से टैरिफ बढ़ाने की कोशिश कर रहे हैं, लेकिन इतिहास बताता है कि संरक्षणवाद दीर्घकाल में हानिकारक हो सकता है।