आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: इंदिरा गांधी का ऐतिहासिक फैसला
आपातकाल की शुरुआत
आपातकाल की 50वीं वर्षगांठ: 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट के एक महत्वपूर्ण निर्णय ने भारतीय राजनीति में हलचल मचा दी थी। इस निर्णय ने तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के लोकसभा चुनाव को अमान्य घोषित किया, जो बाद में देश में आपातकाल की घोषणा का कारण बना। आइए जानते हैं इस फैसले की कहानी जिसने भारत के राजनीतिक इतिहास को बदल दिया।
इंदिरा गांधी की जीत और चुनौती
इंदिरा गांधी ने 1971 के लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश के रायबरेली से भारी बहुमत से जीत हासिल की थी। वह कांग्रेस (आर) की नेता थीं, जो कांग्रेस पार्टी से अलग होकर बनी थी। उनके मुख्य प्रतिद्वंदी राज नारायण ने चुनाव परिणाम को चुनौती दी और इलाहाबाद हाई कोर्ट में इंदिरा गांधी पर आचार संहिता के उल्लंघन और सरकारी मशीनरी के दुरुपयोग का आरोप लगाया।
लंबी सुनवाई का दौर
कोर्ट में चला लंबा मुकदमा
इस विवादास्पद मामले की सुनवाई 1975 में शुरू हुई। कई प्रमुख व्यक्तियों ने गवाही दी, जिनमें पीएन हकसर (प्रधानमंत्री के सलाहकार), एलके आडवाणी, करपोरी ठाकुर और स. निजलिंगप्पा शामिल थे। इंदिरा गांधी को दो दिन तक क्रॉस-एग्जामिनेशन का सामना करना पड़ा, जो भारतीय राजनीति का एक ऐतिहासिक क्षण था.
अयोग्यता का फैसला
6 साल के लिए अयोग्य घोषित
12 जून 1975 को इलाहाबाद हाई कोर्ट ने अपना फैसला सुनाया। जज जगमोहन लाल सिन्हा ने कहा, 'इस याचिका को मंजूरी दी जाती है और श्रीमती इंदिरा नेहरू गांधी का लोकसभा चुनाव रद्द किया जाता है।' कोर्ट ने इंदिरा गांधी को दो आरोपों में दोषी पाया: पहले, उनके चुनाव एजेंट के रूप में सरकारी अधिकारी यशपाल कपूर का उपयोग और दूसरे, उत्तर प्रदेश सरकार के अधिकारियों को चुनावी रैलियों में सहायता के लिए बुलाना.
आपातकाल की घोषणा
आपातकाल का ऐलान
इस फैसले के बाद, इंदिरा गांधी ने संविधान के अनुच्छेद 352 के तहत आपातकाल लागू कर दिया। इस दौरान 21 महीने तक देश के लोकतांत्रिक अधिकारों को दबा दिया गया, विपक्षी नेताओं को जेल में डाल दिया गया और मीडिया की स्वतंत्रता को कुचला गया। इसे भारत के संविधान का सबसे काला अध्याय माना जाता है.
