इंदिरा गांधी: भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री की कहानी और बलिदान दिवस
 
                           
                        एक ऐतिहासिक दिन
नई दिल्ली: 31 अक्टूबर 1984 का दिन भारतीय इतिहास में एक दुखद घटना के रूप में दर्ज है। सुबह 9:30 बजे, दिल्ली के सफदरजंग रोड पर स्थित प्रधानमंत्री आवास में गोलियों की आवाज सुनाई दी, जब देश की पहली महिला प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या कर दी गई। उनके अंगरक्षकों बेअंत सिंह और सतवंत सिंह ने ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में उन पर गोलियां चलाईं। आज, उनकी पुण्यतिथि पर देश उन्हें 'बलिदान दिवस' के रूप में श्रद्धांजलि दे रहा है। इंदिरा गांधी, जिन्हें 'भारत की आयरन लेडी' कहा जाता है, ने अपने कार्यकाल में कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए, जैसे बांग्लादेश युद्ध, पोखरण परमाणु परीक्षण, बैंकों का राष्ट्रीयकरण और ब्लू स्टार ऑपरेशन। वहीं, 1975 में लागू किया गया आपातकाल आज भी भारतीय लोकतंत्र के इतिहास का एक विवादास्पद अध्याय माना जाता है।
आपातकाल का काला दौर
इंदिरा गांधी ने 25 जून 1975 को देश में आपातकाल की घोषणा की। यह निर्णय भारतीय लोकतंत्र के इतिहास में एक महत्वपूर्ण मोड़ साबित हुआ। इस 21 महीने के दौरान नागरिक स्वतंत्रता पर प्रतिबंध लगा, प्रेस की स्वतंत्रता को सीमित किया गया, विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार किया गया और चुनाव स्थगित कर दिए गए। इस कदम की आज भी कड़ी आलोचना होती है और इसे भारतीय राजनीति के सबसे काले दौरों में से एक माना जाता है।
नेहरू की 'इंदू' से 'इंदिरा गांधी' बनने की यात्रा
इंदिरा गांधी का जन्म 19 नवंबर 1917 को इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश में हुआ। वह पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू की एकमात्र संतान थीं। उनका परिवार आर्थिक, सामाजिक और बौद्धिक रूप से संपन्न था। घर में उन्हें प्यार से 'इंदू' कहा जाता था। उनके दादा मोतीलाल नेहरू ने उनका नाम इंदिरा प्रियदर्शिनी रखा, जिसका अर्थ है 'कांति, शोभा और लक्ष्मी'। मोतीलाल नेहरू का मानना था कि उनकी पोती के रूप में घर में लक्ष्मी और दुर्गा दोनों का आगमन हुआ है। पंडित नेहरू भी उन्हें स्नेहपूर्वक 'प्रियदर्शिनी' कहकर पुकारते थे।
फिरोज गांधी से मुलाकात की कहानी
फिरोज गांधी का जन्म 12 सितंबर 1912 को मुंबई में हुआ। उनके पिता का नाम जहांगीर और मां का नाम रतिबाई था। पिता के निधन के बाद, उनकी मां बच्चों के साथ इलाहाबाद आ गईं। यहीं फिरोज की पढ़ाई हुई और आगे की शिक्षा के लिए वे लंदन गए, लेकिन कुछ समय बाद भारत लौट आए। भारत लौटने के बाद, फिरोज राजनीति में सक्रिय हुए और 1930 में युवा कांग्रेस का नेतृत्व किया। इसी दौरान उनकी मुलाकात जवाहरलाल नेहरू और कमला नेहरू से हुई। एक बार स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान जब कमला नेहरू धरने के दौरान बेहोश हो गईं, तब फिरोज ने उनकी मदद की। यही वह क्षण था जब वह नेहरू परिवार के करीब आए।
जब प्रियदर्शिनी बनीं 'इंदिरा गांधी'
फिरोज गांधी अक्सर आनंद भवन आने-जाने लगे और यहीं से उनकी और इंदिरा की नजदीकियां बढ़ीं। जब यह बात कमला नेहरू को पता चली, तो वे बेहद नाराज हुईं। धर्म और राजनीति के कारण इस रिश्ते को लेकर विवाद की स्थिति बन गई। जवाहरलाल नेहरू ने यह बात महात्मा गांधी को बताई और उनसे सलाह मांगी। गांधीजी ने एक मध्य मार्ग सुझाया और फिरोज खान को गांधी उपनाम की अनुमति दी। इस तरह वे फिरोज गांधी कहलाए। 1942 में इंदिरा प्रियदर्शिनी और फिरोज गांधी का विवाह हिंदू रीति-रिवाज से हुआ, और इसी के साथ प्रियदर्शिनी 'इंदिरा गांधी' बन गईं। यह नाम आने वाले दशकों में भारत की राजनीतिक शक्ति का प्रतीक बन गया।
