आतंकवाद का नया चेहरा: पढ़े-लिखे पेशेवरों का शामिल होना
नई दिल्ली में आतंकवाद की बदलती रणनीति
नई दिल्ली: पहले आतंकवादी संगठन मुख्य रूप से कम शिक्षित और बेरोजगार युवाओं को अपने जाल में फंसाते थे, लेकिन अब उनकी रणनीतियों में बदलाव आ गया है। हाल ही में सामने आया 'व्हाइट कॉलर आतंकी मॉड्यूल' इसका एक प्रमुख उदाहरण है। 10 नवंबर को दिल्ली के लाल किले के पास हुए कार विस्फोट के पीछे भी इसी तरह के शिक्षित पेशेवरों का समूह था, जिसमें डॉक्टर, इंजीनियर और प्रोफेसर शामिल थे। इस मॉड्यूल में हर सदस्य को अलग-अलग जिम्मेदारियां दी गई थीं - कुछ ने योजना बनाई, कुछ ने तकनीकी सहायता प्रदान की और कुछ ने सीधे हमले को अंजाम दिया।
दिल्ली में कार ब्लास्ट ने मचाई हलचल
10 नवंबर को हुए इस धमाके में लगभग 15 लोगों की जान चली गई, जिसने पूरे देश को झकझोर कर रख दिया। जब जांच एजेंसियों ने मामले की गहराई में जाकर तफ्तीश की, तो पता चला कि i20 कार में विस्फोटक भरकर फिदायीन हमला करने वाला कोई साधारण व्यक्ति नहीं, बल्कि प्रशिक्षित डॉक्टर उमर था। इसके अलावा, इस मॉड्यूल में शामिल कई अन्य लोग भी उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टर थे।
डॉ. आदिल अहमद राठर की कहानी
इसमें एक प्रमुख नाम डॉ. आदिल अहमद राठर का है। पढ़ाई में अत्यंत प्रतिभाशाली आदिल ने स्कूल में गणित में 99 और विज्ञान में 98 अंक प्राप्त किए थे। वह MBBS और MD दोनों डिग्रियों में अव्वल रहा और 2022 में अनंतनाग के सरकारी मेडिकल कॉलेज में सीनियर रेजिडेंट डॉक्टर के रूप में कार्यरत था। बाद में, वह सहारनपुर चला गया, जहां उसकी प्रतिभा को देखते हुए फेमस मेडिकेयर अस्पताल ने उसे पांच गुना अधिक वेतन पर नौकरी दी।
आदिल का रहन-सहन और व्यवहार
अस्पताल के प्रबंधक मनोज मिश्रा आज भी इस बात पर विश्वास नहीं कर पा रहे हैं कि इतना शिक्षित और कुशल डॉक्टर आतंकवादी गतिविधियों में कैसे शामिल हो सकता है। वहीं, वी-ब्रॉस अस्पताल की उपाध्यक्ष डॉ. ममता के अनुसार, आदिल समय का पाबंद था और मरीजों के प्रति उसका व्यवहार अच्छा था। वह कम बोलने वाला और एकांत में रहने वाला व्यक्ति था। अपने खाली समय में वह अपने टैबलेट पर उर्दू और कश्मीरी वीडियो देखता था और जब कोई आता, तो तुरंत स्क्रीन बंद कर देता था।
आदिल की आर्थिक स्थिति
डॉ. ममता ने बताया कि आदिल काफी कंजूस था। चार लाख रुपये से अधिक कमाने के बावजूद, वह सस्ती जींस पहनता था, ऑटो से यात्रा करता था और अपनी तनख्वाह को दान करने का दावा करता था। केवल साढ़े तीन महीने बाद, वह बिना नोटिस दिए नई नौकरी पर चला गया। अब बड़ा सवाल यह है कि आतंकवादी संगठन ऐसे शिक्षित पेशेवरों को कैसे अपने प्रभाव में ले रहे हैं? पहले जो संगठन कम पढ़े-लिखे युवाओं का ब्रेनवॉश करते थे, अब वही उच्च शिक्षा प्राप्त डॉक्टरों और इंजीनियरों को आतंक की राह पर ले जा रहे हैं। यह प्रवृत्ति सुरक्षा एजेंसियों के लिए एक नई और गंभीर चुनौती बन गई है.
