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अरावली क्षेत्र की सुरक्षा पर केंद्र सरकार का स्पष्ट रुख

केंद्र सरकार ने अरावली क्षेत्र की सुरक्षा को लेकर महत्वपूर्ण कदम उठाए हैं। सरकार ने स्पष्ट किया है कि अरावली का 90 प्रतिशत हिस्सा संरक्षित रहेगा और खनन पर रोक जारी रहेगी। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर भ्रम को दूर करने के लिए नई परिभाषा की जानकारी दी। सुप्रीम कोर्ट के आदेशों के तहत, खनन केवल आवश्यक और रणनीतिक खनिजों के लिए सीमित छूट के साथ किया जाएगा। सरकार ने अरावली की रक्षा के लिए कई कदम उठाने की प्रतिबद्धता जताई है।
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अरावली क्षेत्र की सुरक्षा पर केंद्र सरकार का स्पष्ट रुख

अरावली क्षेत्र की सुरक्षा सुनिश्चित करने का आश्वासन


नई दिल्ली: केंद्र सरकार ने रविवार को स्पष्ट किया कि अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा संरक्षित रहेगा। नई परिभाषा के तहत बड़े पैमाने पर खनन की अनुमति मिलने के दावे निराधार हैं। सरकार ने यह भी बताया कि सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अरावली क्षेत्र में नई माइनिंग लीज पर पहले से ही रोक लगी हुई है, और यह रोक आगे भी जारी रहेगी।


सुप्रीम कोर्ट के आदेशों का पालन

केंद्र ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा स्वीकृत ढांचा अरावली पहाड़ी प्रणाली की सुरक्षा को पहले से अधिक सख्त बनाता है। जब तक पूरे क्षेत्र के लिए एक व्यापक और टिकाऊ प्रबंधन योजना को अंतिम रूप नहीं दिया जाता, तब तक किसी भी नई माइनिंग लीज की अनुमति नहीं दी जाएगी। यह योजना इंडियन काउंसिल ऑफ फॉरेस्ट्री रिसर्च एंड एजुकेशन द्वारा तैयार की जा रही है।


पर्यावरण मंत्री का बयान

केंद्रीय पर्यावरण, वन और जलवायु परिवर्तन मंत्री भूपेंद्र यादव ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से मंजूर नई परिभाषा के अनुसार, अरावली क्षेत्र का 90 प्रतिशत से अधिक हिस्सा प्रोटेक्टेड एरिया में शामिल होगा। पश्चिम बंगाल के सुंदरबन में आयोजित एक बैठक के बाद मीडिया से बातचीत में उन्होंने कहा कि अरावली की सुरक्षा को लेकर कोई छूट नहीं दी गई है और इस मुद्दे पर भ्रम फैलाया जा रहा है।


100 मीटर की ऊंचाई पर भ्रम

सरकार ने उन दावों को खारिज किया है जिनमें कहा गया था कि 100 मीटर से कम ऊंचाई वाले क्षेत्रों में खनन की अनुमति दी जाएगी। केंद्र ने स्पष्ट किया कि खनन पर रोक केवल पहाड़ियों की चोटियों या ढलानों तक सीमित नहीं है, बल्कि पूरे पहाड़ी सिस्टम और उससे जुड़े लैंडफॉर्म पर लागू होती है। इसका उद्देश्य पहाड़ी आधार के पास खतरनाक तरीके से हो रहे खनन को रोकना है।


नई परिभाषा का महत्व

सुप्रीम कोर्ट ने 20 नवंबर को अरावली पहाड़ियों और रेंज की परिभाषा को लेकर पर्यावरण मंत्रालय के तहत गठित समिति की सिफारिशों को स्वीकार किया था। इसके अनुसार, अरावली पहाड़ी वह भूमि है जिसकी ऊंचाई स्थानीय भू-आकृति से 100 मीटर या उससे अधिक हो। वहीं, अरावली रेंज दो या उससे अधिक ऐसी पहाड़ियों का समूह है जो एक-दूसरे से 500 मीटर के भीतर स्थित हों।


राज्यों में एकरूपता लाने की पहल

सरकार ने बताया कि विभिन्न राज्यों में अलग मानकों के कारण खनन को लेकर भ्रम की स्थिति थी। इसे दूर करने के लिए सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर सभी राज्यों में एक समान परिभाषा लागू की गई है। समिति में राजस्थान, हरियाणा, गुजरात और दिल्ली के प्रतिनिधि शामिल थे। राजस्थान में 2006 से लागू परिभाषा को आधार बनाकर अतिरिक्त सुरक्षा उपाय जोड़े गए हैं।


सख्त शर्तों के साथ सीमित छूट

सरकार के अनुसार, प्रोटेक्टेड एरिया, इको-सेंसिटिव जोन, टाइगर रिजर्व और वेटलैंड्स जैसे कोर क्षेत्रों में खनन पर पूर्ण प्रतिबंध रहेगा। केवल राष्ट्रीय हित से जुड़े जरूरी और रणनीतिक खनिजों के लिए सीमित छूट दी गई है। मौजूदा खदानें भी तभी संचालित हो सकेंगी जब वे सस्टेनेबल माइनिंग नियमों का सख्ती से पालन करें।


संरक्षण के प्रति सरकार की प्रतिबद्धता

भूपेंद्र यादव ने कहा कि सरकार अरावली रेंज की रक्षा के लिए ग्रीन अरावली मूवमेंट जैसे कई कदम उठा रही है और इसके संरक्षण के लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध है। उन्होंने दोहराया कि अरावली को कमजोर करने के आरोप निराधार हैं और इस मुद्दे पर जानबूझकर गलत जानकारी फैलाई जा रही है।