Newzfatafatlogo

अरावली पर्वतमाला के संरक्षण पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का स्पष्टीकरण

केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने अरावली पर्वतमाला के संरक्षण के लिए सुप्रीम कोर्ट के हालिया फैसले पर अपनी प्रतिक्रिया दी है। उन्होंने सरकार के संरक्षण प्रयासों और खनन से संबंधित तकनीकी समिति के गठन की जानकारी साझा की। यादव ने बताया कि नई खनन अनुमति केवल अत्यावश्यक आवश्यकताओं के लिए ही दी जाएगी। इसके अलावा, उन्होंने पर्यावरण पर खनन गतिविधियों के प्रभाव और सर्वोच्च न्यायालय द्वारा प्रबंधन योजना की सिफारिश पर भी चर्चा की। जानें इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर और क्या कहा गया।
 | 
अरावली पर्वतमाला के संरक्षण पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का स्पष्टीकरण

सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर मंत्री का बयान


केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव ने मंगलवार को अरावली पर्वतमाला के संदर्भ में सुप्रीम कोर्ट के हालिया निर्णय के बारे में फैल रही गलतफहमियों पर अपनी प्रतिक्रिया दी। उन्होंने बताया कि सरकार ने इस प्राचीन पर्वत श्रृंखला के संरक्षण के लिए निरंतर प्रयास किए हैं।


भूपेंद्र यादव का विस्तृत अध्ययन

यादव ने कहा कि उन्होंने सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय का गहराई से अध्ययन किया है। अदालत ने स्पष्ट किया है कि अरावली पर्वतमाला का संरक्षण वैज्ञानिक दृष्टिकोण से होना चाहिए, जो दिल्ली, गुजरात और राजस्थान में फैली हुई है। उन्होंने यह भी बताया कि प्रधानमंत्री के नेतृत्व में सरकार ने हमेशा हरित अरावली के संरक्षण को प्राथमिकता दी है।


खनन से संबंधित तकनीकी समिति

मंत्री ने बताया कि अदालत ने खनन से जुड़े मामलों की जांच के लिए एक तकनीकी समिति का गठन किया है, जिसका उद्देश्य केवल खनन से संबंधित मुद्दों की सीमित समीक्षा करना है। 100 मीटर की ऊँचाई से संबंधित विवाद को स्पष्ट करते हुए यादव ने कहा कि यह माप पहाड़ी की चोटी से चोटी तक की दूरी को दर्शाता है। उन्होंने यह भी बताया कि एनसीआर क्षेत्र में किसी भी प्रकार का खनन प्रतिबंधित है।


खनन अनुमति पर प्रतिबंध

भूपेंद्र यादव ने आगे कहा कि निर्णय में यह स्पष्ट किया गया है कि अत्यावश्यक आवश्यकताओं को छोड़कर किसी भी नई खनन अनुमति (पट्टा) को जारी नहीं किया जाएगा। उन्होंने यह भी बताया कि अरावली पर्वतमाला में 20 वन्यजीव अभयारण्य और चार बाघ अभ्यारण्य हैं, जो इसकी पारिस्थितिक महत्ता को दर्शाते हैं।


प्रबंधन योजना की सिफारिश

मंत्री ने कहा कि सर्वोच्च न्यायालय ने अरावली के वैज्ञानिक प्रबंधन के लिए एक प्रबंधन योजना बनाने की सिफारिश की है, जो सरकार के संरक्षण प्रयासों और अध्ययनों का समर्थन करती है। उन्होंने कहा कि अदालत का निर्णय झूठे आरोपों और गलत सूचनाओं को दूर करता है।


पर्यावरण पर खनन का प्रभाव

इस बीच, भारतीय वन सर्वेक्षण (एफएसआई) ने चिंता जताई है कि अरावली की लगभग 10,000 पहाड़ियों में खनन गतिविधियों से पर्यावरण पर गंभीर प्रभाव पड़ रहा है और इसे रोकने की आवश्यकता है। केंद्रीय अधिकार प्राप्त समिति (CEC) ने इस मामले में सुप्रीम कोर्ट से हस्तक्षेप की अपील की।


केंद्र सरकार का तर्क

हालांकि, केंद्र सरकार ने यह तर्क दिया कि राजस्थान में लागू 100 मीटर पहाड़ी सिद्धांत के अनुसार, केवल 100 मीटर से अधिक ऊँचाई वाली संरचनाओं को ही अरावली पर्वतमाला का हिस्सा माना जाएगा। केंद्रीय मंत्री का कहना है कि सरकार के कदम और अदालत के निर्देश पारिस्थितिक संरक्षण के उद्देश्य को समर्थन देते हैं और अरावली के हरित भविष्य की दिशा में महत्वपूर्ण हैं।