अरावली पहाड़ियों की सुरक्षा पर केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव का स्पष्ट बयान
अरावली पहाड़ियों पर बवाल
अरावली पर्वतमाला को लेकर देशभर में हलचल मची हुई है। केंद्रीय पर्यावरण मंत्री भूपेंद्र यादव ने इस मुद्दे पर स्थिति को स्पष्ट करते हुए कहा है कि अरावली क्षेत्र में किसी भी प्रकार की छूट नहीं दी जाएगी। एक मीडिया चैनल के साथ बातचीत में, उन्होंने बताया कि अरावली रेंज विश्व की सबसे पुरानी पर्वत श्रृंखलाओं में से एक है और इसे हरा-भरा बनाए रखने के लिए सरकार प्रतिबद्ध है। इसके साथ ही, सुरक्षा मानकों को भी स्थापित किया जाना चाहिए।
ग्रीन अरावली वॉल आंदोलन
भूपेंद्र यादव ने ग्रीन अरावली वॉल आंदोलन की सराहना की और बताया कि इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट के समक्ष पेश किया गया है। उन्होंने कहा कि सुप्रीम कोर्ट ने दो महत्वपूर्ण बातें कहीं हैं, जिन्हें लोग नजरअंदाज कर रहे हैं।
90 प्रतिशत क्षेत्र की सुरक्षा
उन्होंने बताया कि अरावली पहाड़ियों में क्या शामिल है, इस पर भूविज्ञानियों द्वारा दी गई मानक परिभाषा के अनुसार, 100 मीटर ऊंची पहाड़ी को पहाड़ माना जाता है। इस ऊंचाई से लेकर जमीन के स्तर तक 90 प्रतिशत क्षेत्र सुरक्षित है।
100 मीटर की परिभाषा
केंद्रीय मंत्री ने कहा कि 100 मीटर का मतलब है पहाड़ की चोटी से लेकर जमीन के स्तर तक, जिसमें पूरी संरचना शामिल है। अरावली क्षेत्र में स्पष्ट परिभाषा की कमी के कारण खनन परमिट में अनियमितताएं थीं।
वैज्ञानिक योजना का महत्व
भूपेंद्र यादव ने अरावली पहाड़ियों में माइनिंग लीज के बारे में बताते हुए कहा कि नई माइनिंग के लिए सुप्रीम कोर्ट की योजना के अनुसार पहले एक वैज्ञानिक योजना बनाई जाएगी। उन्होंने स्पष्ट किया कि 0.19 प्रतिशत से अधिक क्षेत्र में माइनिंग संभव नहीं होगी।
पेड़ लगाने का महत्व
उन्होंने कहा कि केवल पेड़ लगाना पर्याप्त नहीं है, बल्कि अरावली रेंज को सुरक्षा की आवश्यकता है। इस इकोलॉजी में घास, झाड़ियां और औषधीय पौधे भी शामिल हैं।
स्थानीय वनस्पतियों का अध्ययन
केंद्रीय मंत्री ने बताया कि 29 से अधिक नर्सरी स्थापित की गई हैं और उन्हें हर जिले में फैलाने की योजना है। उन्होंने कहा कि वे पूरी इकोलॉजी की बात कर रहे हैं, न कि केवल पेड़ों की।
