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आरएसएस की शताब्दी पर भागवत के विचार: राजनीति और नक्सलवाद पर गहरी बातें

आरएसएस की शताब्दी पर भागवत जी के विजयादशमी भाषण में राजनीति, नक्सलवाद और आर्थिक नीतियों पर गहरी बातें की गईं। उन्होंने नक्सलवाद के कारणों और शासन की भूमिका पर विचार किया। भागवत जी ने भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों पर भी परोक्ष आलोचना की। जानें उनके विचारों का असली मर्म और क्या नरेंद्र भाई मोदी का समर्पण भागवत जी को प्रभावित करता है।
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आरएसएस की शताब्दी पर भागवत के विचार: राजनीति और नक्सलवाद पर गहरी बातें

आरएसएस की शताब्दी और भागवत जी के विचार

आरएसएस के शताब्दी समारोह पर भागवत जी के विचारों का महिमामंडन किया जा सकता है, लेकिन यदि वे वाचिक और लिखित शब्दों के गहरे अर्थ को समझते, तो उन्हें यह स्पष्ट होता कि भागवत वास्तव में क्या कह रहे हैं। क्या नरेंद्र भाई का समर्पण भागवत को प्रभावित नहीं करता, जिससे भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाता? भाजपा के नए अध्यक्ष का चयन यह तय करेगा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई कितने समय तक अपनी कुर्सी पर बने रहेंगे।


इस वर्ष दो अक्टूबर का दिन नागपुर के लिए विशेष महत्व रखता था। यह महात्मा गांधी की 156वीं जयंती, 69वां धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस और आरएसएस की शताब्दी का समारोह था। गांधी की जयंती पर हर साल कार्यक्रम होते हैं, लेकिन भारतीय बौद्ध महासभा और आरएसएस ने अपने समारोहों की तारीखें बदलकर दो अक्टूबर को आयोजित किया।


धम्मचक्र प्रवर्तन दिवस, जो 14 अक्टूबर 1956 को बाबा साहब भीमराव आंबेडकर द्वारा बौद्ध धर्म अपनाने की याद में मनाया जाता है, इस साल 12 दिन पहले मनाया गया। आरएसएस की स्थापना 27 सितंबर 1925 को हुई थी, लेकिन उसने भी अपनी शताब्दी का समारोह चार दिन पहले रखा। इस प्रकार, बापू इस साल दो समारोहों के बीच थे।


हर साल दशहरे के दिन आरएसएस प्रमुख द्वारा दिए गए भाषण को महत्वपूर्ण माना जाता है। इस वर्ष मोहन भागवत का भाषण उनका 17वां ‘विजयादशमी-उद्बोधन’ था। भागवत जी की सीधी बातें भी कई गहरे अर्थ छिपाए हुए थीं। उनके संबोधन में प्रधानमंत्री नरेंद्र भाई मोदी के प्रति आरएसएस की वास्तविक मंशा को समझने का प्रयास करें।


भागवत जी ने नक्सलवाद पर दो महत्वपूर्ण बातें कहीं। पहली, उग्रवादी नक्सली आंदोलन पर शासन की दृढ़ कार्रवाई के कारण नियंत्रण आया है। दूसरी, देश में शोषण, अन्याय और विकास की कमी नक्सलवाद के पनपने के कारण हैं। भागवत जी ने शासन की कार्रवाई को ‘दृढ़ता’ कहा और जन-सरोकारी विचार को खोखला माना।


हालांकि, भागवत जी ने यह स्वीकार किया कि पिछले 11 वर्षों से मोदी सरकार के तहत शोषण और अन्याय बढ़े हैं। उन्होंने उम्मीद जताई कि अब जब सरकार ने नक्सलवाद को समाप्त कर दिया है, प्रभावित क्षेत्रों में न्याय और विकास के लिए योजनाएं बनाई जाएंगी।


आर्थिक स्थिति पर भागवत जी ने कहा कि हमारी अर्थव्यवस्था प्रगति कर रही है, लेकिन इसके साथ ही अमीरी-गरीबी का अंतर बढ़ रहा है। उन्होंने आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार की आवश्यकता जताई। भागवत जी ने कहा कि विकास की वर्तमान पद्धति के दुष्परिणाम स्पष्ट हो रहे हैं।


पड़ोसी देशों में हो रहे आक्रोश पर भागवत जी ने चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि शासन और प्रशासन का समाज से टूटा हुआ संबंध असंतोष का कारण है। भारतीय संदर्भ में यह इशारा स्पष्ट है।


भागवत जी ने भाजपा की केंद्र और राज्य सरकारों पर परोक्ष रूप से आलोचना की। उन्होंने कहा कि भारत के उत्थान की प्रक्रिया चल रही है, लेकिन हमें अपनी नीतियों में बदलाव की आवश्यकता है। समाज में परिवर्तन भाषणों से नहीं, बल्कि कार्यों से आता है।


भागवत जी के विजयादशमी भाषण से यह स्पष्ट होता है कि भले ही नरेंद्र भाई ने भागवत जी के सामने समर्पण किया हो, लेकिन भागवत जी ने उन्हें लताड़ा है।


आरएसएस की शताब्दी पर भागवत जी के विचारों का महिमामंडन किया जा सकता है, लेकिन यदि वे वाचिक और लिखित शब्दों के गहरे अर्थ को समझते, तो उन्हें यह स्पष्ट होता कि भागवत वास्तव में क्या कह रहे हैं। क्या नरेंद्र भाई का समर्पण भागवत को प्रभावित नहीं करता, जिससे भाजपा को नया अध्यक्ष मिल जाता?