आरएसएस का शताब्दी समारोह: एकता और संवाद की नई दिशा

आरएसएस की शताब्दी का जश्न
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (आरएसएस) ने अपने 100 वर्ष पूरे कर लिए हैं। इस खास मौके पर दिल्ली में तीन दिवसीय शताब्दी समारोह का उद्घाटन संघ प्रमुख मोहन भागवत ने किया। अपने उद्घाटन भाषण में उन्होंने स्पष्ट किया कि आरएसएस एक प्रतिक्रियावादी संगठन नहीं है, बल्कि यह समाज के निर्माण और एकता के लिए कार्यरत है।
विरोध से मित्रता की ओर
भागवत ने संघ की ऐतिहासिक यात्रा का जिक्र करते हुए कहा कि अतीत में आरएसएस को कई बार गलत समझा गया। उन्होंने गुरुजी के शब्दों को दोहराते हुए कहा कि चाहे देश में मुसलमान या ईसाई न हों, आरएसएस का अस्तित्व बना रहेगा, क्योंकि यह संगठन समाज के लिए है। उन्होंने यह भी कहा कि जो लोग पहले संघ के कट्टर आलोचक थे, वे अब संवाद और सहयोग की दिशा में बढ़ रहे हैं।
समारोह की मुख्य थीम
इस आयोजन का मुख्य विषय है, 'आरएसएस की 100 वर्ष की यात्रा: नए क्षितिज'। इसका उद्देश्य संघ से जुड़ी भ्रांतियों को दूर करना और यह दिखाना है कि स्वयंसेवक अपने आप को किस रूप में देखते हैं। यह समारोह न केवल संगठन की उपलब्धियों का लेखा-जोखा प्रस्तुत कर रहा है, बल्कि भविष्य की दिशा पर भी प्रकाश डाल रहा है।
संघ की स्थापना की पृष्ठभूमि
मोहन भागवत ने संघ की स्थापना के पीछे की चुनौतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि अनेक कठिनाइयों के बावजूद स्वयंसेवकों ने इसे निरंतर आगे बढ़ाया। उन्होंने कहा कि संघ की प्रार्थना का अंतिम वाक्य 'भारत माता की जय' ही संगठन की असली पहचान है। उनके अनुसार, भारतीय, हिंदू और सनातनी जैसे शब्द एक-दूसरे के पर्याय हैं, और इनका संबंध मातृभूमि और दिव्यता के प्रति अटूट निष्ठा से है।
व्यापक संवाद का आयोजन
समारोह के दौरान हर शाम विशेष चर्चाएं आयोजित की जाएंगी, जो 28 अगस्त तक चलेंगी। इसमें समाज के विभिन्न वर्गों के लगभग 2000 प्रतिनिधि शामिल होंगे, जिनमें कला, खेल, न्यायपालिका, नौकरशाही, मीडिया, स्टार्टअप्स, कूटनीति और राजनीति से जुड़े लोग शामिल हैं। इस कार्यक्रम में कई देशों के राजनयिकों को भी आमंत्रित किया गया है।
विपक्ष से संवाद की पहल
इस अवसर पर संगठन ने अल्पसंख्यक समुदायों – मुस्लिम, ईसाई, सिख और बौद्ध – के साथ-साथ कांग्रेस जैसे विपक्षी दलों से भी संपर्क साधा है। भागवत ने कहा कि समाज की विविधता ही भारत की ताकत है, और संघ का उद्देश्य सभी को साथ लेकर आगे बढ़ना है।
आगामी कार्यक्रमों की योजना
शताब्दी समारोह की औपचारिक शुरुआत संघ प्रमुख के पारंपरिक विजयादशमी भाषण से होगी। इसके तहत देशभर में कई अन्य कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे, जिनमें व्याख्यान, संवाद और सामाजिक गतिविधियाँ शामिल होंगी।