आरएसएस की शताब्दी पर मोहन भागवत का महत्वपूर्ण संदेश

आरएसएस की सार्थकता और भारत का योगदान
नई दिल्ली - राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) के शताब्दी वर्ष के अवसर पर संघ के प्रमुख मोहन भागवत ने कहा कि संघ की वास्तविकता भारत को विश्व गुरु बनाने में निहित है। उन्होंने बताया कि भारत को वैश्विक स्तर पर योगदान देने का समय आ गया है।
दिल्ली में आयोजित एक व्याख्यान श्रृंखला में भागवत ने कहा, 'हमें किसी को बदलने की आवश्यकता नहीं है। आज मैं संघ के बारे में चर्चा करूंगा। भारत है, इसलिए संघ है। हमारे लिए देश सर्वोपरि है, इसलिए हम भारत माता की जय कहते हैं। संघ को केवल धारणाओं के आधार पर नहीं, बल्कि तथ्यों के आधार पर समझा जाना चाहिए। संघ के बारे में कई चर्चाएं होती हैं, लेकिन जानकारी की कमी और उसकी प्रामाणिकता पर ध्यान देने की आवश्यकता है। इसलिए हमें संघ की सही और सत्य जानकारी प्रदान करनी चाहिए। संघ पर चर्चा करते समय यह महत्वपूर्ण है कि वह धारणाओं पर नहीं, बल्कि तथ्यों पर आधारित हो।
संघ प्रमुख ने आगे कहा, 'हिंदू समाज की एकजुटता की परंपरा है। संघ की स्थापना के समय यह तय किया गया था कि समस्त हिंदी समाज को संगठित करना है। इस संदर्भ में यह सवाल उठता है कि अन्य समुदायों को क्यों छोड़ा गया। नेता, नीति और पार्टी सहायक होते हैं, लेकिन मूल कार्य समाज का परिवर्तन है। राष्ट्र की उन्नति के लिए कुछ गुणों का विकास आवश्यक है।' भागवत ने कहा कि संघ आज भी नए क्षितिजों की बात कर रहा है, क्योंकि संघ की प्रार्थना के अंत में हम रोज कहते हैं: 'भारत माता की जय।' हमें अपने देश की जय-जयकार करनी चाहिए और इसे विश्व में अग्रणी स्थान दिलाना चाहिए।
भागवत ने गोलवलकर जी का एक किस्सा साझा करते हुए कहा कि एक बार किसी ने उनसे पूछा कि हमारे गांव में मुसलमान और ईसाई नहीं हैं, तो शाखा का क्या काम? गुरुजी ने उत्तर दिया कि अगर पूरी दुनिया में भी मुसलमान और ईसाई नहीं होते, तब भी हिंदू समाज की स्थिति ऐसी होती कि संघ की शाखा की आवश्यकता होती।